अक्टूबर 24, 2011

अमृतसर के बहाने इतिहास से गुज़रते हुए.....!



माता वैष्णों देवी की इस यात्रा के बाद हमारा अगला पड़ाव अमृतसर था. जम्मू से एन.एच. से होते हुए लगभग 5 घण्टे के सफर के बाद हम देर रात अमृतसर पहुंचे. पहली नजर में ही अमृतसर हमें बडा सुन्दर-सुन्दर सा लगा. जब हम अमृतसर पहुंचे तो आधी रात गुजर चुकी थी, रात का एक बज रहा था..... लेकिन शहर के रास्तों पर सन्नाटे की जगह पर्याप्त हलचल थी. सडकें कुछ चौडी-चौडी थी, रास्तों के किनारे बने ढ़ाबों पर अभी तक ठीक ठाक भीड़ थी. थकान की वज़ह से सुबह का कार्यक्रम बनाकर हम लोग सो गए


हमारे एजेण्डे के मुताबिक सुबह का पहला काम हरमिन्दर साहब (स्वर्ण मंदिर) पर मत्था टेकना था. हम निकल लिए हरमिन्दर साहब की तरफ. रात के विपरीत अब नजारा बिल्कुल अलग था. सडकें वाहनों और खरीददारों से भरी हुई थी .... रात जो सडकें चौड़ी- चौड़ी नजर रही थीं , भीड़ ने उनका नजारा बिल्कुल बदल दिया था. बहरहाल तमाम संकरे बाजारों से होते हुए हम हरमिन्दर साहब पहुंचे. हरमिन्दर साहब के कारण ही अमृतसर की दुनिया भर में पहचान है. रिकॉर्ड बताते हैं कि भारत में आगरा के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को ही देखने आते हैं. अमृतसर का इतिहास बहुत गौरवमयी है. यह शहर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है, वो चाहे जलियांवाला बाग नरसंहार हो या मुल्क के बंटवारे के दौरान दंगे. अफगान और मुगलों कि बर्बरताओं के बावजूद इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से इस शहर कि गरिमा को बनाये रखा. बहरहाल हम पहुंचे श्री हरमिंदर साहब , जिसे श्रद्धा से दरबार साहिब या स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है जो सिखों का पावनतम धार्मिक स्थल है. भौगोलिक रूप से पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है. स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं. अमृतसर का नाम अमृत सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु रामदास ने किया था. पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है. यहां कि अद्भुत विशेषता लंगर है जो चौबीस घंटे चलता है, जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है. श्री हरमंदिर साहिब में ही एक जुजूबे का वृक्ष भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुद्धा इसी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे. इतिहास बताता है कि स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया गया लेकिन भक्ति और आस्था के चलते सिक्खों ने इसे फिर पुराना रूप दे दिया. 19 वीं शताब्दी में जब अफगा़न हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया तो महाराजा रणजीत सिंह ने इसे केवल दोबारा बनवाया बल्कि इसे सोने की परत से भी सजाया. पूरे स्वर्ण मंदिर में फ्लड लाइट्स की व्यवस्था की गई है जिससे शाम के समय यह स्थल बहुत ही प्रकाशमान हो जाता है. लगभग 400 साल पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद अर्जुन देव ने तैयार किया था. हरमंदिर साहिब में पूरे दिन गुरबाणी (गुरुवाणी) की स्वर लहरियां गूंजती रहती हैं. मंदिर परिसर में पत्थर का एक स्मारक भी है जो, जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगाया गया है. मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्वर्ण जड़ि, अकाल तख़्त है. सिक्ख पंथ से जुड़े मसलों का समाधान इसी सभागार में किया जाता है.


अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था. पास में बाबा अटल नामक स्थान पर एक नौमंजिला इमारत भी है. बताते हैं कि हरगोविंद सिंह के बेटे अटल राय का जन्म इसी इमारत में हुआ था. हमने अमृतसर पर मत्था टेकने के बाद यहॉं के प्रसिद्व लंगर भोज का आनन्द लिया. क्या राजा क्या फकीर ..........समानता का असली दर्शन इस लंगर में देखने को मिला. लाखों लोगों का रोजलंगर छकनाइस मंदिर की महान परम्परा है,जिस पर हम गर्व कर सकते हैं.
मंदिर में मत्था टेकने के बाद हम रवाना हुए जलियां वाला बाग की तरफ................ जलियां वाला बाग की दूरी हरमिन्दर साहब से लगभग 500 मीटर की है. हम सब इस ऐतिहासिक स्थल पर पैदल पहुंचे. इस स्थल पर पहुँचते ही हमें अद्भुत अनुभव हुआ. यह वही जगह है ,जिसने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप निर्धारित किया था हमे याद आया कि .... जलियाँ वाला बाग़ में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे आन्दोलनकारियों महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हज़ारों लोगों को घायल कर दिया था. दरअसल पहले विश्व युद्ध में भारतीय नेताओं और जनता ने ब्रिटिश हुकूमत का साथ यह सोच कर दिया था कि युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटिश सरकार भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में सोचेगी मगर परंतु ब्रिटिश सरकार ने इसके विपरीत जाकर मॉण्टेगू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार लागू कर दिए जो इस भावना के विपरीत थे. पूरे देश में इन सुधारों का विरोध किया गया किन्तु पंजाब में यह विरोध कुछ अधिक बढ़ गया. भारत में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिशों का विरोध किन विदेशी शक्तियों की सहायता से हो रहा था, यह पता लगाने के लिए 1918 में एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक सेडीशन समिति नियुक्त की गई . इस समिति के सुझावों के अनुसार भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) का विस्तार कर के भारत में रॉलेट एक्ट लागू किया गया था, जो आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए था. इस एक्ट के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को इस प्रकार के अधिकार दिए गए कि जिससे वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ़्तार कर सकती थी, किसी भी भारतीय पर बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी, आदि..... इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां दे रहे थे. यह वो समय था जब राष्ट्रीय आन्दोलन नया मोड़ ले रहा था....... अमृतसर में इस एक्ट के विरोध में लगभग करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे हुए और जनसभा की. उल्लेखनीय है कि यह आंदोलन इसलिए भी गति पकड़ गया था क्योंकि पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को इस एक्ट के तहत पहले गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दी जा चुकी थी. जब भीड़ इकट्ठी हुयी तो इस भीड़ पर हुकूमत ने गोलियाँ चलवा दीं. तत्कालीन ब्रिटिश सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार इस गोलीबारी में 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए. राष्ट्रीय आन्दोलन का अगला चरण इसी घटना की परिणिति थे


जलियां वाला बाग में यूँ तो काफी पर्यटक दर्शक थे. रात में यहां लाइट-साउण्ड शो भी होता है. मगर इस स्थल को देखकर एक टीस भी उठी कि इस स्थल के संरक्षण पर यूँ तो काफी ध्यान दिया गया है, परन्तु शायद इस स्थल को और भी गरिमामयी ढंग से संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है. यही वे चन्द जगहें है जो हमारे राष्ट्र केवर्तमानका आधार है. राष्ट्रीय - शौर्यपरक इतिहास को भूलकर भला प्रगति कैसे पाई जा सकती है? जलियां वाला बाग के अन्दर गोलियों के निशान और गोली चलाने की जगह ,वो कुआ जिसमें डूबकर हजारों शहीद हुए थे......सब कुछ सुरक्षित है लेकिन शायद इन्हें और सम्मान सरंक्षण देने की आवश्यकता है


अमृतसर की इस पवित्र धरती परलाल भवनदेखना भी पवित्र अनुभूति रही. अमृतसर के मॉंडल टाउन में स्थितिलाल भवनएक निजी ट्रस्ट का मंदिर है, लेकिन इस मंदिर की ख्याति काफी है. इस मंदिर की स्थापना 1923 कसूर पाकिस्तान में जन्मीमाता लालदेवी जीने 1956 में की. ट्रस्ट के अधिकारियों ने बताया कि संस्थापिका माता जी को बचपन से ही दिव्य शक्तियां प्राप्त थी, आरम्भ में यह मन्दिर एक-दो छोटे-छोटे कमरों में चला जो आज के विशाल मंदिर में परिवर्तित हो गया है. इस मंदिर में कई देवी-देवताओं के चित्र-प्रतिमा थे, सफाई-सफाई भी उच्च कोटि की थी. इस मंदिर मेंवैष्णों देवीके प्रतिरूप में एककत्रिम गुफाका निर्माण किया गया है. जानकारी हुई है कि माता लालदेवी ट्रस्ट कई सामाजिक कार्यो को करने का काम कर रहा है


बाघा बोर्डर की परेड और अमृतसर के खान पान - बाज़ार के विषय में कुछ और स्मृतियाँ अगले अंक में....!

12 टिप्‍पणियां:

kaushal ने कहा…

अत्यंत सुन्दर,तथ्यपरक एवं जीवंत लेख !...
पढ़कर लगा कि जैसे विपिन चन्द्रा की ''मोडर्न इंडिया ''
का कोई अध्याय पढ़ रहा हूँ !.........,,
,,,, ''नायाब नजरिया ''----लाजबाव पोस्ट !!

SACHIN SINGH ने कहा…

VERY BEAUTIFUL POST.....HISTORICAL KNOWLEDGE IS SO BEAUTIFUL THAT I FEEL
I AM READING SMALL ENCYCLOPEDIA OF GREAT CITY-AMRITSAR.

THANKS FOR UR BEAUTIFUL POST...!!!!

HAPPY DIWALI.........DEAR CHACHA JI.

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

kya khub likha hai...bahut sundar...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

सिंह साहब, बहुत ही रोचक शैली में लिखा गया ये यात्रा वृतांत ज्ञान में वृद्धि करने वाला साबित हुआ है...बहुत बहुत बधाई...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया वृतांत तैयार हो रहा है।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अमृतसर का नाम अमृत सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु रामदास ने किया था.

इसकी जानकारी नहीं थी मुझे ...
गई तो हूँ एक बार पर छोटे रहते ....
गुरु अर्जुन देव का लिखा गुरु ग्रन्थ साहिब भी सबसे पहले यहीं रखा गया था शायद .....?

brajesh FAS98 ने कहा…

{अत्यंत सुन्दर,तथ्यपरक}आज भी आप इतनी मेहनत कर ले रहे हैं ये वाकई अभूतपूर्व बात है . इसलिए कोटि कोटि धन्यवाद और बधाई .

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

आदरणीय महोदय
आपके सौजन्य से हमें भी माँ वैष्णवदेवी और अमृतसर के दर्शनों का सुअवसर प्राप्त हो सका इन पुण्य क्षणों को हमारे साथ साझा करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार
आपकी पोस्ट सराहनीय है शुभकामनाऐं!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जो बोले ... सो निहाल ...

सत् श्री आकाल ...

वाहे गुरु जी दा खालसा ... वाहे गुरु जी दी फ़तेह ...

मेरी दिली तमन्ना है एक बार अमृतसर जाने की ... देखते है कब पूरी होती है ! आपका आभार ... इस पोस्ट के लिए !

वाणी गीत ने कहा…

इस बहाने हम भी गुजर आये अमृतसर के इतिहास के झरोखों से !

sourabh sharma ने कहा…

मैं हिंदू हूँ लेकिन आध्यात्मिक अनुभूति मुझे हमेशा स्वर्ण मंदिर से होती है पता नहीं क्यों?

SANDEEP PANWAR ने कहा…

अब आगे बताओ