एक मुद्दत से ब्लॉग पर अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाया। दरअसल प्रदेश में चल रहे विधान सभा चुनाव में लगातार प्रशासनिक व्यस्तता के चलते ब्लॉग की गलियों से गुजरना जरा कम ही हो पाया।
इसी बीच दिल्ली के २०वे विश्व पुस्तक मेले में मेरी ग़ज़लों/नज़्मों के संग्रह ‘वाबस्ता’ का लोकार्पण भी हुआ। ऐसे विश्व पुस्तक मेले में जहाँ देश विदेश के हजारों प्रकाशक जमा हुये हों और सैकडों नामचीन-गैर नामचीन लेखकों की रचनाओं का लोकार्पण हुआ हो उस माहौल में मेरी पहली कृति का आना मेरे लिये सुकून की बात रही। ‘वाबस्ता’ का प्रकाशन, 'प्रकाशन संस्थान -दिल्ली' द्वारा किया गया है। लगभग आयताकार डिजायन वाली इस कृति का आवरण पृष्ठ देश के प्रख्यात चित्रकार डा0 लाल रत्नाकर जी ने तैयार किया है। इस मजमुऐ को सामने लाने में यूँ तो कई करीबी लोगों का आशीर्वाद और मेहनत साथ रही लेकिन फिर भी इस अवसर पर बेतरबीब से पड़े काग़जों को मज़मूए की शक्ल में आप तक लाने में अनुज पंकज (जो आजकल व्यापार कर में उप-आयुक्त हैं), हृदेश (हिन्दुस्तान में सह संपादक), पुष्पेन्द्र, श्यामकांत को भी मैं ज़हृन में लाना चाहूँगा , जिनके बगै़र यह मज़मूआ आना मुमकिन न था।
मेरे जैसे व्यक्ति के लिये ‘वाबस्ता’ के जरिये दरबारे ग़ज़ल में ठिठके हुये कदमों से अपनी आमद की कोशिश भर है। शुक्रगुजार हूं उर्दू अदब की अजीम शख्सियत जनाब शीन काफ़ निज़ाम का जिन्होंने मेरे जैसे नवोदित रचनाकार के प्रथम प्रकाशित संग्रह पर भूमिका लिखकर मेरी हौसला अफजाई की है। गुजरे आठ-दस बरसों में मैं जो कुछ भी अच्छा बुरा कह सका उनमें से कुछ चुनिन्दा ग़ज़लों/नज़्मों को इस संग्रह के माध्यम से आप सब के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश की है। मेरी इन ग़ज़लों/नज़्मों को उस्ताद शाइर जनाब अकील नोमानी की नजरों से गुजरने का भी मौका मिला है। मैं वाबस्ता के प्रकाशन के अवसर पर अपने सभी शुभ चिन्तकों को शुक्र गुजार हूँ जिन्होंने मुझे इतना स्नेह दिया कि मैं इस संग्रह को प्रकाशित करने की हिम्मत जुटा सका। मैं जनाब शीन काफ़ निजा़म, जनाब मोहम्मद अलवी, प्रो. वसीम बरेलवी, श्री शशि शेखर, जनाब अक़ील नोमानी, श्री हरीशचन्द्र शर्मा जी, श्री अतुल महेश्वरी , डॉ . लाल रत्नाकर, श्री कमलेश भट्ट ‘कमल’, श्री विनय कृष्ण ‘तुफै़ल’ चतुर्वेदी के अलावा मैं अपने माता पिता-पत्नी का दिल की गहराईयों से आभार प्रकट करता हूँ कि जिनकी मदद से मैं यह संग्रह आप सबके समक्ष पेश कर सका। इस संग्रह की एक ग़ज़ल आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ-
इश्क में लज़्ज़ते मिला देखूँ
उससे करके कोई गिला देखूँ
कुछ तो ख़ामोशियां सिमट जाएँ
परदा-ए-दर को ही हिला देखूँ
पक गए होंगे फल यकीनन अब
पत्थरों से शजर हिला देखूँ
जाने क्यूँ ख़ुद से ख़ौफ लगता है
कोई खंडर सा जब कि़ला देखूँ
इस हसीं कायनात बनती है
सारे चेहरों को जब मिला देखूँ
कौन दिल्ली में ‘रेख़्ता’ समझे
सबका इंगलिस से सिलसिला देखूँ
बैठ जाऊँ कभी जो मैं तन्हा
गुजरे लम्हों का का़फि़ला देखूँ
(**** हिंदी समाचारपत्र हिन्दुस्तान ने वाबस्ता पर एक समीक्षात्मक लेख प्रकाशित किया है जो यहाँ पढ़ा जा सकता है http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-227149.html )
32 टिप्पणियां:
पुस्तक के लिए बधाई ....
गजल बहुत शानदार है ...
बधाई ....और शुभकामनायें
बहुत बहुत बधाई.
खुबसूरत गजल...
"वाबस्ता" के प्रकाशन/विमोचन के लिए सादर बधाई....
इस हसीं कायनात बनती है
सारे चेहरों को जब मिला देखूँ
वाह .... बेहतरीन ग़ज़ल
‘वाबस्ता’ को सभी स्नेह मिले यही शुभकामना है ...... बधाई आपको
वाबस्ता के लिए बधाई आपको... और शुभकामनाएं
बेहतरीन ग़ज़ल ....बहुत बहुत बधाई....
पक गए होंगे फल यकीनन अब
पत्थरों से शजर हिला देखूँ....
waah bahut umda...!!
VAWASTA SE GUJARANA SANSKARO SE LABREJ INSAAN SE MUKHATIB HONE KE JAISA HAI...
BAHUT-2 BADHAI.... ,CHACHA JAAN
Heartiest congratulations....
सबसे पहले तो मेरी बधाई ... स्वीकार करिए...
कौन दिल्ली में ‘रेख़्ता’ समझे
सबका इंगलिस से सिलसिला देखूँ
बैठ जाऊँ कभी जो मैं तन्हा
गुजरे लम्हों का का़फि़ला देखूँ
यह पंक्तियाँ ग़ज़ब की हैं...
और मैंने अपना पोस्टल एड्रेस SMS कर दिया है...
बुलंदियों से बाबस्ता की खुबसूरत इब्तदा है...
hirdesh
'वाबस्ता' के प्रकाशन की हार्दिक बधाई.
नवरात्रि और नववर्ष की भी हार्दिक बधाई.
बेहतरीन ग़ज़ल .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
Badhai ... Bahut Bahut badhai is prakashan par ...
बढ़िया, बहुत बहुत बधाई
वाबस्ता पढ़ने का अवसर मिला। खूबसूरत ग़ज़लें और नज़्में, प्रशासनिक व्यस्तताऍं अब व्यस्तताऍं कम उलझनें अधिक हो चली हैं। इस बीच साहित्य सृजन में सक्रियता बनाये रखना, जन-जन के दर्द को समझना, आत्मसातृ करना और काव्य में ढालना, वास्तव में सराहनीय है।
बैठ जाऊँ कभी जो मैं तन्हा
गुजरे लम्हों का का़फि़ला देखूँ
खूब ग़ज़ल कही है. पुस्तक के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई.
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें....
पुस्तक के लिए बधाई ....
पुस्तक के लोकार्पण की बहुत-बहुत मुबारकबाद और गजल तो है ही बेहतरीन ...
ब्लॉग के जरिये आप से मिलना हुआ अच्छा लगा ............परिवार में सब सानंद होंगे ....ऐसी आशा करती हूँ !
सार्थक पोस्ट , आभार.
मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
"वाबस्ता" पढ़ रहा हूँ और आपके हुनर की दाद दे रहा हूँ...निहायत खूबसूरत शायरी है...जल्दी ही इस पर एक पोस्ट लिखूंगा...
नीरज
पुस्तक के लिए ढेरों बधाई......
अनंत शुभकामनाएँ उज्जवल भविष्य के लिए.
सादर
अनु
आपको बहुत-बहुत बधाई ... वाबस्ता के लिए अनंत शुभकामनाएं
bahut sundar...
welcome to माँ मुझे मत मार
बधाई भाई जी ....
पुस्तक प्रकाशन के लिए हार्दिक शुभकामनायें!
पुस्तक प्रकाशन की बहुत बधाई! गज़लें छप गयी हैं तो सुकून महसूस कर रहा हूँ--पढ़ना और सहेजना दोनों आसान हो गया है! झट से लेता हूँ किताब!
आभार।
वाबस्ता के लोकार्पण की बधाई स्वीकार करें।
प्रस्तुत गज़ल शानदार है।
आज ही ठाले-बैठे पर बावस्ता की समीक्षा पढ़ी और वहीं से यहां का लिंक मिला। वाकई बहुत शानदार लिखते हैं आप। अभी फुरसत से पढ़ना बाकी है..
आपसे मिलना अच्छा लगा ... हार्दिक शुभकामनायें..
Badhayi.......
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