अरसे बाद ग़ज़ल कही है...... ! आप की खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ_____----
किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या
वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या
मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा
मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या
किरन आयी कहाँ से रौशनी की
अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या
मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं
‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’
मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या
ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या
मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या
वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या
मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा
मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या
किरन आयी कहाँ से रौशनी की
अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या
मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं
‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’
मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या
ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या
मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
17 टिप्पणियां:
"मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या"
वाह ... मेरे हिसाब से तो हासिल ए ग़ज़ल शेर है यह !
थोड़ा कहा बहुत समझना - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
वाह बहुत खूब
मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या....are waah
ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या
बहुत दिन बाद कही है ,गज़ल बढ़िया कही है .
मैं भी मुंह में जुबां रखता हूँ ,
काश पूछो के मुद्दा क्या है .
लोग कहतें हैं उनको ये पूडल ,
कोई पूछो तो मांजरा क्या है ?
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
बहुत ख़ूबसूरत सृजन, बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपना स्नेह प्रदान करें.
आपकी रचनायें बहुत इंटेंस होती हैं डीपनेस के साथ -बहुत खूब!
"मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ
बताऊँ आपको अपना पता क्या
ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या
ये दो शेर विशेष पसंद आये .....
मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या....kya baat hai.....
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या...
gr8....
अत्यन्त सारगर्भित , आभार !
गजल पसंद आई...
मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा
मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या
मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की
सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
पवन जी,
इन दो शेर के लिए विशेष बधाई स्वीकारें
रिवर्स कंट्रास्ट क्या निखर कर आया है
वाह वा
sunder rachana.
WAH BAHUT UMDA GHAZAL BHAIYA
दार्शनिक अंदाज
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