अप्रैल 24, 2012

बाय बाय नोयडा....!


करीबन 10  माह के गौतम  बुद्ध नगर के मुख्य विकास अधिकारी की  पोस्टिंग के बाद अब  चंदौली जाने का हुक्म मिला है. तबादले- पोस्टिंग्स तो हमारी सरकारी नौकरी का अटूट हिस्सा हैं..... अगर ये पोस्टिंग्स न हों तो एक शहर में ज़िन्दगी गुज़ारने का कितना बोरिंग अनुभव होगा. खैर  इस बात को छोड़ते हैं..... चंदौली में आने के बाद  गौतम  बुद्ध नगर  में बिताये उन 10 महीनों के बारे में सोचता हूँ तो संतुष्टि का अनुभव होता है.  गौतम  बुद्ध नगर में मेरी पोस्टिंग में गत जुलाई में हुयी थी.  
हाइवे पर दौड़ते वाहन

जुलाई 2011 से अप्रैल 2012 तक का यह कार्यकाल मुझे इसलिए याद रहेगा क्योंकि इस दौरान इस जिले में किसानों - प्रशासन के बीच जो अविश्वास का दौर चल रहा था वो सुलझा.सीनियर अधिकारियों के सानिध्य में रहते हुए इस तरह के माहौल में काम करना निश्चित रूप से मुझे अच्छा  लगा.  यहीं रहकर मुझे भारत में पहली बार  हो रही फार्म्युला -1 रेसिंग का नोडल अफसर रहने का अवसर प्राप्त हुआ. यह अनुभव अपने आप में बेमिसाल था.प्रबंधन के लिहाज से इतनी बड़ी इवेंट्स को सफलतापूर्वक संपन्न कराना  हमेशा ही चुनौतीपूर्ण रहता है. दुनिया भर की मीडिया और तमाम अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों की उपस्थिति में यह आयोजन सफलता से संपन्न हुआ.  इसके अलावा विधान सभा निर्वाचन का जिम्मेदारी भरा काम..... इत्यादि इत्यादि,  बहरहाल  सभी काम भली प्रकार गुज़र गए. 

गौतम  बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश की प्रगति का पैमाना है. कहने को जिले का नाम गौतम  बुद्ध नगर है मगर हर कहीं इसे  'नोएडा' के नाम से जाना जाता है.दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच सेतु की तरह होने के कारण इस जिले का अपना ही आर्थिक-  राजनीतिक  और प्रशासनिक महत्त्व है.  1997 में बुलंदशहर और ग़ाज़ियाबाद के हिस्सों को अलग कर इस जिले को बनाया गया था. इस जिले का एक क़स्बा दनकौर है जो गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम होने की कथा से जुड़ा हुआ है. यह भी जनश्रुति है कि इस जिले का बिसरख क़स्बा त्रेता युगीन लंकाधिपति रावण के पिता की जन्मस्थली है. आज के दौर की बात करें तो यह जिला अपने औद्योगिक कारणों, तकनीकी विद्यालयों, उच्च स्तरीय शैक्षिक संस्थानों, मल्टी स्पेशियलटी होस्पिटल्स, बड़े बड़े  मॉल्स , बहुमंजिली इमारतों और बेहतर जीवन शैली के लिए जाना  जाता है. इतना सब होने के बावजूद इस जिले को प्रगति के बहुत से प्रतिमान गढ़ने हैं, उम्मीद है आने वाले समय में ये अपेक्षाएं भी पूरी होंगी.  

अलका याग्निक के साथ
इस जिले में रहकर कई नए अनुभव हुए. इस जिले में रहते हुए कई साहित्यकारों- सृजनधर्मियों  के संपर्क में आने का अवसर प्राप्त हुआ. नोएडा महोत्सव के दौरान सूफी गायक वडाली बंधुओं और अलका याग्निक के साथ मुलाकातें  जीवन की सुखद यादों में संचित हो गयी हैं. इसी तरह लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार अशोक वाजपेई, अज़ीम शायर शीन काफ़ निज़ाम, कवि कुमार विश्वास, कश्मीरी साहित्यकार अफ्ज़ुर्दाह साहब, लेखक जगदीश व्योम, विज्ञान व्रत, चित्रकार लाल रत्नाकर, उर्दू प्रेमी कामना प्रसाद, लोक गायिका मालिनी अवस्थी, पाखी पत्रिका के अपूर्व जोशी और प्रेम भरद्वाज से मिलने का अवसर मिलता रहा. वहीं कुछ पुराने सृजनधर्मियों से लगातार मेल मुलाकातें भी इस दौरान निर्बाध रूप से चलती रहीं. गज़लकार उदय प्रताप, आलोक श्रीवास्तव, तुफैल चतुर्वेदी, कमलेश भट्ट, हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर जी से भी इसी कड़ी में मुलाकातें होतीं रहीं. कुछ ऐसे मित्र जिनसे फोन पर तो बातचीत होती रहती थी मगर मिले कभी नहीं थे उनसे भी यहाँ रहते हुए मुलाकातें हो सकीं.इनमे ब्लोगर मित्र अमरेन्द्र त्रिपाठी,  अनुराग आर्य  और सम्प्रति आयरलैंड  निवासी दीपक मशाल प्रमुख रहे. इस जिले का आभार मेरे ऊपर इस रूप में भी रहेगा कि यहीं रहते हुए मेरी गजलों का संग्रह 'वाबस्ता' 20वें विश्व पुस्तक मेले में रिलीज हुआ. नॉएडा रहते हुए मित्र मदन मोहन दानिश के एक कार्यक्रम में ग्वालियर जाने का अवसर मिला जहाँ मशहूर शाइरा  किश्वर नहीद से मुलाक़ात हुई. यहीं मोहम्मद अल्वी और आचार्य नन्द किशोर से भी मुलाक़ात हुई. 

पुस्तक मेले में वाबस्ता 
माल का आनंद उठाते हुए कभी पिक्चर देखना तो कभी किसी रेस्टोरेंट में बैठकर डिनर लेना यहाँ की जीवन शैली का   हिस्सा बने रहे. एक्सप्रेस हाईवे पर दौड़ती गाड़ियों से होड़ करते हुए एक सिरे से दूसरे सिरे पर पहुँचने की हर रोज़ की कवायद भरपूर लुत्फ़ देती रही. बहरहाल इस जिले से जाना है तो सब कुछ याद आ रहा है..... ! बहुत सी उजली यादों के साथ मुस्कुराते हुए यही कहूँगा --- बाय बाय नोयडा.