सितंबर 06, 2010

सिंगापुर से.......! (पार्ट -2)



सिंगापुर यूँ तो ऐसा देश है जिसमें इतने दर्शनीय स्थल हैं कि जिन्हें देखने के लिए काफी वक्त चाहिए.............. किन्तु हमारे पास वक्त की कमी थी, सो चाहकर भी कुछ ही दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर पाए।


दरअसल दिन भर के क्लासरूम सेसन तथा विभिन्न संस्थाओं/ प्राधिकारियों से ‘इन्टरएक्शन’ के बाद सांय का वक्त ही हमें ऐसा मिलता था कि जब हम सिंगापुर के दर्शनीय स्थलों और यहां के खूबसूरत बाजारों का अवलोकन कर सकते थे। सिंगापुर में ऐसे कई दर्शनीय स्थल हैं, जो किसी भी पर्यटक को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त हैं-जैसे, मेगाजिप एडवेंचर पार्क, सेन्टोसा पार्क, मिंट म्यूजियम ऑफ ट्वायज, चांगी बार म्यूजियम, एशियन सिविलाइजेशन म्यूजियम, पेरनकान म्यूजियम, सिंगापुर डिस्कवरी सेंण्टर, मेरीना बैराज, न्यूवाटर विजिटर सेण्टर, साइंस सेण्टर सिंगापुर, चेंग हो क्रूज, ज्वेल केबल कार ड्राइव, क्लार्क क्वे, रेड डॉट डिजाइन म्यूजियम, सिंगापुर फ्लायर, सिंगापुर रिवर क्रूज, सिगापुर टर्फ क्लब, बटरफ्लाई पार्क, नेशनल आर्चिड गार्डेन इत्यादि इत्यादि। भारतीय पर्यटकों के लिए यहां लिटिल इण्डिया, मुस्तफा कामर्शियल सेण्टर घूमना अपने देश में ही घूमने जैसा है।

बहरहाल समयाभाव के बावजूद हमने सिंगापुर को अधिकाधिक ‘एक्सप्लोर’ करने का प्रयास किया। सिंगापुर सिविल सर्विसेज कॉलेज से छूटते ही हम वापस अपने ‘फ्यूरामा रिवर फ्रंट’ होटल आते और इन स्थलों को देखने के लिए निकल पड़ते। कुछ स्थानीय भारतीय मित्रों ने कहा कि सिंगापुर दर्शन ‘सेण्टोसा बीच’ के भ्रमण के बिना अधूरा है सो हमने तय किया कि ‘सेण्टोसा बीच’ जरूर देख लिया जाए। सेण्टोसा पार्क में अण्डर वाटर सी व जलचरों का सजीव प्रदर्शन, स्काई ड्राइविंग तथा सिंगापुर म्यूजियम देखना शानदार अनुभव था। इस अनुभव में अपना रोमांच तब चरम पर पहुंचा जब हमनें ‘सांग ऑफ द सी’ पर जबरदस्त वाटर लेजर शो देखा। हजारों दर्शकों की भीड़ के बीच इस वाटर लेजर शो के प्रदर्शन ने हमारा मन मोह लिया। सेण्टोसा में इसके अलावा 4-D थिएटर, फोर्ट सिलिसों को घूमना भी अदभुत क्षण थे।

सेण्टोसा के अलावा मुझे सिंगापुर के ‘फ्लायर’ ने बहुत आकर्षित किया। 165 मीटर ऊंचाई वाले इस फ्लायर में ‘ट्रांसपेरेण्ट बॉक्स’ से सिंगापुर को देखना अत्यंत रोमाचंक अनुभव था। इस फ्लायर से यूथ ओलम्पिक की गतिविधियाँ देखना तो और भी रोमांचकारी था। सिंगापुर के बाजारों में देर रात तक रौनक रहती है। यहां जगह-जगह फूड कोर्टस देखे जा सकते है। इन फूड कोर्टस में दुनिया के अलग-अलग देशों के लजीज व्यंजन खाए जा सकते हैं। एम॰आर॰टी॰ (भारतीय मेट्रो ट्रेन की तरह) से चंद सिंगापुरी डालर्स में सिंगापुर को घूमना यादगार अनुभव रहा। विश्वास नहीं होता कि महज 700 वर्ग कि॰मी॰ में फैले किसी देश में इतने पर्यटक स्थल हो सकते हैं। इस देश की प्रगति में भारतीयों का भी बहुत बड़ा योगदान है।

जनसंख्या में लगभग दस फीसदी भागेदारी भारतीयों की है और कोई भी क्षेत्र हो, चाहे उद्योग या उत्पादन या फिर तकनीक....... सर्वत्र भारतीयों की भूमिका सहज स्वीकार्य है।

सिंगापुर में बिल्डिंग्स की बनावट तथा भू-खण्डों के प्रयोग को देखकर बार-बार इस देश के नीति निर्माताओं को धन्यवाद देने का मन करता रहा, जिन्होंने छोटे-से-छोटे भूखण्ड का ‘आप्टिमम यूज’ करते हुए उसे सुंदर से सुंदरतम बना दिया है। सड़क पर पैदल यात्रियों को सड़क पार करते हुए ट्रैफिक का रूक जाना......... रेड-ग्रीन लाइट सिग्नलस का शत-प्रतिशत अनुपालन करना ऐसे उदाहरण थे जो वास्तव में इस देश में ‘‘सिविक सेंस’’ होने का अहसास कराते थे। रेन वाटर हार्वेस्टिंग, रूफ टॉप ग्रीनरी इत्यादि को देखकर यहां की प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति आदर का भाव उत्पन्न होता रहा।

एक सप्ताह की इस सिंगापुरी यात्रा से निश्चित रूप से प्रशासनिक समझ विकसित हुई। यहां की चुस्त-दुरूस्त कानून और व्यवस्था को देखकर मन बार-बार यही सोचता रहा कि योजनाबद्ध प्रतिबद्धता और योजनाओं के क्रियान्वयन में ईमानदारी ने इस देश को विगत 45 साल में कहां से कहां पहुंचा दिया है। 1965 में आजाद हुये इस देश ने आशा से कहीं ज्यादा तेजी से विकास किया है और दुनिया में अपने अस्तित्व का सशक्त प्रमाण प्रस्तुत किया है।

सिंगापुर से लौटने के बाद भी कुछ स्थानीय भारतीय मित्रों की याद आती रही। इस यात्रा के दौरान श्रद्धा जैन जी, प्रशांत जी, अरूण दीक्षित दम्पत्ति, विक्रम-अम्बिका द्वारा दिए दिए गए स्नेह-सम्मान के प्रति मन अब तक आभारी है। सिंगापुर के बाद हमारा अगला पड़ाव वियतनाम था, जिसके बारे में तफसील से अगली प्रस्तुति में लिखने का प्रयास करूंगा।

क्रमशः

सितंबर 01, 2010

सिंगापुर से (पार्ट-1) !











13 अगस्त की सुबह 7.30 बजे सिंगापुर के चाँगी एअरपोर्ट पर उतरने के बाद यह महसूस होने लगा था कि हम अब दुनिया के उस देश की सरजमीं पर कदम रख चुकें हैं जिसे दुनिया के सबसे विकसित और प्रगतिशील देश के रूप में जाना जाता है। सिंगापुर के अगले पाँच दिन नये - नये अनुभवों से परिपूर्ण रहे, वो चाहे सिविल सर्विसेज कॉलेज में सिंगापुर के प्रशासन के बारे में जानकारी लेना रहा हो अथवा भारतीय उच्चायुक्त कार्यालय में स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का गौरवशाली क्षण रहा हो।
सिंगापुर के पब्लिक डिलीवरी सिस्टम को देखना समझना अपने - आप में नया अनुभव था। इस सिस्टम में सिंगापुर के लोकल ट्रेन (एम0आर0टी0) का सफर, लोकल बस सर्विस में यात्रा करना, पानी की कमीं से झूझते हुए देश में स्वच्छ पानी की आपूर्ति देखना, कन्क्रीट और सीमेण्ट की बहुमंजिली इमारतों के बीच जगह-जगह हरियाली व पार्कों का होना इस देश की बेहतरीन प्रशासनिक व्यवस्था और सुलझे हुए सिविक-सेन्स की अद्भुत दास्तान जैसा था। अपने सीमित संसाधनों के माध्यम से कोई देश कैसे आर्थिक प्रगति और खुशहाली का सफर तय करता है यह सिंगापुर से बेहतर दुनिया में शायद ही कहीं पर देखने को मिले। सिविल सर्विसेज कॉलेज सिंगापुर में बहुत रोचक क्लास रूम माहौल में वहां के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ सिंगापुर के प्रशासन के बारे में जानना-समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा। योजनाओं का निर्माण और उनका सफलता पूर्वक क्रियान्वयन सिंगापुर की पहचान है। हैरानी की बात यह थी कि सिंगापुर में नीति निर्माण को लेकर उच्च प्रशासकीय स्तर पर जब़रदस्त प्रतिबद्धता देखने को मिली। अर्बन रि-डेवलपमेण्ट अथॉरिटी तथा पब्लिक यूटीलिटी बोर्ड के अधिकारियों से मिलने के बाद यह धारणा और भी पुख्ता हुई कि किसी भी योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए दूरदर्शिता, संसाधनों के अधिकाधिक उपयोग तथा प्रशासकीय प्रतिबद्धता अत्यन्त आवश्यक है।
पचास लाख जनसँख्या वाले सिंगापुर की एक पहचान यह भी है कि इस सिटी - स्टेट में सब-कुछ व्यवस्थित सा दिखता है। बड़ी-बड़ी इमारतों के ऊपर हरियाली बनाए रखने का जज्ब़ा इस देश को इको-फ्रेण्डली बनाए हुए है। मरीना बीच पर फ्लायर पर पूरे शहर को देखना अद्भुत था। सत्तावन मंजिली इमारत की छत पर बाग होना एक आश्चर्य से कम नहीं था।यह सौभाग्य था कि जब हम सिंगापुर पहुँचे तो दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम हमारे सामने हुए। सिंगापुर मे स्वतंत्रता दिवस 09 अगस्त को मनाया जाता है। 13 अगस्त को जब हम सिंगापुर पहुँचे तो यह देश स्वतंत्रता दिवस के जोश मंे पूरी तरह डूबा हुआ था। जगह-जगह राष्ट्रीय ध्वज फहरे हुए थे। दूसरी महत्वपूर्ण घटना यह थी कि 13 अगस्त को ही सिंगापुर में यूथ-ओलम्पिक गेम्स का शुभारम्भ हुआ था, जिस कारण पूरा शहर/राष्ट्र जोश मंे डूबा हुआ था।
सिंगापूर में कुछ भारतीय मित्रों से मिलना सुखद अहसास रहा। अरुण दीक्षित जी से यहाँ पहली बार मुलाकात हुई। वे एसेन्चर कन्सल्टेण्ट कम्पनी में कार्यरत हैं। उनके कुछ रिश्तेदारों से मेरी मित्रता भारत मे थी, उन्हीं के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि सिंगापुर में श्री अरुण दीक्षित कार्यरत हैं। सिंगापुर जाने के बाद स्वयं अरुण दीक्षित द्वारा मुझसे सम्पर्क करना उल्लेखनीय बात थी। श्री दीक्षित द्वारा अपने स्थानीय भारतीय मित्रों से मिलवाना भी इसी मुलाकात को महत्वपूर्ण अंग रहा। यहाँ आने के बाद लखनऊ से सर्वत एम0 द्वारा फोन पर बताया गया कि ब्लागर श्रद्धा जैन भी सिंगापुर में ही है। श्रद्धा जी को मैं विगत लम्बे अर्से से पढ़ता चला आ रहा था। गज़ले लिखने में श्रद्धा जी ने ब्लॉग समुदाय में अपनी अच्छी पहचान बनाई है। सर्वत एम साहब ने मुझे और श्रद्धा जी को मिलवाने में महत्वपूर्ण मध्यस्थ की अदा की। श्रद्धा जी के घर जाकर उनको सुनना और लज़ीज डिनर लेना इस यात्रा की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। श्रद्धा जी के साथ उनके पति प्रशान्त जैन से मिलना अतिरिक्त उपलब्धि रही प्रशान्तजी भी कम्प्यूटर एनालिस्ट हैं जो किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हैं। प्रशान्तजी का सेन्स ऑफ ह्यूमर इतना लाजबाब था कि हम तीन-चार घंटे लगातार हंस-हंस कर लोट-पोट होते रहे। हर एक बात पर उनके ‘‘वन लाइनर कमेण्ट’’ हंसी-ठहाके का वातावरण तैयार कर देते थे। इसके अलावा मैनपुरी के ही एक अन्य कम्प्यूटर एनालिस्ट श्री विक्रम और उनकी पत्नी अम्बिका से मिलना और उनके साथ लिटिल इण्डिया, फेयरर पार्क घूमना अविस्मरणीय रहा।
क्रमश: