नवंबर 25, 2011

अदब की इबादत- ' इबारत' !



20 नवम्बर2011 ,....... ग्वालियर के उस खूबसूरत से सभागार में जहां बड़ी संख्या में ज़हीन लोगों की नुमाइन्दगी थी, मौका था ’इबारत’ की दूसरी साहित्यिक पेशकश का जिसमें ’कविता की जरूरत’ पर विवेचन होना था और होना था भारत-पाकिस्तान के जाने माने शायरों का गज़ल पाठ। इस कार्यक्रम में आने का आमंत्रण जब युवा एवं जाने माने गज़लकार मित्र मदन मोहन ’दानिश ’ ने दिया तो मैं मना नहीं कर सका। उम्मीद के मुताबिक ही ’इबारत’ की यह शाम रही जिसमें ’कविता की जरूरत’ पर विवेचन के लिए प्रख्यात विद्वान आचार्य नन्दकिशोर आमंत्रित थे जबकि गज़ल/नज़्मों के लिए मुहम्मद अलवी, फ़रहत एहसास, -----थे और महफि़ल की शान थीं पाकिस्तान की शायरा मोहतरमा किश्वर नाही़द.

कर्यक्रम ठीक समय से शुरू हुआ.... दानिश ने कार्यक्रम की शुरूआती औपचारिकताओं के बाद आचार्य नन्दकिशोर को बुलवा दिया. ’कविता की जरूरत’ पर आचार्य ने जो विवेचन किया वो मंत्रमुग्ध कर देने वाला था उनके बोलने में एक अजीब सा लालित्य था जो उनके ज्ञान व विषय पर उनकी पकड़ को साफ दिखा रहा था. ’ज्ञान’ व ’सूचना’ के अन्तर को स्पष्ट करते हुए उनका यह निष्कर्ष रहा कि कविता अन्ततः ज्ञान की ही अभिव्यक्ति है. उन्होंने कविता में शब्दों के जोड़-तोड़ को कविता मानने से इन्कार करते हुए कहा कि वह रचना निरर्थक है जो ’ज्ञान’ की अभिव्यक्ति न दे सके. लम्बे विवेचन के दौरान श्रोता उन्हें मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे. भाषाई पाण्डित्य और विचारों को सही शब्द देने में उनकी महारत वाकई नया अनुभव था.

इस विवेचन के बाद बारी थी नामचीन पांच शायरों का कलाम सुनने की. मुम्बई के डॉ कासिम, नोयडा के फ़रहत एहसास, दिल्ली के जुबैर रिज़वी के बाद सीनियर शायर मुहम्मद अलवी को सुनना व देखना अपने आप में एक उपलब्ध रही. 84 वर्षीय शायर मो. अल्वी अपने कलाम की वज़ह से दुनिया भर में मशहूर हैं. उन्होने खराब स्वास्थ्य के बावजूद अपनी नज़्में व गज़ले सुनाकर मौजूद सामयीन को अहसासों से सराबोर कर दिया.

दुःख का एहसास मारा जाए
आज
जी खोल के हरा जाए
ढूँढता
हूँ ज़मीन अच्छी सी
ये
बदन जिसमे उतारा जाए
और

लबों पे यूँ हीं हंसी भेज दो
मुझे
मेरी पहली ख़ुशी भेज दो
अँधेरा
है कैसे तेरा ख़त पढूं
लिफाफे
में कुछ रोशनी भेज दे

इन रचनाओं के साथ अल्वी साहब ने मिबारत की महफ़िल को परवान चढ़ाया. इस शायर के बाद पाकिस्तान की मशहूर शायरा किश्वर नाहीद की बारी थी. किश्वर नाहीद पाकिस्तान में ’!!!फेमिनिस्ट मूवमेन्ट’ में बहुत बड़ा नाम हैं. हुकूमत और सामाजिक दबावों के सामने न झुककर उन्होने अपनी आवाज़ बड़ी बुलन्द तरीके से निभाई है. ' बुरी औरत की आत्मकथा ' जैसी आत्मकथा लिखकर दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचने वाली किश्वर नाहीद को सुनना एक तारीख़ी एहसास था. विद्रोही तेवर के साथ किश्वर नाहीद के कलाम पेश कर औरत होने का एहसास कराया....!

मुझे नवम्बर की धूप की तरह मत चाहो
मुझे
इतना चाहो कि मुझमें चाहे जाने की ख्वाहिश जाग उठे.

मुझे
नवम्बर की धूप की तरह मत चाहो

कि
इसमे
डूबो तो तमाज़त में नहा जाओ
और
उससे अलग हो तो ठंडक को पोर-पोर में
उतरता देखो......
मुझे
सावन के बादल की तरह मत चाहो
कि इसका साया बहुत गहरा
नस
नस में प्यास बुझाने वाला

मगर
इसका वजूद

पल
में हवाए पल में पानी का ढेर

मुझे
शाम
की शफक की तरह मत चाहो
कि
आसमान के कर्गोज़ी रंगों
की तरह
मेरे
गाल सुर्ख मगर लम्हा बाद

कि
हिज्र में नहा कर रात सी मैली मैली

मुझे
चलती हवा
की तरह मत चाहो
कि
जिसके कयाम से दम घुटता है

और
जिसकी तेज़ रवी क़दम उखड देती है

मुझे
ठहरे पानी कि तरह मत चाहो
कि
इसमे
कँवल बन कर नहीं रह सकती


मुझे
बस इतना चाहो
कि
मुझमे
चाहे जाने की ख्वाहिश जाग उठे.......

मदनमोहन
दानिश के इस कार्यक्रम में जाने के बाद महसूस हुआ कि यदि इस कार्यक्रम में न आता तो निश्चित ही मैं एक तारीख़ी महफि़ल से महरूम रह जाता. शुक्रिया ’दानिश ’ साहब को जिन्होंने मुझे इस आयोजन में शरीक होने का मौका दिया. ’दानिश ’ साहब ने जिस कलात्मक-खूबसूरत- अनुशासित तरीके से इस कार्यक्रम को अंजाम दिया वह उनकी ज़हानत और उनके अदबी लगाव को दिखाती है. युवा दानिश ने ग्वालियर जैसे शहर में ’इबारत’ के माध्यम से जो साहित्यिक अलख जगाई है वह बेमिसाल है. इससे पूर्व इबारत के माध्यम से इस शहर को निदा फाज़ली ,शीन क़ाफ़ निज़ाम जैसे लोगों की सोहबत मयस्सर हो चुकी है. ’इबारत’ का यह प्रयास अदब के प्रति किसी ’इबादत’ से कम नहीं. उम्मीद है कि ’इबारत’ अदब की दुनिया में नयी ’इबारत’ लिखेगी।


(*** तस्वीर- नयी दुनिया )

9 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक बार फिर आपने घर बैठ बैठे ही पूरा कार्यक्रम दिखावा दिया ... आभार ! बहुत जल्द मुलाकात के आसार है ... बस जो समय जा रहा है वो ही जा रहा है !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

मदन मोहन जी को 'इबारत' के इस कामयाब जलसे के लिए बहुत बधाई।

kaushal ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति सर !....आपकी हर इबारत की तरह ..
.....काबिल-ए-इबादत !!!

Rohit "meet" ने कहा…

padh ke aisa laga kii jaise hum bhii waha mozood the bahut sundar prastuti bhai

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…






बंधुवर आदरणीय पवन कुमार जी
सस्नेहाभिवादन !

’इबारत’ के आयोजन का आपने इतना सजीव और दिलचस्प शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है कि लगता है हमने ख़ुद इस प्रोग्राम में शिरक़त की हो …

बहुत आभार आपका !

आपकी ग़ज़लों की तलब में आपके दर पर आते हैं … नई ग़ज़ल लगाएं तो बड़ी मेहरबानी , मेल द्वारा सूचित कीजिएगा …


मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

sani niyazi ने कहा…

very nice collection of thoughts...i really like your ideas you decorated in the "nazaria"-a very nice summery of the thinking of the people...keep it up sir...:)

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी मिली आपके ब्लॉग पर आकर.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
हनुमान लीला पर आपके अमूल्य विचार
और अनुभव आमंत्रित हैं.

SINGHSADAN ने कहा…

SHANDAAR POST.........VAASTAV MEIN
ADAB KI IBAADAT.

REALLY INCREDIBLE......!!!!!!!

*****sachin singh

brajesh FAS98 ने कहा…

मुझे इतना चाहो कि मुझमें चाहे जाने की ख्वाहिश जाग उठे.
बड़ी ही खूबसूरती से वयां किया है मानवीय प्रेम और संवेदनाएं!!!!!!!!!!! ऐसा लगता है जैसे जीवंत हो बोलने लगी हों @@@@@@@@@@@@@