पिछली पोस्ट कई मायनों में मेरे लिए महत्त्वपूर्ण रही........पिछली पोस्ट में मैंने कुछ हायकू आप सबको पढवाए थे......निश्चित ही हायकू लिखना एक कठिन सृजनात्मक प्रक्रिया है.....छोटे फॉर्मेट की इस विधा में लिखना अक्सर आसान नहीं होता.....कभी पूरी बात कहने में चूक हो जाती है तो कभी भाव या व्याकरण वाला पक्ष कमजोर हो जाता है....... ....मेरे उन हायकू के प्रतिउत्तर में मानोसी जी ,उड़न तश्तरी, शरद जी और गिरिजेश राव की प्रतिक्रिया सचमुच सीख देने वाली थीं.......गौतम राजरिशी साब की प्रतिक्रिया हौसला बढ़ने वाली थी......सत्यम, शिवम्, पी सिंह ने उत्साह वर्धन किया.......आप सभी का आभार! हायकू लिखने का क्रम जारी है कुछ पढने- पढ़ाने लायक लिख लूँगा तो आप को पेश करूंगा ...फिलहाल तो एक ग़ज़ल आप सबको पेश रहा हूँ......!
आखिर तज़ाद ज़िन्दगी में यूँ भी आ गए !
फूलों के साथ खार से रिश्ते जो भा गए !!
ऐसे भी दोस्त हैं कि जो मुश्किल के दौर में,
सच्चाइयों से आँख मिलाना सिखा गए !!
जिस रोज़ जी में ठान लिया जीत जायेंगे,
यूँ तो हज़ार मर्तबा हम मात खा गए !!
आँखों में ज़ज्ब हो गया है इस तरह से तू,
नींदों के साथ ख्वाब भी दामन छुड़ा गए !!
नादानियों की नज्र हुआ लम्ह-ए - विसाल,
गुंचों से लिपटी तितलियाँ बच्चे उड़ा गए!!
तुम क्या गए कि जीने की वज्हें चली गयीं,
वो राहतें, वो रंगतें , आबो- हवा गए !!
17 टिप्पणियां:
ऐसे भी दोस्त हैं कि जो मुश्किल के दौर में,
सच्चाइयों से आँख मिलाना सिखा गए !!
जिस रोज़ जी में ठान लिया जीत जायेंगे,
यूँ तो हज़ार मर्तबा हम मात खा गए !!
आँखों में ज़ज्ब हो गया है इस तरह से तू,
नींदों के साथ ख्वाब भी दामन छुड़ा गए !!
तुम क्या गए कि जीने की वज्हें चली गयीं,
वो राहतें, वो रंगतें , आबो- हवा गए !!
BAHUT ACCHHEY....BEHTAREEN
बहुत उम्दा बड़े भाई .......लगे रहे !
बहुत उम्दा बड़े भाई .......लगे रहे !
भईया हर शेर बेहतर है.किसको ज्यादा बेहतर बताऊँ...बस ऐसे ही लिखते रहो.
मज़ा आ गया सर ........बेहतरीन ग़ज़ल
यूँ तो लिखते है और भी शायर मगर
आप अंदाज़ ही अलग है
जिस रोज़ जी में ठान लिया जीत जायेंगे,
यूँ तो हज़ार मर्तबा हम मात खा गए !!
आँखों में ज़ज्ब हो गया है इस तरह से तू,
नींदों के साथ ख्वाब भी दामन छुड़ा गए !!
वाह बहुत खूब
हुजूर !
आपकी रचनात्मक ऊर्जा की तारीफ
मैंने पिछली टिप्पणी में की थी साथ
ही साथ यह भी कहा था की शिल्प
मजता जायेगा | आपकी यह गजल
मेरे उक्त विश्वास को बढ़ा रही है |
आलोचकों की उतनी ही परवाह की जाय
जितनी रचना को जरूरत हो और
इसकी समझ आपमें है | आपकी शुरुआत
इस बात का प्रमाण है |
मेरा मन न मन सो कह ही डाला | गजल
रुची... ...
धन्यवाद् की औपचारिकता क्यों करूँ...
हमें जितना समझ में आता है उस हिसाब से 'बहुत बढ़िया' :)
आँखों में ज़ज्ब हो गया है इस तरह से तू,
नींदों के साथ ख्वाब भी दामन छुड़ा गए !!
नादानियों की नज्र हुआ लम्ह-ए - विसाल,
गुंचों से लिपटी तितलियाँ बच्चे उड़ा गए!!
ये वो शेर हैं जिन्हें कहने के लिए शेर उस्ताद शायरों को भी सर खुजलाना पढता है...और आप ने इन्हें बहुत सादगी और सहजता से कह दिया है...वाह...वाह...पूरी ग़ज़ल ही काबिले दाद है और इशारा करती है की आप बेहद हुनर मंद ग़ज़ल गो हैं...लिखते रहें...बधाई...और शुभ कामनाएं...
नीरज
सिहँ साहब,
नादानियों की नज्र हुआ लम्ह-ए - विसाल,
गुंचों से लिपटी तितलियाँ बच्चे उड़ा गए!!
बहुत खूब कहा है, पिछली पोस्ट हायकू में बहुत ही नवीन प्रयोग किये हैं, बेहद कसा हुआ शब्द-शिल्प।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सारी लाईन्स बहुत खूब है।
aap dwara rachit in panktiyon se jeevan me sachchaiyon ka aaina dikhai deti hai.
Har ak line umda hai.
विलंब से आने के लिये क्षमा-प्रार्थी हूं और उस दिन आपका काल भी मिस कर देने के लिये...आज शाम को काल करता हूं।
ग़ज़ल बेमिसाल है हमेशा की तरह।
आपका मतला सदैव ही बहुत ही जबरदस्त होता है।
मुश्किल बहर और मुश्किल-सी रदीफ़ को बड़ी सहजता से निभाया है आपने।
आंखों में ज़ज्ब हो गया...वाला शेर एकदम अनूठा है। अलग तरह का एकदम। नींद के साथ ख्वाब का भी दामन छुड़ा जाना...अहा! क्या बात कही है जनाब।
लेकिन हासिले-ग़ज़ल शेर तो "गुंचों से लिपटी तितलियाँ बच्चे उड़ा गए" वाला मिस्रा समेटे हुये है।
क्या शेर बुने हो सिंह साब...अरे वाह! वाह!!
जनाब कोई किताब-विताब, कोई संकलन निकलवाइये अपनी! सच कह रहा हूँ...let the world know about thses gems!!!
amazing!! mausa,did u write it???
u ve got a serene sense of writing!!really
gunchon se lipti titliyan bachhe uda gaye,aur ap is ghareeb ke hosh uda gaye,wahhhhhh
जिस रोज़ जी में ठान लिया जीत जायेंगे,
यूँ तो हज़ार मर्तबा हम मात खा गए !!
gahre bhaav liye sundar gazal
bandhai swikaren
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