हायकू ऐसी विधा है जिसे भारत में और खासकर हिंदी भाषा में लोकप्रिय होने में वक्त नहीं लगा ........... 5-7-5के फॉरमेट में बंधी इस कविता की प्रवृत्ति बहुत ही नुकीली और बेहद प्रभावशाली है......मूलत: जापानी भाषा की कविता को हिंदी कलेवर में अपनाने और उसे लोकप्रिय बनाने के आन्दोलन में बहुत से नाम आते हैं....उनका ज़िक्र और उनके बारे में फिर कभी तफ़सील से बात करूंगा फ़िलहाल तो अपने कुछ मेरे हायकू पोस्ट कर रहा हूँ.....नया स्वाद है हो सकता है, कुछ कसैला भी लगे....!
1
आसमान में,
सूरज चाँद तारे,
किसने टाँके ?
2
एक तरफा,
फैसला तुम्हारा भी,
मुझे मंज़ूर।
3
मिले हो तुम,
फ़िर से महेकेगी,
ये रात रानी।
4
अन्नान बोले-
अगला युद्ध होगा,
पानी के लिए।
5
टूटे सम्बन्ध,
लाख चाहो मगर,
जुड़ते नही।
6
भरी भीड़ में,
हरेक पे हावी था,
अकेलापन।
7
अखबार में,
खबरें नही ,सिर्फ़
विज्ञापन हैं।
8
पैसा नही है
सब कुछ, सिर्फ़ है
हाथ का मेल।
9
कागजी फूल
ही सजते हैं अब ,
गुलदानों में
10
कैसे देखूं मैं
तुम्हारी नज़रों से ,
कायनात को।
11
मुश्किल वक्त,
ज़रूर गुजरेगा,
धैर्य तो रखो।
12
कोशिश तो की,
मगर उड़ा न सका,
फ़िक्र धुँए में।
13
भीग जाता हूँ
अंतर्मन तक मैं
भीगी ऋतु में।
14
स्वाद रिश्ते का
काश मीठा हो जाता,
चलते वक्त।
15
अवसर था-
खो दिया ,अब तो था
पछताना ही।
16
थक जाती हैं
राहें भी,साथ -साथ
चलते हुए।
17
सिर्फ़ अच्छाई
याद रह जाती है
मौत के बाद।
आसमान में,
सूरज चाँद तारे,
किसने टाँके ?
2
एक तरफा,
फैसला तुम्हारा भी,
मुझे मंज़ूर।
3
मिले हो तुम,
फ़िर से महेकेगी,
ये रात रानी।
4
अन्नान बोले-
अगला युद्ध होगा,
पानी के लिए।
5
टूटे सम्बन्ध,
लाख चाहो मगर,
जुड़ते नही।
6
भरी भीड़ में,
हरेक पे हावी था,
अकेलापन।
7
अखबार में,
खबरें नही ,सिर्फ़
विज्ञापन हैं।
8
पैसा नही है
सब कुछ, सिर्फ़ है
हाथ का मेल।
9
कागजी फूल
ही सजते हैं अब ,
गुलदानों में
10
कैसे देखूं मैं
तुम्हारी नज़रों से ,
कायनात को।
11
मुश्किल वक्त,
ज़रूर गुजरेगा,
धैर्य तो रखो।
12
कोशिश तो की,
मगर उड़ा न सका,
फ़िक्र धुँए में।
13
भीग जाता हूँ
अंतर्मन तक मैं
भीगी ऋतु में।
14
स्वाद रिश्ते का
काश मीठा हो जाता,
चलते वक्त।
15
अवसर था-
खो दिया ,अब तो था
पछताना ही।
16
थक जाती हैं
राहें भी,साथ -साथ
चलते हुए।
17
सिर्फ़ अच्छाई
याद रह जाती है
मौत के बाद।
12 टिप्पणियां:
dekhiye isame कुछ तो हायकू जैस एलग रहे है लेकिन कुछ अपनी सपाटबयानी के कारण नही लगते ।
इसमे कविता तो होनी ही चाहिये भाई जैसे अज्ञेय का हाइकू
डाली से उड़ा
फूल
अरे ! तितली
भरी भीड़ में,
हरेक पे हावी था,
अकेलापन।
ये वाला सबसे अधिक पसंद आया.
सार्थक वो हैं
दृश्य कोई दिखा दे
तीन पँक्तियाँ
वर्ण गिनती
पांच-सात-पांच की
तीन पंक्तियां
हर पँक्ति हो
संपूर्ण अपने में
अर्थ सरल
लँबी सी पँक्ति
तोड तोड के लिखा
हाइकु नहीं
पोस्ट अच्छी,
लेख ज्ञानवर्धक-
ढेर आभार!!
bahut khub likha hai sir
भई ये हायकू नही हैं।
चाहे जो भी है मुझे बेहद पसन्द आया........बधाई!
अब यह तो हम नहीं जानते यह क्या है ??
पर हाँ, यह जाना है लिखा दिल से है आपने क्यों की बात दिल की समझ लेता है दिल !!
है कि नहीं ?
लीजिये हम तो आये थे पिछली वाली ग़ज़ल पढ़ने और बोनस मे मिल गये इत्ते सारे हायकु...
वैसे शरद जी और मानोशी के कमेंट्स काबिले-गौर हैं, लेकिन मुझे ये बहुत भाया
"कोशिश तो की,
मगर उड़ा न सका,
फ़िक्र धुँए में।"
मेरे ख्याल से ये विधा अभी थोड़ी-बहुत अनजानी ही है यहाँ के लिये। कल आपसे बात करके बड़ा आन्म्द आया...
badhiya hai,lekin hamein ghazal chahiye
भैया !
धीरे - धीरे अउर सधै लागे ई हाइकू |
अच्छा लाग ...
sukriya ... ...
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