नवंबर 26, 2009

ज़ख्म जो अब तक भरा नहीं .........


कुछ ज़ख्म कभी नहीं भरते ........................!

याद तो नहीं करना चाहता मगर भूलती भी तो नहीं वो रात.......अचानक मुंबई में आंतक का जो खेल शुरू हुआ उसने पूरे देश में दहशत मचा दी थी. दस आतंकी और उनकी लेओपोल्ड कैफे , नरीमन पॉइंट.....ताज होटल जैसे स्थानों पर दहशतगर्दी..........! सांस साधे एनएसजी के जवानों का अभियान देखता देश...... बहरहाल 170 शहीद जिनमे 16 वे वीर पुलिस कर्मी भी थे जिन्होंने अपनी जान गवां दी ............साल गुजर गया है मगर ज़ख्म अभी तक भरा नहीं है............!

जो हुआ अब कभी कहीं हो............नम आँखों से 26/11 की बरसी पर शहीदों को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि !

(तस्वीर बीबीसी से)



नवंबर 20, 2009

बावस्तगी चलती रहे............



पता ही नहीं चला कब 10 साल गुजर गए...... मुट्ठी से रेत की तरह.......शायद उससे भी ज्यादा तेज........ऐसे कि पलकें बंद कीं और खोलें तो एक दशक गुज़र जाए...! आज अंजू के साथ 10 साल का सफ़र पूरा हुआ है....1999 में जब हमारी शादी हुयी थी तो हम महज 24 बरस के थे वो उम्र कि जब बच्चे अपने कैरियर को शेप दे रहे होते हैं.....हमने अपना कैरियर बनाया और झट से शादी कर डाली........! मंसूरी से ट्रेनिंग ख़त्म हुयी और उसके तुरंत बाद हम परिणय सूत्र में बंध गए......! इस बीच हमने जिंदगी के तमाम उतार चढ़ाव देखे....कुछेक मुश्किलें जरूर आयीं मगर ईश्वर की कृपा से सब कुछ ठीक ठाक निबट गया...........एक सर्विस से दूसरी और फिर दूसरी से तीसरी........अंतत: देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में ..... दो मासूम बेटियां.........कानपुर- लखनऊ-बरेली-गाज़ियाबाद के बाद अब गोरखपुर प्रवास..............! खैर फिर आता हूँ अपनी शरीके - हयात अंजू पर.........! आदमी को अपने जीवन के नाज़ुक क्षणों में किसी ऐसे सहारे की ज़रुरत होती कि जब वो बिलकुल किसी औपचारिकताओं में नहीं बंधना नहीं चाहता.........खुल जाना चाहता है.......फूट पड़ना चाहता है........हर एक सुख दुःख को बाँटना चाहता है.......अंजू के साथ मेरा यही सब कुछ रहा....हर नाज़ुक वक़्त में वो मेरे साथ रही...............सुख-दुःख साथ महसूस किये.........! मैं इस मोड़ पर आकर महसूस करता हूँ कि अच्छा हमसफ़र मिलना भी किस्मतों की ही बात होती है और निश्चित रूप से मैं इस मामले में खुद को सौभाग्यशाली समझ सकता हूँ कि अंजू मेरे साथ है.......! हम दोनों सरकारी सेवाओं में रहे मगर इतना किया कि घर -ऑफिस को दूर दूर रखा..........न घर में ऑफिस की बात की और न ही ऑफिस में घर की बात को आने दिया .........इस सिद्धांत को पालने के अलावा "इगो" नहीं पनपने दिया जो घर को नरक बनाने में सबसे बड़ा कारक होता है....! बस ऐसे ही दस साल पूरे हो गए....... आगे सफ़र जारी है.........! 10 साल पहले मेरे दोस्त मनीष ने मुझे मेरी शादी पर एक शेर लिख कर दिया था, शेर तो बशीर बद्र साहेब का था मगर कुछ बदलाव मनीष ने अपने हिसाब से कर दिए थे ......वो शेर फिर से याद आ गया तो लिख दे रहा हूँ.........

कभी सुबह की धूप में झूम कर, कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलो सदा कभी ख़त्म तुम्हारा सफ़र न हो !

मनीष का शेर सही साबित करने की कोशिश - ज़द्दोजहद ही तो है ये..............!

औपचारिक ज्यादा नहीं होना चाहता..........बहुत लिख पाना इस बारे में मेरे लिए मुश्किल है........सफ़र को आसान और खूबसूरत बनाने के लिए ईश्वर- परिजन- माता- पिता, भाई- बहन- मित्रों की भूमिका का शुक्रगुज़ार हूँ.........!
बिना किसी लाग लपेट के ग़ज़ल का वही एक शेर जो दस साल पहले मैंने अपनी शरीके हयात को नजराने में दिया था आज फिर दोहराने का जी किया है, सो दोहरा रहा हूँ......!

वो तितली की तरह पल पल ठिकाने दर ठिकाने तुम,
मगर हम भी अज़ब साइल हर एक गुंचे से बावस्ता........!


यह बावस्तगी यूँ ही चलती रहे......खुदा करे!

नवंबर 18, 2009

तज़ाद ज़िन्दगी में..........

पिछली पोस्ट कई मायनों में मेरे लिए महत्त्वपूर्ण रही........पिछली पोस्ट में मैंने कुछ हायकू आप सबको पढवाए थे......निश्चित ही हायकू लिखना एक कठिन सृजनात्मक प्रक्रिया है.....छोटे फॉर्मेट की इस विधा में लिखना अक्सर आसान नहीं होता.....कभी पूरी बात कहने में चूक हो जाती है तो कभी भाव या व्याकरण वाला पक्ष कमजोर हो जाता है....... ....मेरे उन हायकू के प्रतिउत्तर में मानोसी जी ,उड़न तश्तरी, शरद जी और गिरिजेश राव की प्रतिक्रिया सचमुच सीख देने वाली थीं.......गौतम राजरिशी साब की प्रतिक्रिया हौसला बढ़ने वाली थी......सत्यम, शिवम्, पी सिंह ने उत्साह वर्धन किया.......आप सभी का आभार! हायकू लिखने का क्रम जारी है कुछ पढने- पढ़ाने लायक लिख लूँगा तो आप को पेश करूंगा ...फिलहाल तो एक ग़ज़ल आप सबको पेश रहा हूँ......!

आखिर तज़ाद ज़िन्दगी में यूँ भी आ गए !
फूलों के साथ खार से रिश्ते जो भा गए !!

ऐसे भी दोस्त हैं कि जो मुश्किल के दौर में,
सच्चाइयों से आँख मिलाना सिखा गए !!

जिस रोज़ जी में ठान लिया जीत जायेंगे,
यूँ तो हज़ार मर्तबा हम मात खा गए !!

आँखों में ज़ज्ब हो गया है इस तरह से तू,
नींदों के साथ ख्वाब भी दामन छुड़ा गए !!

नादानियों की नज्र हुआ लम्ह-ए - विसाल,
गुंचों से लिपटी तितलियाँ बच्चे उड़ा गए!!

तुम क्या गए कि जीने की वज्हें चली गयीं,
वो राहतें, वो रंगतें , आबो- हवा गए !!

नवंबर 10, 2009

मेरे हायकू .......

हायकू ऐसी विधा है जिसे भारत में और खासकर हिंदी भाषा में लोकप्रिय होने में वक्त नहीं लगा ........... 5-7-5के फॉरमेट में बंधी इस कविता की प्रवृत्ति बहुत ही नुकीली और बेहद प्रभावशाली है......मूलत: जापानी भाषा की कविता को हिंदी कलेवर में अपनाने और उसे लोकप्रिय बनाने के आन्दोलन में बहुत से नाम आते हैं....उनका ज़िक्र और उनके बारे में फिर कभी तफ़सील से बात करूंगा फ़िलहाल तो अपने कुछ मेरे हायकू पोस्ट कर रहा हूँ.....नया स्वाद है हो सकता है, कुछ कसैला भी लगे....!

1

आसमान में,

सूरज चाँद तारे,

किसने टाँके ?

2

एक तरफा,

फैसला तुम्हारा भी,

मुझे मंज़ूर।

3

मिले हो तुम,

फ़िर से महेकेगी,

ये रात रानी।

4

अन्नान बोले-

अगला युद्ध होगा,

पानी के लिए।

5

टूटे सम्बन्ध,

लाख चाहो मगर,

जुड़ते नही।

6

भरी भीड़ में,

हरेक पे हावी था,

अकेलापन।

7

अखबार में,

खबरें नही ,सिर्फ़

विज्ञापन हैं।

8

पैसा नही है

सब कुछ, सिर्फ़ है

हाथ का मेल।

9

कागजी फूल

ही सजते हैं अब ,

गुलदानों में

10

कैसे देखूं मैं

तुम्हारी नज़रों से ,

कायनात को।

11

मुश्किल वक्त,

ज़रूर गुजरेगा,

धैर्य तो रखो।

12

कोशिश तो की,

मगर उड़ा न सका,

फ़िक्र धुँए में।

13

भीग जाता हूँ

अंतर्मन तक मैं

भीगी ऋतु में।
14

स्वाद रिश्ते का

काश मीठा हो जाता,

चलते वक्त।

15

अवसर था-

खो दिया ,अब तो था

पछताना ही।

16

थक जाती हैं

राहें भी,साथ -साथ

चलते हुए।

17

सिर्फ़ अच्छाई

याद रह जाती है

मौत के बाद।

नवंबर 06, 2009

नयी ताज़ा ग़ज़ल..........

मित्रों ने कहा कि बहुत दिनों से अपनी कोई ग़ज़ल पोस्ट नहीं की....क्या कहता उनसे....असल में खुद को कहाँ तक पोस्ट में रखता रहूँ.....दुनिया जहान में इतने लोग -इतने किस्से -इतनी घटनाएँ हैं कि उनके बारे में लिखते हुए ही आनंद महसूस करता हूँ....बहरहाल अपने दोस्त मनीष की मांग पर बहुत संकोच के साथ एक नयी ताज़ा ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ.......................शायद पसंद आये............!

तेरी खातिर खुद को मिटा के देख लिया !
दिल को यूँ नादान बना के देख लिया !!

जब जब पलकें बंद करुँ कुछ चुभता है,
आँखों में एक ख्वाब सजा के देख लिया !!

बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया !!

कोई शख्स लतीफा क्यों बन जाता है,
सबको अपना हाल सुना के देख लिया !!

खुद्दारी और गैरत कैसे जाती है,
बुत के आगे सर को झुका के देख लिया !!

वस्ल के इक लम्हे में अक्सर हमने भी,
सदियों का एहसास जगा के देख लिया !!