tag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post1934532704745623991..comments2023-08-12T16:22:34.016+05:30Comments on nazariya.....नजरिया.....: डोर से बंधी पतंग का दर्द कौन समझेगा........'महिला दिवस' !Pawan Kumarhttp://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-31048572506941763252010-03-17T09:43:52.880+05:302010-03-17T09:43:52.880+05:30It's realy and heart touching which force us t...It's realy and heart touching which force us to think about ourself only. We have to have to change in our attiude , If want progress as whole.<br /><br />regd/vijay-ntpcVijayhttps://www.blogger.com/profile/12916042848936207263noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-47016713144630444532010-03-14T03:26:32.281+05:302010-03-14T03:26:32.281+05:30sabko jawab nahin de paati isliye kabhi kabhi ye k...sabko jawab nahin de paati isliye kabhi kabhi ye karna bhi zaruri hota hai . kal subah bhi ladies ka prog hai .conduct karna hai .padhte padhte blog check kiya to aapka comment dekha.<br /> bilkul ignore karne se to sabko ek line likhna behater hai ,vaise main sabki post bhi padhti jaa rahi thi jahan kuch add. karne ki zarurat lagi wahan alag comment bhi kiya. asha karti hoon apko ye cut paste nagawar na <br />lage. . waise apka betaklluf comment accha laga. thanx<br /> lataलता 'हया'https://www.blogger.com/profile/10512517381147885252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-13959492207287524522010-03-14T03:17:50.610+05:302010-03-14T03:17:50.610+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.लता 'हया'https://www.blogger.com/profile/10512517381147885252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-70113946521893151342010-03-14T00:40:35.122+05:302010-03-14T00:40:35.122+05:30चलिये किसी बहाने आपकी लिखी कोई रचना तो पढ़ने को मिल...चलिये किसी बहाने आपकी लिखी कोई रचना तो पढ़ने को मिली हमें। देर से आ रहा हूँ...इतने दिनों बाद जाकर अब ब्लौग पे नियमित होने की कोशिश कर रहा हूं। किसी दिन बताया था आपने कि ग़ज़लों के अलावे कुछेक नज़्म भी लिखी है आपने, तभी से प्रतिक्षा कर रहा था मैं आपकी किसी नज़्म का..."एक धागा है ,जिसने बदल दिए हैं मायने मेरी आज़ादी के/डोर से बंधी पतंग का दर्द कौन समझेगा" सचमुच ही तो।<br /><br />बेहतरीन नज़्म सर जी।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-85538412207838634592010-03-13T19:41:43.158+05:302010-03-13T19:41:43.158+05:30बहुत ही अच्छी,,
सुलझी हुई ,,,
कामयाब कृति....
मन स...बहुत ही अच्छी,,<br />सुलझी हुई ,,,<br />कामयाब कृति....<br />मन से जो भी कहा गया है <br />वो पढने वालों के मनों में उतरा भी है <br />और कैफ़ी आज़मी साहब की नज़्म पढवा कर <br />आपने और एहसान किया है <br />आज सच में ज़रुरत है दकियानूसी मानसिकता से <br />उबरने की ,,,,सच से नज़रें मिलाने की ,,<br /><br />अभिवादन स्वीकारें .daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-33908562286773031992010-03-13T00:19:29.536+05:302010-03-13T00:19:29.536+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.लता 'हया'https://www.blogger.com/profile/10512517381147885252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-91916130871330707342010-03-12T23:08:18.201+05:302010-03-12T23:08:18.201+05:30यक़ीनन जो भी जीते हो वही लिखते हो.....तभी दिल से...यक़ीनन जो भी जीते हो वही लिखते हो.....तभी दिल से लिखी है ये नज़्म ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-66393223531201695202010-03-12T11:14:50.011+05:302010-03-12T11:14:50.011+05:30@'' ............... स्त्री अपने रंग रूप मे...@'' ............... स्त्री अपने रंग रूप में तब्दील होती रही है ''<br />सही कहा आपने !<br />पुत्री-प्रिया-माँ के रूप को तुलसीदास जी ने क्या ख़ूबसूरती से <br />रखा है यहाँ ---<br />'' जय जयगिरबरराज किसोरी। <br />जय महेस मुख चंद चकोरी।। <br />जय गजबदन षडानन माता।<br />जगत जननि दामिनि दुति गाता ||'' <br />.<br />नारी शोषण के क्या विकसित , क्या विकासशील , क्या अविकसित कोई भी देश पीछे नहीं रहा है !<br />प्राचीन से अर्वाचीन तक शोषण की लम्बी दास्ताँ है !<br />.<br />कैफ़ी साहब की शायरी पढ़ते हुए अहसास हुआ कि इस सिन्फ़ में <br />तरक्कीपसंद बातों इतनी ख़ूबसूरती के साथ रखा जा सकता है !<br />.<br />हल्के मूड से लिखी आपकी इस नज्म का यह दुःख वाकई पसर गया <br />पूरे मन पर कि --- '' डोर से बंधी पतंग का दर्द कौन समझेगा।''<br />.<br />महफूज भाई द्वारा दी गयी औरंगजेबीय जानकारी पर सोच रहा हूँ !<br />.<br />सुन्दर प्रविष्टि ! ,,,,,, अब तो महिला बिल भी पास हो चुका है , देखते हैं क्या फरक होगा आगे !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-9654089922159107862010-03-12T11:12:36.778+05:302010-03-12T11:12:36.778+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-28723724396335212982010-03-11T18:13:57.676+05:302010-03-11T18:13:57.676+05:30उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िन्दगी जहद...उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे<br />ज़िन्दगी जहद में है सब्र के काबू में नहीं <br />नब्ज़ -ए-हस्ती का लहू कांपते आँसू में नही<br />उड़ने खुलने में है नक़्हत ख़म-ए-गेसू में नहीं<br />ज़न्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं <br />उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे <br />उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे<br />is behtrin rachna ke saath nida ji ke khoob surat andaaz ,sone pe suhaga ,mahila divas par sabse behtrin rachna ,man ko bhitar tak sparsh kar gayi ,aananad ki anubhuti hui .shukriyaज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-22315645605048907582010-03-10T11:46:26.865+05:302010-03-10T11:46:26.865+05:30Kaifi Azmi ki nazm to haihi gazabki...aapki bhi li...Kaifi Azmi ki nazm to haihi gazabki...aapki bhi likhi rachana bahuthi sundar hai..!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-32979019105434818372010-03-10T11:33:42.503+05:302010-03-10T11:33:42.503+05:30भईया....ये पोस्ट आपकी अभी तक की शानदार पोस्ट में ए...भईया....ये पोस्ट आपकी अभी तक की शानदार पोस्ट में एक लगी.इस पोस्ट के लिए आपकी जितनी तारीफ की जाये कम है. इस क़ायनात में औरत सबसे खुबसुरत है.उसकी काबलियत को दबाने के लिए उसे सिर से लेकर पैर तक ना जाने कितनी बंदिशों में बंधा गया बावजूद उसने हमेशा लोगों को कुछ न कुछ देना का काम किया माँगा कुछ नही....सच! औरत की ही ये हिम्मत है की बंदिशों में वो इतना मुस्कुरा सकती हैं.<br />काश<br />तूने ये कुछ न दिया होता<br />बस मेरी कमान खोल दी होती.......<br />एक धागा है ,<br />जिसने बदल दिए हैं<br />मायने<br />मेरी आज़ादी के,<br />................डोर से बंधी पतंग का दर्द कौन समझेगा।<br />बहुत सुंदर.....VOICE OF MAINPURIhttps://www.blogger.com/profile/16674110616508901300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-74698759444281694962010-03-10T09:19:51.335+05:302010-03-10T09:19:51.335+05:30सब से पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया कि कैफ़ी साहब की ...सब से पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया कि कैफ़ी साहब की बेह्तरीन नज़्म आप की बदौलत पढ़्ने को मयस्सर हुई ,<br />आप की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि हमें लिंग भेद की मान्सिकता से ऊपर उठना होगा ,<br /><br />आप ने अपनी कविता डोर से..........<br />में बहुत सुन्दर सच्चे भाव पिरोए हैं ,<br />’काश तूने कुछ........<br />बहुत सही कहा आपने यही तो समझने की ज़रूरत है <br />बहुत बहुत बधाईइस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-56319235566648646042010-03-09T17:46:14.028+05:302010-03-09T17:46:14.028+05:30कल नहीं देख पाया, पर आज इसे पढ़ना सुकून दे रहा है ।...कल नहीं देख पाया, पर आज इसे पढ़ना सुकून दे रहा है ।<br /><br />विभूतियों के चिह्न दिखा दिये हैं आपने ! <br />खूबसूरत प्रविष्टि । आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-16969095792499215742010-03-09T10:17:48.705+05:302010-03-09T10:17:48.705+05:30आपका बहुत आभार ! इतनी विपुल सामग्री !!!! आनंद आ गय...आपका बहुत आभार ! इतनी विपुल सामग्री !!!! आनंद आ गया .सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-29892196115252175312010-03-09T02:21:55.506+05:302010-03-09T02:21:55.506+05:30वाह कैफी साहब, निदा साहब और सिंह साहब तीनो ने मिल ...वाह कैफी साहब, निदा साहब और सिंह साहब तीनो ने मिल कर आज के दिन को सार्थक कर दिया ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-90525049350897348052010-03-08T23:06:04.538+05:302010-03-08T23:06:04.538+05:30आजकल वक़्त मुझ पर बेरहम हो गया है..... वक़्त मुझसे...आजकल वक़्त मुझ पर बेरहम हो गया है..... वक़्त मुझसे दुश्मनी निभा रहा है.... मगर हम भी हैं.... कि अपने प्यार से ... वक़्त से भी दोस्ती कर लेंगे.... यह बात आपने बिलकुल सही कही है....कि.... <b>इन्क्लूसिव सोशल ग्रोथ" का सपना साकार करना है तो हमें स्त्री-पुरुष जैसी लिंगभेदी मानसिकता से ऊपर उठकर महिलाओं को बराबरी का अधिकार देना ही होगा....</b>...हमारे लिए तो हर दिन महिला दिवस है.... सही कहा आपने...एक दिन मना लेने से क्या होगा?<br /><br />औरंगजेब ने कहा था कि ....<b>औरत के बिना घर कब्रिस्तान लगता है....</b><br /><br />हाथों की<br />हल्की ज़ुम्बिस देकर<br />ज़मीं से ऊपर उठा भी दिया है<br /><br />इन पंक्तियों ने मन मोह लिया.... आपकी यह रचना अक्ल -ओ-हुनर-ओ-तमीज़-ओ-जान-ओ-ईमान लगी....<br /><br />शुक्रिया इस पोस्ट के लिए...<br /><br />आपका <br /><br />महफूज़...डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-33058462226403680172010-03-08T19:45:38.922+05:302010-03-08T19:45:38.922+05:30bahut behatareen lekhan ke sath बेसन की सोंधी रोटी...bahut behatareen lekhan ke sath बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,<br />याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।<br />बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,<br />दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां । <br />sone par suhaga , aur nazm wah wah wah.Yogesh Verma Swapnhttps://www.blogger.com/profile/01456159788604681957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-59363048143897831422010-03-08T19:41:07.742+05:302010-03-08T19:41:07.742+05:30डोर से बंधी पतंग का दर्द कौन समझेगा।
.....वाह!डोर से बंधी पतंग का दर्द कौन समझेगा।<br />.....वाह!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-10009252181465607702010-03-08T18:54:51.902+05:302010-03-08T18:54:51.902+05:30क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझमे में ...क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं<br />तुझमे में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं<br />तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं<br />तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं<br />अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे<br />उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे<br />वैसे तो इस रचना का एक एक शब्द कोट कर दूँ तो भी कम है बहुत अच्छी रचना है और<br />ये सब कुछ<br />बेमतलब सा लगता है<br />ये आसमान,<br />ये हवाएं,<br />ये हलकी सी जुम्बिश................<br />काश<br />तूने ये कुछ न दिया होता<br />बस मेरी कमान खोल दी होती.......<br />बहुत बहुत आभार .............\वाह कितनी सटीक अभिव्यक्ति है महिलायों के दिल का दर्द। लाजवाब पोस्ट है धन्यवाद और शुभकामनायेंनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-71242682350429009232010-03-08T18:43:24.240+05:302010-03-08T18:43:24.240+05:30डोर से बंधी पतंग का रूपक बहुत ही मानीखेज है। इस एक...डोर से बंधी पतंग का रूपक बहुत ही मानीखेज है। इस एक जुमले से महिलाओं की स्थित समझ में आ जाती है।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-45899325584943899392010-03-08T17:44:05.969+05:302010-03-08T17:44:05.969+05:30बहुत उम्दा पोस्ट
बेहतरीन लेखन के लिए तो आप जाने ...बहुत उम्दा पोस्ट <br />बेहतरीन लेखन के लिए तो आप जाने ही जाते है <br />चाहे वो ग़ज़ल हो या साहित्य लेखन <br />हर बारीक़ से बारीक़ चीज पकड़ते है आप |<br />वाकई महिलाओं की व्यथा का यथार्थ वर्णन किया है आपने |<br />लाजबाब ....................<br />.......मगर <br />ये सब कुछ <br />बेमतलब सा लगता है <br />ये आसमान,<br />ये हवाएं, <br />ये हलकी सी जुम्बिश................<br />काश <br />तूने ये कुछ न दिया होता <br />बस मेरी कमान खोल दी होती....... <br />बहुत बहुत आभार .........................Pushpendra Singh "Pushp"https://www.blogger.com/profile/14685130265985651633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1230703632887811097.post-83765762699491165612010-03-08T16:56:21.012+05:302010-03-08T16:56:21.012+05:30महिला दिवस पर आपने बहुत ही सुन्दर कविता पेश किया ह...महिला दिवस पर आपने बहुत ही सुन्दर कविता पेश किया है! बेहतरीन प्रस्तुती!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.com