जनवरी 21, 2011

वो मेरा खुदा है कि नहीं.....!


इधर लम्बे समय से कोई पोस्ट ब्लॉग पर नहीं लगा सका....सोचा चुप्पी तोड़ी जाये. आगाज़ एक ऎसी ग़ज़ल से कर रहा हूँ जो मेरी धर्मपत्नी ने लिखी है.....तमाम अरूज़ी गलतियों के बावजूद सिर्फ रदीफ़ के निबाह के आधार पर इसे ग़ज़ल का नाम दिया जा रहा है ! मुलाहिजा फरमाएं.... :-


उसकी बातों में कहीं मेरी अदा है कि नहीं
मैं भी देखूं कि वो मेरा खुदा है कि नहीं !!

बढ़ते ही जाते हैं उसकी यादों के सफ़र
जेह्न जाता है कहाँ दिल को पता है कि नहीं !!

कल उड़ाई थीं जुल्फें परीशाँ जिसने
आज भी उसकी गली में वो हवा है कि नहीं !!

तब तो बिखरी थी तुम्हारी ही नज़र से खुश्बू
अब भी क्या तेरी नज़र में वो नशा है कि नहीं !!

उसने छोड़ा था जिस हाल में 'गेसू' तुझको
आज भी तीर वहीँ दिल पे लगा है कि नहीं !!

24 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

मैं भी देखूं वो मेरा खुदा है की नहीं ...
धर्मपत्नी जी को बधाई !

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

तब तो बिखरी थी तुम्हारी ही नज़र से खुश्बू
अब भी क्या तेरी नज़र में वो नशा है कि नहीं !

बहुत ख़ूब !धर्म पत्नी जी को मुबारक हो ग़ज़ल और आप को धर्म पत्नी

शिवम् मिश्रा ने कहा…

भाभी जी पर आपकी संगत का असर है या आप पर उनकी संगत का असर है !?

जल्द मिलता हूँ इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए !

वैसे भाभीजी को हमारी ओर से बहुत बहुत मुबारकबाद दे दीजियेगा ... इस उम्दा ग़ज़ल के लिए !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

तब तो बिखरी थी तुम्हारी ही नज़र से खुश्बू
अब भी क्या तेरी नज़र में वो नशा है कि नहीं !!


बहुत खूबसूरत अहसास पिरोये हैं इस ग़ज़ल में...भाभी को हमारी तरफ से दाद दीजियेगा..
नीरज

Arvind Mishra ने कहा…

प्रयास अच्छा है -धर्मपत्नी मतलब असली पत्नी ही न?:)
जो भी हो ,उनकी रचनाधर्मिता परवान चढ़े -शुभकामनाएं !

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…


गजल का हर शेर बहुत कुछ कह रहा है। इस शानदार गजल के हार्दिक बधाई।
ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

Rangnath Singh ने कहा…

बहुत बेहतरीन प्रयास है।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

तब तो बिखरी थी तुम्हारी ही नज़र से खुश्बू
अब भी क्या तेरी नज़र में वो नशा है कि नहीं !
.....कुछ बीते वक़्त की पड़ताल और कुछ अपनापन संजोये ये शेर ख़ास लगे.
आप दोनों को बहुत बहुत बधाई!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

हमे तो गलतिया नज़र नही आयी .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत खूब, वाह वाह..

Vijay ने कहा…

after long time....nice one......try to be post atleaast once in month specially " sansmaran"

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत खूबसूरत अहसास पिरोये हैं ग़ज़ल में|बधाई|

गौतम राजऋषि ने कहा…

किसकी शामत आयी है कि मैम की ग़ज़ल में गलतियाँ निकाले...

पूरी ग़ज़ल है एकदम मुकम्मल। मतला आपको लेकर तो नहीं लिखा गया है कलेक्टर साब? दूसरे शेर का मिस्रा-सानी कमाल का है। मैम को इस पर अलग से मेरी ढ़ेरम-ढ़ेर दाद पहुँचाइयेगा। ...और तखल्लुस बड़ा ही दिलकश है...

वो नये साल वाली ग़ज़ल कहाँ गुम हो गयी ब्लौग से?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कल उड़ाई थीं जुल्फें परीशाँ जिसने
आज भी उसकी गली में वो हवा है कि नहीं ...

subhaan alla .. क्या naajuki है शेर में ... mazaa aa gaya janaab ....

गौतम राजऋषि ने कहा…

हुजूर, कहाँ हैं? पता है कि ये मैम की ग़ज़ल थी...और शाय्द इसलिये बड़े दिनों तक ये ही पन्ना खुला हुआ है। अब हम नये पाने की प्रतिक्षा में है एक नयी ग़ज़ल लिये हुये...

तिलक राज कपूर ने कहा…

'तमाम अरूज़ी गलतियों के बावजूद' कहकर आपने पंगा ले लिया। सृष्टि के प्रथम पुरुष हैं जिसने कोई त्रुटि न होते हुए भी ऐसा कहने का साहस किया। लोग तो ग़ल्‍ती होने पर भी चुप रहते हैं।
बहरहाल, ग़ज़ल खूबसूरत मनोभावों से भरी है और बधाई योग्‍य है।
आपने शायद ध्‍यान नहीं दिया कि ऐसे रदीफ़ उस्‍ताद ही प्रयोग में लाते हैं।

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

दुरुस्त तो लगी जी, अंतिम के दोनों शेर मुझे मात्रा-विधान में चौकस लगे।

भाभी जी को प्रणाम कहियेगा।

सादर..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत दिनों के बाद आया हूँ... और यह ग़ज़ल तो बहुत अच्छी लगी... और छूटी हुई पोस्टें पढ़ कर दोबारा आता हूँ....

होप यू विल बी फाइन....

Satish Saxena ने कहा…

शुभकामनायें उनको, अच्छा प्रयास रहा है !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

सही कहूँ तो मेरा अब ब्लॉग से मोह भंग हो चूका है... पर पढना बदस्तूर जारी है... ब्लॉग पर मुझे आप और गौतम... बहुत अच्छे लगते हैं... ग़ज़ल में नित नए प्रतिबिम्ब आप दोनों से सीखने को मिलते हैं... .. कुछ ज़िन्दगी में मसरूफियत इतनी बढ़ गयी है... कि बहुत दिनों से आपको ब्लॉग पर देख नहीं पाया... इसके लिए मैं शिद्दत से और तहेदिल से मुआफी चाहता हूँ.... आपसे गुज़ारिश है.... कि मुझे आपको पढना अच्छा लगता है... तो कुछ नया पोस्ट करते रहा करिए...

कल उड़ाई थीं जुल्फें परीशाँ जिसने
आज भी उसकी गली में वो हवा है कि नहीं !!

मैं इन पंक्तियों के बारे में क्या कहूँ... लाजवाब कर दिया...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

सही कहूँ तो मेरा अब ब्लॉग से मोह भंग हो चूका है... पर पढना बदस्तूर जारी है... ब्लॉग पर मुझे आप और गौतम... बहुत अच्छे लगते हैं... ग़ज़ल में नित नए प्रतिबिम्ब आप दोनों से सीखने को मिलते हैं... .. कुछ ज़िन्दगी में मसरूफियत इतनी बढ़ गयी है... कि बहुत दिनों से आपको ब्लॉग पर देख नहीं पाया... इसके लिए मैं शिद्दत से और तहेदिल से मुआफी चाहता हूँ.... आपसे गुज़ारिश है.... कि मुझे आपको पढना अच्छा लगता है... तो कुछ नया पोस्ट करते रहा करिए...

कल उड़ाई थीं जुल्फें परीशाँ जिसने
आज भी उसकी गली में वो हवा है कि नहीं !!

मैं इन पंक्तियों के बारे में क्या कहूँ... लाजवाब कर दिया...

brajesh FAS98 ने कहा…

very sensible .I think you are made for each other.

संजय भास्‍कर ने कहा…

पूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.

बेनामी ने कहा…

bahut khub sir ji