नवंबर 22, 2008

हद हो गयी भाई....

हद हो गयी भाई.....जहाँ देखो वहीँ लूट मचा रखी है..कल अचानक बी बी सी की न्यूज़ साईट को देखते हुए नज़र थमी " सोने के दाम समोसे " कालम पर जिसमे संवाददाता इरशाद उल हक़ ने लिखा कि बिहार के सोनपुर में लगने वाले पशु मेले में इस बार एक डच पर्यटक जोड़े ने चार समोसे ख़रीद कर ख़ूब चाव से खाए और जब पैसे देने की बात आई तो दुकानदार ने उन्हें क़ीमत बताई दस हज़ार रुपये. यानी, ढाई हज़ार का एक समोसा. काफ़ी हील हुज्ज़त के बाद पैसे तो अदा हो गए लेकिन पर्यटकों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी. उसके बाद न सिर्फ़ उस दुकानदार को मेले से बाहर कर दिया गया, बल्कि पुलिस ने 10 रुपए कटवा कर 9990 रुपये पर्यटकों को वापस भी करवा दिए. इसी तरह इस मेले में एक नेपाली पर्यटक ने लकड़ी के बने कुछ ख़ूबसूरत बर्तन ख़रीदे और उसकी जो क़ीमत हमने चुकाई वह सामान्य से कई गुना ज़्यादा थी. मेरा मानना है कि मेले -ठेले में चीजों का ऊँचे दामों पर बिकना कुछ भी ग़लत नही आख़िर कार दूकानदार बड़ी दूर दूर से वहां पैसे कमाने ही तो आते हैं मगर "लोजिक " कीमत तो फ़िर भी रहनी चाहिए. यह क्या कि दूसरे देश का आदमी देखा और अनाप शनाप कीमत वसूलना चालू कर दी. कई पर्यटक स्थलों पर भी मैंने इस तरह की हरकतें स्थानीय दुकानदारों द्वारा विदेशियों के साथ करती देखी हैं. आगरा ,दिल्ली जैसे महानगरों के पर्यटक इस तरह की स्थितियों के खूब शिकार होते है.पर्यटक उस समय तो स्थानीय लोगों के डर से चुप रह जाते हैं. कई बार पर्यटक इन हरकतों की वज़ह से इतने निराश हो जाते हैं कि वे दुबारा भारत या उस जगह पर जाने से पहले कई बार सोचते हैं .मुझे याद है कि एक बार एक रिक्शे वाले ने एक अँगरेज़ पर्यटक से थोडी दूर जाने के एक हज़ार रुपये वसूले जब हमने उस रिक्शे वाले को हड़काया तो उसने वाजिब दाम लेकर शेष पैसे वापस किए .गुस्सा तो तब आया कि जब उसने हमें कहा कि इन अंग्रेजों ने भी तो हमें बहुत लूटा है हम अगर उनसे थोड़ा सा लिए ले रहे हैं तो क्या ग़लत कर रहे हैं. यह बेहूदा सा तर्क था हमने इसका कोई जवाब तो नही दिया मगर लगा कि अभी भी जन सामान्य को समझदारी विकसित करने की बहुत ज़रूरत है. सभी नागरिक बनने के लिए हमें इस ओछी मानसिकता से अब ऊपर उठ कर आना पड़ेगा वरना....मैं तो यही कहूँगा कि हमें अच्छे नागरिक की तरह बर्ताव करना ही चाहिए वरना हमारे सभ्य होने पर प्रश्न लगना स्वाभाविक ही है.

6 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

रिक्शे वाला भी ठीक ही कहता था .शठे शाठ्यम समाचरेत . लेकिन तरीका गलत है . लालच मे बेटी माँ -बाप का कत्ल कर रही है . क्या होगा पता नहीं

Abhishek Ojha ने कहा…

देश में सब कुछ होते हुए भी पर्यटन का वैसे ही बुरा हाल है. इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ साथ ये कारण भी हैं !

Unknown ने कहा…

Mere Honton Ke Mehaktay Hue Naghmo Par Na Ja
Mere Seenay Main Kaye Aur Bhi Ghum Paltay Hain
Mere Chehray Par Dikhaway Ka Tabassum Hai Magar
Meri Aankhon Main Udaasi Kay Diye Jalte Hain

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thank you

श्याम का लिफाफा ने कहा…
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श्याम का लिफाफा ने कहा…

Bhaiya baht sahi likha.chote shehron main lagne wale mela main to ye ab aam baat ho gayi hai.blog pr bhut kuch likha ja raha hai par es tarf shyad hi kisa ka khyal gaya ho.bhayia tumhar koi muqabla nai hai.har mamle main abbal ho.likhne main to jabab hi nahi hai.kabhi kabhi ja apki kundli dekhta hun to pata hun ki kisi ki kundli main ek sath Chndrma or Budh kaise itne strong ho sakte hain.love u bhaiya.......jhony

Manuj Mehta ने कहा…

bahut khoob likha hai janab.

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