मई 27, 2010

कुशीनगर यात्रा वृतांत.....!


बुद्ध पूर्णिमा से ठीक एक दिन पूर्व कुशीनगर जाने का कार्यक्रम बन गया। यह कार्यक्रम दरअसल अनुज पंकज, हृदेश , अनुज वधू प्रिया और संदीप के आने पर बना। ये लोग पहली बार गोरखपुर आये थे, गोरखपुर और इसके आस-पास के दर्शनीय स्थलों को देखने की ललक ने कुशीनगर भ्रमण का कार्यक्रम बन गया। इस कार्यक्रम में मेरे मित्र स्वतंत्र गुप्ता का परिवार भी शामिल हो गया और इस तरह 27 मई को 15-20लोगों का एक जत्था कुशीनगर के लिए रवाना हुआ।
सुबह 8:00 बजे हम सबने गोरखपुर आवास से कुशीनगर के लिए प्रस्थान किया। कुशीनगर, गोरखपुर से लगभग 50 किमी0 की दूरी पर स्थित है। तकरीबन एक-डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद हम कुशीनगर पहुँचे। कुशीनगर के ‘पथिक गेस्ट हाउस’ में जलापान लेने के बाद हम लोग कुशीनगर के दर्शनार्थ निकल दिये। कुशीनगर प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक ‘मल्ल’ राज्य की राजधानी था। कुशीनगर में ही महात्मा बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था। कहा जाता है कि मल्लों ने भगवान बुद्ध के अंतिम संस्कार का समुचित प्रबन्ध किया था। पाँचवीं शताब्दी में फाह्यान ने तथा सातवीं शताब्दी में ह्वेनसाँग ने कुशीनगर का भ्रमण किया था। इन यात्रियों ने अपने यात्रा विवरण में इस स्थान को निर्जन बताया।
कालान्तर में 1860-61 में कनिंघम द्वारा इस क्षेत्र की खुदाई की गई और इसके बाद कुशीनगर को महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल माना गया। कनिंघम के उत्खनन के समय यहाँ पर 'माथा कुँवर का कोट' एवं 'रामाभार' नामक दो बड़े व कुछ अन्य छोटे टीले पाये गये। 1875-77 में कार्लाईल ने, 1896 में विंसेंट ने तथा 1910-12 में हीरानन्द शास्त्री द्वारा इस क्षेत्र का उत्खनन किया गया।
कुशीनगर के बौद्ध स्मारक वस्तुतः दो स्थानों में केन्द्रित है। शालवन जहाँ बुद्ध को परिनिर्वाण प्राप्त हुआ था और मुकुट बंधन चैत्य, जहाँ उनका दाह संस्कार हुआ था। परिनिर्वाण स्थल को अब ‘माथा कुँवर का कोट’ नाम से जाना जाता है, जबकि 'मुकुट बंधन चैत्य' का प्रतिनिधित्व आधुनिक रामाभार का टीला करता है। ‘माथा कुँवर का कोट’ के गर्भ में परिनिर्वाण मंदिर एवं मुख्य स्तूप छिपे हुए थे। ये दोनों स्तूप कुशीनगर के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्मारक हैं। इनके चारों ओर समय-समय पर अनेक स्तूपों, चैत्यों तथा विहारों का निर्माण होता रहा। मुख्य परिनिर्वाण मंदिर की खुदाई कार्लाईल द्वारा 1876 में की गई थी। इस स्तूप में महात्मा बुद्ध की 21 फुट लेटी हुयी प्रतिमा स्थापित की गयी। इस प्रतिमा की विषेशता यह है कि तीन कोणों से देखने पर यह प्रतिमा अलग-अलग भाव प्रकट करती है।
बताया जाता है कि परिनिर्वाण प्रतिमा की स्थापना पाचवीं शताब्दी में हुयी किन्तु इसका रख-रखाव ऐसा है कि यह मंदिर बहुत ज्यादा प्राचीन नही लगता। इस मंदिर के चारों तरफ विहार बने हुए हैं। मंदिर के चारों तरफ बड़ी संख्या में वृक्ष इत्यादि भी लगाये गये हैं। पतली ईंटों और हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित यह स्थल बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
परिनिर्वाण मंदिर से 200 मीटर आगे चलने पर माथा कुँवर का मंदिर मिलता है। इसका भी उत्खनन कार्लाईल ने किया था। यहीं बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था। आगे चलने पर कुशीनगर-देवरिया मार्ग पर रामाभार नाम का स्तूप है। इस स्तूप के समीप एक नदी भी बहती है।कुशीनगर का पुरातात्विक महत्व यह भी है कि यहाँ से बड़ी मात्रा में पत्थर, मिट्टी तथा विभिन्न धातुओं की मूर्तियाँ, सिक्के, पात्र, नक्काषीदार ईंटें आदि प्राप्तु हुये हैं। कई मोहरें ऐसी भी है जिन पर धर्मचक्र तथा कुछ महत्वपूर्ण लेख अंकित है।
कुशीनगर में कई देशों के बौद्ध मंदिर भी हैं, जिनमें श्रीलंका, कोरिया, जापान, थाईलैण्ड आदि प्रमुख हैं। पर्यटकों की दृष्टि से यह ‘आफ सीजन’ था। इसलिए यहाँ पर विदेशी पर्यटक काफी कम संख्या में थे। थाईलैण्ड के ‘वाट थाई कुशीनारा छर्लभराज’ मंदिर का भी भ्रमण किया गया। यह मंदिर 1994 में बुद्धिस्टों द्वारा दिये गये दान से निर्मित हुआ है, इसका नामकरण थाईलैण्ड के 'महाराजाधिराज भूमिवोल अधुल्यादेज' के सिंहासनारूढ़ होने के स्वर्ण जयन्ती वर्ष के अवसर पर किया गया। यह मंदिर खूबसूरती के लिहाज से उत्कृष्ट है। इस मंदिर के प्रांगण में की गई बागवानी तो नयनाभिराम है।
इस ऐतिहासिक स्थल को देखना बहुत ही संतुष्टि दायक रहा। परिजनों को यह स्थल बहुत पसन्द आया। ‘आफ सीजन’ होने के कारण होटल्स में निष्क्रियता फैली पड़ी थी। पर्यटकों के अभाव में होटल भी अनुत्पादक इकाईयों की तरह बेजान से दिखे। सबसे अच्छे बताये जाने वाले होटल में हम लोग लंच के लिए पहुँचे तो वहाँ के मैनेजर ने बताया कि लंच तैयार नहीं है, खाने में हमें बमुश्किल चायनीज नूडल्स तथा क्रिस्पी चिली पनीर ही मिल सका। कुशीनगर में कोई बाजार भी नहीं है। यहाँ होटल और रेस्टोरेन्ट भी बड़ी संख्या में नहीं है। कहा जा सकता है कि इस नगर को पर्यटन की दृश्टि से और भी विकसित किये जाने की आवष्यकता है। बहरहाल इन कमियों के बावजूद हमारी कुशीनगर यात्रा अत्यन्त मनोरंजक और स्मरणीय रही।

22 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

majaa aa gaya

Arvind Mishra ने कहा…

बुद्ध जयंती पर एक सामयिक यात्रा वृत्तांत एवं संसमरणात्मक पोस्ट !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपने तो पूरा कुशीनगर का इतिहास बता दिया ... बहुत बहुत आभार ....

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

एक दो फोटो और दिये होते तो और अधिक अच्छा लगता..

aarya ने कहा…

sadar vande !
ati sunadar varanan aur satik, chunki mai bhi gorakhapur ka hun ath aapako is post ke liye shubhakamana deta hun!
ratnesh tripathi

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

उम्दा पोस्ट.

Rangnath Singh ने कहा…

रीलिजियस टुरिज्म के प्रति लापरवाही तो हमारी लिए आम बात हो चुकी है। हम भारत के इस एडवांटेज का कोई विशेष फायदा नहीं ले पाते।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

भैया, क्या कहने आपके........... यहाँ बैठे बैठे ही आपने अपने लेखन के माध्यम से कुशीनगर घुमवा दिया ..............वाह बहुत खूब !! सच कहता हूँ अगर हिर्देश ने एक इशारा भी दिया होता तो पूरी कोशिश करता साथ आने की !! आप अपने लेखो में किसी भी जगह के इतिहासिक महत्त्व को सब के सामने ले आते हो, यह बहुत ही उम्दा कार्य है इस के लिए आपको साधुवाद !! शुभकामनाएं !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

कुशीनगर बहुत खूबसूरत जगह है... बहुत बार गया हूँ वहां पर.... एक अलग तरह का सुकून मिलता है.....

Urmi ने कहा…

कुशीनगर के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! उम्दा प्रस्तुती!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

हमारे लिये नई जानकारी...आपका प्रस्तुतिकरण प्रभावशाली है.

Abhishek Ojha ने कहा…

महात्मा बुद्ध से जुडी हर जगह पर जाना एक अजीब सा सुकून प्रदान करता है. सारनाथ, अजंता, सिक्किम के कुछ मठों में जाना सुखद अनुभव रहा है. कुशीनगर के बारे में पढ़कर अच्छा लगा... यहाँ जाने पर भी वैसी ही अनुभूति होती होगी ऐसा लगता है.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kushinagar ka itihaas aur kushinagar ki yaatra bahut achhi rahi

सर्वत एम० ने कहा…

कुशीनगर यात्रा का वृत्तांत जिस तरह आपने किया, उसने बहुत सी पुरानी यादों को जिंदा कर दिया. मैं तो गोरखपुर में ही जन्मा, पला, बढ़ा और उम्र का तकरीबन दो तिहाई हिस्सा वहीं गुज़ारा. कुशीनगर, बचपन से अब तक कई यादें समेटे हुए है. यह सच है कि एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल पर सुविधाओं की घोर अनदेखी की जा रही है. सीजन में तो पर्यटकों को धक्के खाने पड़ते हैं जबकि सीजन के बाद सुविधा के नाम घोर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है.

Shabad shabad ने कहा…

KushiNagar gayee to nahi hoon, par aap ne dekha deeya.
Vah ji Vah!

Hardeep

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हमारे लिये नई जानकारी.....शुक्रिया ......!!

सर्वत एम० ने कहा…

सच कहूं, आपके इस वृत्तांत ने बचपन से लेकर उम्र के एक बहुत बड़े हिस्से तक की बहुत सी यादों के चित्र आँखों के सामने से गुज़ार दिए. कुशीनगर, मेरे शहर, गोरखपुर से तकरीबन लगा ही हुआ है. पिकनिक से लेकर बहुत से काव्य आयोजनों तक की स्मृतियाँ हैं मेरे पास. आपके जादुई लेखन ने तो कमाल कर दिया.
यह भी एक कड़ुवा सच है कि एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल पर, जिस श्रेणी की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिएं, शायद उनका दशांश भी कुशीनगर के मुकद्दर में नहीं. सच कहूं, आपके इस वृत्तांत ने बचपन से लेकर उम्र के एक बहुत बड़े हिस्से तक की बहुत सी यादों के चित्र आँखों के सामने से गुज़ार दिए. कुशीनगर, मेरे शहर, गोरखपुर से तकरीबन लगा ही हुआ है. पिकनिक से लेकर बहुत से काव्य आयोजनों तक की स्मृतियाँ हैं मेरे पास. आपके जादुई लेखन ने तो कमाल कर दिया.
यह भी एक कड़ुवा सच है कि एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल पर, जिस श्रेणी की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिएं, शायद उनका दशांश भी कुशीनगर के मुकद्दर में नहीं.

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

इतिहास-चेतना का ह्रास ही कहूंगा जो इन ऐतिहासिक स्थलों की
समुचित देखभाल नहीं की जाती !
कुशीनगर की उपेक्षा कुछ ज्यादा ही की गयी है ! कुछ ही जगहें हैं
जो तमाम आक्रान्ताओं के आक्रमण से बची-खुची रह गयी हैं और
उनका भी ध्यान न दिया अफसोसनाक है !
ऊपर सर्वत जी का द्रवित हो जाना और नास्टाल्जिक हो जाना आपकी
पोस्ट की उपलब्धि है !
आपकी इस पोस्ट को मैं सोहगौरा वाली पोस्ट का अगला पड़ाव बिंदु
मानता हूँ , आगे कई पोस्ट-पड़ावों पर ठहरने की कामना है अपन की ! आभार !

PRAYAS ने कहा…

good post

स्वाति ने कहा…

अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! उम्दा यात्रा वृत्तांत!!

लता 'हया' ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया ,
आप भी इतनी उत्तम जानकारियां देकर बहुत जल्द अपने बहुत फैन्स तैयार कर लेंगे .

Pari ने कहा…

commendable!!!mann khush ho gaya mausa...