अप्रैल 19, 2010

वीनस भाई और उनके बेहतरीन प्रयास के नाम ग़ज़ल........!

बीते दिनों ब्लॉग पर वीनस केसरी ने "आइये एक शेर कहें" नमक बेहतरीन श्रृंखला शुरू की ......यह अलग बात कि यह श्रृंखला उनकी व्यक्तिगत वजहों के कारण बीच में ही गतिरोध का शिकार हो गयी, मैंने वीनस से इस बावत बात भी की, दरख्वास्त भी की कि इस शानदार श्रृंखला को यूँ ख़त्म न करें........कई ग़ज़लकारों के लिए उनका ब्लॉग संजीवनी सिद्ध हो सकता था , मगर..............! खैर तिलक राज कपूर साहब के माध्यम से जिस अंदाज़ में शेरों की बुनावट पर स्वस्थ टिप्पणियां आ रही थीं, वे अनपैरेलल थीं.....! चलिए वीनस भाई की मजबूरियों का सम्मान करते हैं. एक नयी ग़ज़ल इधर मुझसे लिख गयी सोच इस ग़ज़ल को क्यूँ न वीनस भाई और उनके बेहतरीन प्रयास के नाम कर दूं........! तो हाज़िर है वीनस भाई के नाम यह ग़ज़ल.......मुलाहिजा फरमाएं......!

हम तुम हैं आधी रात है और माह-ए-नीम है,
क्या इसके बाद भी कोई मंज़र अजीम है !!

वो खुश कि उसके हिस्से में आया है सारा बाग़,
मैं खुश कि मिरे हिस्से में बाद-ए- नसीम है !!

लहरें वसूलयाबी को आती हैं बार-बार,
साहिल है कर्ज़दार समंदर मुनीम है !!

क्या वज्ह पेश आई अधूरा है जो सफ़र,
रास्ता ही थक गया है कि राही मुकीम है !!

जब जब हुआ फसाद तो हर एक पारसा,
साबित हुआ कि चाल- चलन से यतीम है !!

फेहरिस्त में तो नाम बहुत दर्ज हैं मगर,
जो गर्दिशों में साथ रहे वो नदीम है !!

मज़हब का जो अलम लिए फिरते हैं आजकल,
उनकी नज़र में राम न दिल में रहीम है !!

साया है कम तो फ़िक्र नहीं क्यूंकि वो शजर,
ऊँचाई की हवस के लिए मुस्तकीम है !!

*माह ए नीम = आधा चाँद, नदीम = दोस्त, मुस्तकीम = सीधा खड़ा हुआ

अप्रैल 08, 2010

वृंदा और कंचन का विलाप कानों में गूंजता है.......!


मंगलवार दिनांक 6 अप्रैल 2010 का दिन भारत के इतिहास में हिंसात्मक नक्सली गतिविधियों के लिए जाना जायेगा....इस दिन नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में दंतेवाडा जिले में 76 जवानों को मौत के घाट उतार दिया.......यह घटना तब घटी जब केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को ले जा रही एक बस को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया गया ......इस बस में 76 जवान सवार थे. मुकरना के जंगल में घटी इस घटना ने देश को हिला कर रख दिया. इस हादसे में शहीद हुए जवानों में 42 जवान उत्तर प्रदेश के थे.........और इन जवानों में भी 4 गोरखपुर के थे.......! बुधवार की रात जब इन जवानों के शव गोरखपुर लाये गए तो दिल हिला देने वाले दृश्य देखने को मिले ........दो जवानों की अंत्येष्टि में मैं भी शामिल हुआ, जवान थे-अवधेश यादव और प्रवीन राय......! 28 वर्षीय प्रवीण अपने तीन भाईयों में सबसे बड़े थे.......बचपन में ही माँ का देहांत हो जाने के बाद उन्होंने अपने पिता के साथ अपने दो छोटे भाइयों को सहारा दिया ......पिता के साथ कन्धा मिलाते हुए जीवन का सफ़र तय किया था.......2002 में वे सी. आर. पी. एफ. में भर्ती हो गए.......2004 में शादी की ........उनकी पत्नी वृंदा बस अगले महीने ही माँ बनने वाली थीं...........उससे पहले ही यह दुखद घटना घट गयी........! अल सुबह 2 बजे जब मैं शहीद के पार्थिव शरीर को लेकर बघराई गाँव पहुंचा तो ग्रामीणों का जमघट वहां था..........सन्नाटा चारों तरफ पसरा हुआ था........जैसे सी. आर. पी. एफ. की गाड़ी से तिरंगे में लिपटा शव उतारा गया तो लगा कि जवान यह पूरे गाँव का लाडला था..........हर और विलाप की आवाजें ........पत्नी और छोटे भाई का हाल रो-रो के जो हो रहा था .....मैं चाह के भी बयां नहीं कर सकता......पिता तो जैसे घटना पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे........चुप्पी सी लगी हुयी थी उनके होठों पर. यही हाल दूसरे शहीद अवधेश के घर का था. 25 साल सेवा कर चुके 45 वर्षीय अवधेश यादव ने अपने बड़े पुत्र की शादी अगले जून माह में तय कर दी थी.............तारीख भी मुकर्रर हो गयी थी.......11 जून............मगर शायद नियति को कुछ और ही मंज़ूर था उससे पहले यह घटना घट गयी . उनके दोनों बेटों और चौदह वर्षीय बेटी कंचन का विलाप देखकर किसी की आँखें नम हो सकती थीं.............सरयू के किनारे मुक्तिधाम घाट पर इन दोनों जवानों को सलामी के बीच अंत्येष्टि करते वक्त जो मंज़र था वो अब तक मेरी आँखों से उतरा नहीं है............ रात भर जगे होने के बावजूद......... उदास -टूटे हुए मन से पोस्ट लिखने बैठ गया.........बार-बार प्रवीन की पत्नी वृंदा का विलाप और अवधेश की चौदह वर्षीय बेटी कंचन का करुण क्रंदन कानों में गूंजता रहा ..............ऐसे में मन में बारम्बार यही प्रश्न कौंधता रहा कि आंतरिक अशांति से जूझते देश को इन दुखद स्थितियों से कैसे निजात मिलेगी ?