अरसे बाद ग़ज़ल कही है...... ! आप की खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ_____----
किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या
वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या
मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा
मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या
किरन आयी कहाँ से रौशनी की
अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या
मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं
‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’
मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या
ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या
मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या
वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या
मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा
मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या
किरन आयी कहाँ से रौशनी की
अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या
मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं
‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’
मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या
ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या
मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या