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सिनेमा में 70 से 80 के दशक में एक से बढ़ कर एक सुरीली और कर्णप्रिय संगीत
रचनाओं को देने वाले गीतकार-संगीतकार
रवींद्र जैन का निधन संगीत संसार के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वे पिछले कुछ दिनों से
बीमार थे और लीलावती अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 71 वर्षीय
रवीन्द्र जैन यूरिनरी इंफेक्शन के चलते किडनी की बीमारी से पीडित थे।
सच
तो यह है कि रवींद्र जैन एक ऐसी शख्सियत हैं जो संगीतकार
होने के साथ-साथ बेहतरीन गीतकार और गायक
भी थे।गीतकार और गायक भी थे। उनके द्वारा संगीतबद्ध रचनाएं भारतीय संगीत जगत की
यादगार रचनाएं हैं। हिंदी सिनेमा जगत को उन्होंने
'अखियों के झरोखों से', 'गीत गाता चल', 'कौन दिशा में
लेके', 'सजना है मुझे सजना के लिए', 'घुंघरू की तरह', 'हुस्न
पहाड़ों का', 'अनार दाना', 'देर न हो जाए',
'जब
दीप जले आना' 'मैं हूं खुशरंग हिना', 'जब दीप जले आना',
'ले
जाएँगे, ले जाएँगे, 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे',
' ले
तो आए हो हमें सपनों के गाँव में', ' एक राधा एक मीरा', 'अँखियों
के झरोखों से', 'सजना है मुझे सजना के लिए', 'हर
हसीं चीज का मैं तलबगार हूँ', 'श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम'
,'वृष्टि
पड़े टापुर टूपुर',' आज से पहले, आज से ज्यादा
गूँचे लगे हैं कहने, फूलों से भी सुना हैं तराना प्यार का तू जो मेरे सूर में, सूर मिला ले, संग गा ले 'सुन
साहिबा सुन' जैसे प्यारे नग्मे दिए , जो अपने दौर में
तो लोकप्रिय हुए ही आज भी संगीत प्रेमी उन्हें उसी चाव से सुनते हैं । उन्हें इसी
साल देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री के लिए चुना गया था । mUgs dSfj;j की
शुरुआत में ही 1976 में आई फिल्म 'चितचोर' के
लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार और उसके बाद 1978
में फिल्म 'अखियों के झरोखों से' के लिए भी
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। उल्लेखनीय बात यह थी कि
फिल्म के शीर्षक गीत 'अखियों के झरोखों से' के लिए उन्हें
सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। वर्ष 1985 में फिल्म 'राम
तेरी गंगा मैली' में संगीत देने के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ
संगीत निर्देशक और 1991 में फिल्म 'हिना' के
गीत 'मैं हूं खुशरंग हिना' के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का
फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
28
फरवरी, 1944 को अलीगढ़ में संस्कृत के प्रकांड पंडित और
आयुर्वेद विज्ञानी इंद्रमणि जैन की संतान के रूप में जन्मे रवीन्द्र सात भाई-बहिन
थे। कम उम्र में ही वे पास के जैन मंदिर में भजन गाने लग गए थे। जन्म से उनकी
आँखें बंद थीं जिसे पिता के मित्र डॉ. मोहनलाल ने सर्जरी से खोला। साथ ही यह भी
कहा कि बालक की आँखों में रोशनी है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन
इसे कोई काम ऐसा मत करने देना जिससे आँखों पर जोर पड़े। पिता ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखकर
संगीत की राह चुनी जिसमें आँखों का कम उपयोग होता है। बचपन से ही जिज्ञासु रवीन्द्र ने अपने बड़े भाई से उपन्यास, कविताओं
के भावार्थ समझे। धार्मिक-ग्रंथों तथा इतिहास-पुरुषों की जीवनियों को सुनकर
प्रेरणा ली । बाद में उन्होंने रविन्द्र संगीत भी सीखा।
जैन
ने अपने फिल्मी dSfj;j की
शुरुआत फिल्म ‘सौदागर’ से की थी। उनका
पहला फिल्मी गीत 14 जनवरी 1972 को मोहम्मद रफी
की आवाज में रिकॉर्ड हुआ। उन्होंने 1970 के दशक में चोर मचाए शोर, गीत
गाता चल, चितचोर और अंखियों के झरोखे जैसी सुपरहिट फिल्मों को अपनी सुरीली
धुनों से सजाया था। उन्होंने 70 के दशक में बॉलीवुड संगीतकार के रूप
में अपना करियर शुरू किया और 'चोर मचाए शोर' (1974), 'गीत
गाता चल' (1975), 'चितचोर' (1976), 'अखियों के
झरोखों से' (1978) जैसी हिंदी फिल्मों में संगीत दिया। रवींद्र
जैन ने कई फिल्मों और टीवी सीरियल्स में संगीत दिया था। इसमें ‘अखियों
के झरोखे’, ‘चितचोर’, ‘गीत गाता चल’,
‘विवाह’
के
अलावा सीरियल ‘रामायण’, ‘श्रीकृष्णा’
में
म्यूजिक और आवाज दी। 1980 और 1990 के दशक में जैन
ने कई पौराणिक फिल्मों और धारावाहिकों में संगीत दिया था। 1985 में
फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' में संगीत देना उनके लिए उपलब्धि रही ।
इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड
मिला । इसके बाद ‘दो जासूस’ और ‘हिना’
के
लिए भी उन्होंने म्यूजिक डायरेक्टर रवींद्र जैन ने बॉलीवुड में यादगार संगीत दिया।
रामानंद सागर के टेलीविजन धारावाहिक 'रामायण' में इन्हीं ने
संगीत दिया.
2015
में
रवींद्र जैन को पद्मश्री अवॉर्ड से भी नवाजा गया.दक्षिणी भारत के गायक येसुदास के
वे काफी मुरीद थे और एक बार उन्होंने कहा था कि अगर मैं देख पाऊं तो सबसे पहले
येसुदास का चेहरा ही देखूंगा। गायिका हेमलता के साथ उन्होंने बांग्ला तथा अन्य भाषाओं में धुनों की रचना की
। हेमलता से नजदीकियों के चलते उन्हें
ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी से ऑफर मिलने लगे। राजश्री प्रोडक्शन के ताराचंद
बड़जात्या से मुलाकात रवीन्द्र के फिल्म करियर को सँवार गई। राजश्री प्रोडक्शन्स की फिल्म 'सौदागर' में गानों की
गुंजाइश नहीं थी। उसके बावजूद रवीन्द्र ने गुड़ बेचने वाले सौदागर के लिए मीठी
धुनें बनाईं, जो यादगार हो गईं। यहीं से रवीन्द्र और राजश्री
का सरगम का कारवाँ आगे बढ़ता गया। 'तपस्या', 'चितचोर',
'सलाखें',
'फकीरा'
के
गाने लोकप्रिय हुए और मुंबइया संगीतकारों में रवीन्द्र का नाम स्थापित हो गया। 'दीवानगी'
के
समय सचिनदेव बर्मन बीमार हो गए तो यह फिल्म उन्होंने रवीन्द्र को सौंप दी। एक
महफिल में रवीन्द्र-हेमलता गा रहे थे। श्रोताओं में राज कपूर भी थे। 'एक
राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा' गीत सुनकर राज कपूर झूम उठे, बोले-
'यह गीत किसी को दिया तो नहीं?' पलटकर रवीन्द्र
जैन ने कहा, 'राज कपूर को दे दिया है।' बस,
यहीं
से उनकी एंट्री राज कपूर के शिविर में हो गई। आगे चलकर 'राम तेरी गंगा
मैली' का संगीत रवीन्द्र ने ही दिया और फिल्म तथा संगीत बेहद लोकप्रिय हुए। 71 वर्षीय रवीन्द्र
जैन का निधन हिन्दी सिनेमा संगीत के लिए एक ऐसी क्षति है जिसे पूरा किया जाना
निश्चय रूप से नामुमकिन होगा।