पिछले कुछ समय में जिन शायरों ने बड़ी धमक के साथ स्टेज मुशायरों में अपने होने का एहसास कराया है, उनमें अक़ील नोमानी का नाम लिया जा सकता है.
रातों के इख़्तेताम को मुमकिन समझ लिया सूरज का था फ़रेब जिसे दिन समझ लिया
और
मैं लमहा-भर को तेरा कुर्ब माँग बैठा था
मेरे नसीब ने सदियों का इंतज़ार किया
जैसे शेर कहने का हुनर रखने वाले अक़ील नोमानी को किसी भी नामी गिरामी मुशायरे के स्टेज पर देखा जा सकता है. उनके चाहने वालों की सख्या में इधर काफी इज़ाफा भी हुआ है. अभी हाल ही में उनकी गज़लों को शुमाया ‘‘रहगुज़र’’ प्रकाशित हुआ तो दिल किया कि इस महबूब शायर पर एक पोस्ट लिखूं.
अकील साहब बरेली जिले के एक छोटे से कस्बे मीरगंज में पिछले 27 सालों से रह रहे हैं. 1958 में जन्में अक़ील नोमानी को यह शौक विरासत में मिला. दरअसल उनके वालिद वैसे तो साधारण काश्तकार थे, लेकिन मिज़ाज सूफियाना था सो उनके घर पर कव्वालियों, शेरो शायरी की महफिलें लगा करती थीं. यहीं कहीं से अकील को अदब से जुड़ाव हुआ और शायरी करने का हौसला मिला. यह हौसला हुनर में तब्दील हुआ 1976-78 के दौरान, जब वे पड़ोस के शहर रामपुर में आई0टी0आई0 करने गये. यहीं उनकी मुलाकात उस्ताद ज़लील नोमानी से हो गयी. उस्ताद ज़लील नोमानी से उन्होंने गज़ल कहने का हुनर सीखा. 1978 में सिचाई विभाग में नौकरी करने के बाद से वे लगातार गज़ल कहने से जुड़ गये और यह सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है. पत्रिकाओं आदि में भी तभी से छपना शुरू हो गये.
अकील साहब से मेरी मुलाकात 2004 में तब हुई जब मैं मीरगंज कस्बे में तैनात था। मीरगंज में मैं लगभग डेढ़ साल तैनात रहा और इस दौरान इस जिन्दादिल शायर से रोज़ाना का उठना बैठना रहा. इस सोहबत में मुझे अकील साहब से बहुत कुछ सीखने का भी मौका मयस्सर हुआ. अपनी इस तैतानी के दौरान मैंने मीरगंज में एक-दो मुशायरे भी कराये, जिसमें कन्वीनर होने की जिम्मेदारी भी मैंने उन्हीं पर डाली.
अकील साहब की शायरी की पहचान उनकी फ़िक्र से है...... अपनी रचनाओं में जहाँ एक और रवायती शायर नज़र आते हैं वहीँ जदिदी इस्तेमाल से भी कोई ख़ास परहेज़ नहीं करते..... ! वे बहुत ही फिक्री शायर हैं और उनकी यह फिक्र उनकी शायरी में साफ तौर पर दिखायी भी पड़ती है. लड़कपन की मोहब्बत हो या सूफियाना लहजे में कही गयी सलाहें, सब कुछ उनकी शायरी में बड़े सलीके से नज़र आती हैं. मशहूर शायर प्रो0 वसीम बरेलवी के शब्दों में ‘‘अकील की शायरी में जिन्दगी की वो रमक मौजूद है, जो उन्हें नई सम्तों का एतबार बनायेगी.’’ उर्दू मुशायरों के प्रसिद्ध स्टेज संचालक मंसूर उस्मानी की नज़र में अक़ील नोमानी ने अपने मुख़्तसर से अदबी सफर में मील के वो पत्थर सर कर लिए हैं, जहाँ तक पहुँचते-पहुँचते कई फनकार थककर बैठ जाते हैं.
अकील साहब की हाल ही में प्रकाशित 'रह़गुजर' इसी बानगी को और भी पुख़्ता तरीके से पेश करती है. वैसे इससे पूर्व उनकी दो पुस्तकें ‘परवाज़ का मौसम’ व ‘सरमाया’ प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन उनकी स्क्रिप्ट उर्दू होने के कारण आम आदमी तक नही पहुँच सकी थीं. यह मुकाम इस शुमाये से शर्तिया तौर पर अंजाम तक पहुंचेगा........ इस 'रहगुज़र' में उनकी 112 गज़ले हैं, यूँ तो उनकी हर एक गज़ल का हर एक शेर जिन्दगी की रौनक से जुड़ा हुआ हैं, लेकिन अपनी पसन्दगी के हिसाब से कुछ कत'ए तथा कुछ शेर हाज़िर कर रहा हूँ -
महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है
किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है
किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
मैं जिन लोगों को खुद से मुख्तलिफ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
इस ग़ज़ल पर दाद देने के बाद इन गजलों पर भी निगाह डालिए......-
हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है
हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है
हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है
खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में
काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है
अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन
लेकिन अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है
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जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे
कभी तनहाइयों को तेरी महफ़िल, हम भी कहते थे
कभी तनहाइयों को तेरी महफ़िल, हम भी कहते थे
हमें भी तजरिबा है कुफ्र की दुनिया में रहने का
बुतों के सामने अपने मसाइल हम भी कहते थे
यहाँ इक भीड़ अंजाने में दिन कहती थी रातों को
उसी इक भीड़ में हम भी थे शामिल, हम भी कहते थे
यहाँ इक भीड़ अंजाने में दिन कहती थी रातों को
उसी इक भीड़ में हम भी थे शामिल, हम भी कहते थे
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एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती
इक उम्र हुई, दिल की लगी कम नही होती
एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती
इक उम्र हुई, दिल की लगी कम नही होती
लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती
अक्सर ये मेरा ज़ह्न भी थक जाता है लेकिन
रफ़्तार ख़यालों की कभी कम नहीं होती
था ज़ह्र को होंठों से लगाना ही मुनासिब
वरना ये मेरी तश्नालबी कम नहीं होती
मैं भी तेरे इक़रार पे फूला न समाता
तुझको भी मुझे पाके खुशी कम नहीं होती
फ़ितरत में तो दोनों की बहुत फ़र्क़ है लेकिन
ताक़त में समंदर से नदी कम नहीं होती
इन तहज़ीबी शेरों को कहने वाले अक़ील नोमानी यह मानते हैं कि शायरी का भविष्य अच्छा है और इसलिए भी अच्छा है क्योंकि शायरी को हिन्दी और कई भाषाओं का लगातार सहारा मिल रहा है.
इस उम्मीद के साथ उनकी शायरी का तज़किरा सिर्फ स्टेज तक ही नही बल्कि अदबी हलकों में भी उसे एहतराम के साथ अक़ील साहब को ‘रहगुज़र’ की बहुत-बहुत दिली मुबारकबाद.
26 टिप्पणियां:
अक़ील नोमानी साहब के इस परिचय के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
bahut bahut mubarakbad,ek shandar shayar se apne dosto'n ka tarruf karane ke liye,waqaee tum bahut behetareen kam kar rahe ho,sau baras jiyo,aqeel bhi ke bare mei'n kya kaha jaye?....ek pukhta shayar or sahi mayno'n mei'n ek purkhuloos insan,chalti phirti tehezeeb,behetareen dost.............,badhai tumhe or aqeel bhai ko
अकील साहब बहुत उम्दा लिखते हैं. आपने सबसे परिचय कराकर कृतार्थ किया.
अक़ील नोमानी को पढ़ कर अच्छा लगा। बेहतरीन शेर..बहतरीन गज़लें पढ़वाईं आपने। यकीनन आपकी पसंद हद उम्दा है। यह शेर जितना सरल है उतना ही दिल में उतर जाता है...
लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती
..यहीं फनकार की जादूगरी देखने को मिलती है।
एक शेर में...
अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन
अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है
...लेकिन दो बार छप गया है ठीक कर लें।
...आभार।
अत्यंत सुन्दर प्रस्तुतीकरण सर !............
वैसे तो अक़ील नोमानी साहब के बारे में अरसे से
सुनता रहा हूँ परन्तु उनको स्टेज पर लाइब सुनने
का पहली बार मौका मिला इस वर्ष मैनपुरी के
मुशायरा कार्यक्रम में .....बस यहीं से हम उनके
मुरीद हो गए !!.......अक़ील साहब को उनके इस
नए इंतेखाब ''रहगुज़र '' के लिए हार्दिक बधाई !!
......खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में ;
काँटों से गुजरने का मज़ा अपनी जगह है !
,,,,,,..............................क्या बात है ......वाह !!!!
Subhan Allah...Mujhe is Kitab ka betaabi se intezaar hai...Aquiil bhai ko likha bhi hai pta nahin kab bhejenge...:-)
Neeraj
लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती
बेहद ख़ूबसूरत शेर !! अश’आर तो सभी उम्दा हैं लेकिन इस शेर में शेरियत ग़ज़ब की है
बहुत बहुत शुक्रिया अक़ील साहब के बारे में जानकारी देने के लिये
अक़ील नोमानी जी को शाइर क्लब में भी पढ़ने का मौक़ा मिला था। उम्दा कहन के साथ शेर कहने में महारत हासिल है आपको|
अभी हालिया उनको दिल्ली मे नज़दीक से सुनने का मौका मिला है... बेहद उम्दा शायरी करते हैं.. कौन नहीं जानता इन्हें! रह्गुज़र का पता देते तो और भी अछा होता ! ढुंढ रहा हूं मिल जाये तो अछा !
शुक्रिया आपका भी...
अर्श
आदरणीय भईया
बिलकुल सही फ़रमाया आपने नुमानी साहब
वास्तव में बेहद उम्दा शायर है
नुमानी साहब को और आप को
बधाइयाँ ............
वसीम बरेलवी साहब की बात सही है कि अपनी शायरी के हुनर से अकील साब’ कई सिम्तों में एतबारी बनाए रखेंगे।
कुछ शेर तो संग्रहणीय लगे!
आप अपनी रचनाओं को रखने के साथ साथ जो नयों का सतत परिचय कराते रहते रहते हैं, यह अलग से सराहनीय है।
इधर लम्बे समय से आपकी गजल पढ़ने को नहीं मिली, आगे की पोस्ट में उम्मीद है जिसकी!
"पाते हैं कुछ गुलाब पहाड़ों में परवरिश
आती है पत्थरों से भी खुशबू कभी कभी"
अकील नोमानी भी ऐसा ही एक शायर है जो सिर्फ दिखने में पत्थर नज़र आता है लेकिन करीब जाओ तो उसकी मोम जैसी नरमी और शहद जैसी मिठास का अंदाज़ा होता है.
मुझे खुशी है कि मैं उनके करीब, बहुत करीब हूँ.
इस पोस्ट के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ. आज, जब हर कोई अपनी तारीफ, अपने प्रचार में मशगूल है, आप लगातार दूसरों को हाईलाईट कर रहे हैं, कलेजे का काम है.
Akeel nomaani sahab ke is parichay ke liye bahut bahut aabhar.
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है ..
अकील साहब के शेरों से उनका परिचय मिलता है ... बहुत ही उम्दा शायरी और शायर से मिलवाने का शुक्रिया ..
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
मैं जिन लोगों को खुद से मुख्तलिफ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
mann khush ho gaya
अकील नोमानी साहब की 'रहगुज़र' की बेताबी से प्रतीक्षा है...आपने कमाल के शेर प्रस्तुत किये हैं...इन्हें पढ़ कर किताब पाने की बेताबी कई गुना बढ़ गयी है...
नीरज
अक़ील नोमानी जी को पढ़ने का मौक़ा मिला था।
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में
काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है
फ़ितरत में तो दोनों की बहुत फ़र्क़ है लेकिन
ताक़त में समंदर से नदी कम नहीं होती...
THESE LINES SHOWS THE METTLE OF AKEEEL NOMANI SAHAB. A INCREDIBLE SHAYAR WITH A CHILDISH HEART..!!!!
THANKS YOU MY MENTOR...!!!!
भाई सिंह साहब बहुत ही सुन्दर पोस्ट बधाई
भाई सिंह साहब बहुत ही सुन्दर पोस्ट बधाई
महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है
किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती
वाह वा.
अकील साहब को पहले पढ़ा है मगर ज्यादा नहीं पढ़ा, उनकी नई किताब "रहगुज़र" के बारे में जानकार अच्छा लगा कोशिश रहेगी ही जल्द ही इसे पढ़ा जाए.
मैं लमहा-भर को तेरा कुर्ब माँग बैठा था
मेरे नसीब ने सदियों का इंतज़ार किया
.... मैं पिछली टिप्पड़ियों से थोडा अलग सोचता हूँ . हम नहीं जानते ग़ालिब कहाँ से आये किसकी औलाद थे क्या तामील थी क्या खाते ,कमाते ओढ़ते बिछते थे हम तो
" बस इतना जानते हैं कल वो
जाता था जो हम निकले
हजारों ख्वाइशें ऐसी कि
हर ख्वाइश पे दम निकले"
और एक ख्वाइश अकिल की, कि
मैं लमहा-भर को तेरा कुर्ब माँग बैठा था
मेरे नसीब ने सदियों का इंतज़ार किया
तुम क्या हो कोई नहीं जानना चाहे गा बस पढ़े गा
कि
"गुज़ारी ज़िन्दगी हमने भी अपनी इस क़रीने से
पियाला सामने रखा किया परहेज़ पीने से ,
अजब ये दौर है लगते हैं दुश्मन दोस्तों जैसे
कि लहरें भी मुसलसल रब्त रखती है सफ़ीने से"
.....क्या कहोगे उसके बारे में और कहने को शायर छोड़ भी कुछ कहाँ रहा है
कमेन्ट लिखते लिखते कुछ लिख गया इस का क्रेडिट तुम को ही है. भाई हो सो तुम्हारी जेब में अपने सिक्के डाल रहा हूँ
कमेन्ट के साथ इस पुछल्ले को भी तुम और तुम्हारे मुरीद सब बर्दास्त करलें तो ठीक वरना इसे उड़ा देने का राईट तो गूगेल ने तुम को दे ही रखा है
....
दरिया,दरिया घाट समुन्दर
ताके किसकी बाट समुन्दर
बादल भेजें नदियाँ डालें
ऐसे किसके ठाट समुन्दर
औघड़ दानी प्यासा पानी
पहने ओढ़े टाट समुन्दर
चप्पा चप्पा कब्ज़ा मांगे
जैसे बूढ़ा जाट समुन्दर
सुमति
itni achi rachna padhvane ke liye
dhanyavad.dil khush ho gya.
रहगुज़र ढूढ़ कर मँगायी जायेगी अब.... शेर अच्छे चुने आपने....! परिचय कराने का शुक्रिया।
पवन भाई बहुत मुबारकबाद आपको की आपने अकील नोमानी साहब के ऊपर समीक्षा लिखने का काम किया ...इतनी मस्रूफियात के बाद भी आप ऐसा कर लेते हैं .....मुझे आपसे जलन होने लगी है काश मैं भी ऐसा कर पाता ......अकील नोमानी साहब से मेरे काफी पुराने रिश्ते हैं .....बहुत सी बातों का मुझे भी पता नहीं था जिसे आपने बखूबी अंजाम दिया एक बार फिर आपको और अकील भाई दोनों को मुबारकबाद
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