मैंने अपनी पिछली पोस्ट जो नवाज़ देबवंदी साहब पर लिखी थी......उसे आप लोगों का प्यार मिला......शुक्रिया ! उस पोस्ट में मैंने यह ज़िक्र किया था कि जब नवाज़ साहब अपने शेरों का खजाना हम पर लुटा रहे थे तो उसे हम तीन लोग ही लूटने पर आमादा थे...एक मैं ,एक मेरी पत्नी और तीसरे शख्स थे बी. आर. ‘विप्लवी’ साहब जो रेलवे में अफसर हैं मगर संजीदा शायर भी.......! पोस्ट पढने के बाद कई कमेन्ट आये मगर अपने मेजर साब गौतम राजरिशी भी गज़ब के शिकारी हैं......मजाल है कि कोई बात उनसे कही जाई और वो नज़रअंदाज कर दें..........दबोच लिया मुझे ……. कह डाला कि नवाज़ साहब पर लिखा वो तो ठीक है मगर बी. आर. विप्लवी साहब पर भी लिखिए......! मेजर साहब की बात सर आँखों पर.......!
...........जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि बी. आर. विप्लवी साहब जो रेलवे में अफसर हैं मगर संजीदा शायर होना भी उनकी एक अलहदा पहचान है...........! . मेरी उनसे मुलाकात बरेली में हुई थी किसी पुस्तक मेले में. उनका तार्रुफ़ कराया था कमलेश भट्ट कमल साहब ने. सिलसिला बढ़ा ....हम लोगों की मुलाकातें होती रही………..कभी किसी मुशायरे में, कभी किसी साहित्यिक आयोजन में .............कभी वसीम बरेलवी साहब के यहाँ...........! एक बार आकाशवाणी पर भी साथ साथ पढने का मौका मिला.....! उनकी किताब "सुब्ह की धूप" के विमोचन के अवसर पर भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बोलने का मिला...........ऐसे ही वक्त चलता रहा....मैं भी बरेली से चला गया....... विप्लवी साहब भी कोलकाता चले गए.......! मगर दुनिया गोल है ……....गोरखपुर में आने के बाद अचानक पता चला कि वे यहीं पोस्टेड हैं..........पता लगाया तो बात सही निकली.....! अब फिर मुलाकातों का सिलसिला जारी है...........! बी. आर. विप्लवी जितने अच्छे आदमी हैं उतनी ही अच्छी उनकी शायरी भी ..........जीवन के जो अनेकानेक रंग हैं वे उनकी शायरी में इतने रचे बसे हैं कि क्या कहने……....गंगा जमुनी संस्कृति की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं वो….......उम्र का एक फासला होने के बावजूद बिलकुल छोटे भाई की तरह स्नेह मिला है मुझे उनका……..!
गाजीपुर के सामान्य परिवार में जन्मे विप्लवी जी के सर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया..........मेधावी होने के बावजूद सामाजिक परिस्थितियों से उनकी जंग- जद्दोजहद चलती रही जो कमोबेश आज तक जारी है ................कम उम्र में ही जिंदगी के थपेड़ों ने उन्हें मजबूत कर दिया.........इंजीनीयरिंग करने के बाद रेलवे में आ गए.........अफसर बन गए मगर सामाजिक विरोधाभाषों से लड़ते हुए उनके कदम आगे बढ़ते रहे...........उनकी यही कशमकश उनकी शायरी में उभरी...........संजीदगी से शायरी के गणित में अपनी भावनाओं को पिरोते हुए अपनी बात आम आदमी तक पहुँचाने की ललक उनकी हिम्मत है ..........और शायद उपलब्धि भी !
उस्ताद शायर वसीम बरेलवी साहब अगर यह कहते हैं की " विप्लवी की आवाज़ हवा का आवारा झोंका नहीं- नसीमे सुबह का वह नगमा है जिसका आज भी और कल भी। अपने माहौल की बेदर्द सच्चाइयों, अपनी जात की तह-दर-तह गहराइयों और अपने तजरबों की रौशन इकाइयों को शेरी-पैकर देना और ज़मीनी एहसास से जुड़े रहना उनकी काव्य यात्रा का वो असासा है जो नए आयाम देने में पूरी तरह सक्षम है............." तो सही ही कहते हैं।
फ़िलहाल तो ऐसे माहौल में विप्लवी साहब की चंद ग़ज़लें ,कुछ शेर पेश कर रहा हूँ..........!
उम्र की दास्तान लम्बी है !
चैन कम है थकान लम्बी है !!
हौसले देखिए परिंदों के,
पर कटे हैं उड़ान लम्बी है !!
पैर फिसले ख़ताएँ याद आईं ,
कैसे ठहरें ढलान लम्बी है !!
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आँख का फ़ैसला दिल की तज्वीज़ है !
इश्क़ गफ़लत भरी एक हसीं चीज़ है !!
आँख खुलते ही हाथों से जाती रही ,
ख़्वाब में खो गई कौन सी चीज़ है !!
मैं कहाँ आसमाँ की तरफ देखता ,
मेरे सजदों को जब तेरी दहलीज़ है!!
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ये कौन हवाओं में ज़हर घोल रहा है !
सब जानते हैं कोई नहीं बोल रहा है !!
बाज़ार कि शर्तों पे ही ले जाएगा शायद,
वो आँखों ही आँखों में मुझे तोल रहा है !!
मर्दों की नज़र में तो वो कलयुग हो कि सतयुग,
औरत के हसीं जिस्म का भूगोल रहा है !!
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ज़रूरत के मुताबिक़ चेहरे लेकर साथ चलता है !
मिरा दमसाज़ ये देखें मुझे कैसे बदलता है !!
दो नयी ग़ज़लें भी पेश कर रहा हूँ ये ग़ज़लें अभी कहीं प्रकाशित भी नहीं हैं.......मुझे बेहद पसंद भी हैं.....पेशे-ख़िदमत है....,
ज़मीं के लोग हों जब बेज़ुबां से,
शिकायत क्या करेंगे आसमाँ से !
नदी से नाव की रस्साकसी है,
हवा उलझी हुयी है बादवां से !
हमें भी मस्जिदों की है ज़रुरत,
हमारी नींद खुलती है अजाँ से !
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जब से हूँ ईमान के पीछे,
जिस्म पड़ा है जान के पीछे !
खुद को मत पत्थर कर डालो,
पत्थर के भगवान के पीछे !
इक दिन रेत बना डालेंगी,
नदियाँ हैं चट्टान के पीछे !
फिलहाल वे दिखावे से दूर रहते हुए अपने कृतित्व में लगे हुए हैं.......कोई अचरज नहीं होना चाहिए की अगले एक दो सालों में उनकी फिर कोई किताब पढने को मिले......"सुब्ह की उम्मीद " की तरह ...........इसी उम्मीद में.....!