सितंबर 18, 2008

तीजन बाई .....

बीते मंगलवार को तीजन बाई का प्रोग्राम देखने का अवसर मिला.यूँ तो तीजन जी को टी वी पर कई बार देखा था मगर मंच से उनका प्रोग्राम देखने का अवसर पहली बार मिल रहा था. अपने नियत समय से वे लगभग एक घंटे देर से पहुँची.मगर मंच पर उनके आते ही वातावरण बिल्कुल बदल गया. अपनी मंडली के साथ जैसे ही वे मंच पर पहुँची हॉल में तालियाँ बज उठी. उनके साथ संगीत मंडली थी और पाँच संगीतकार जो तीजन जी का साथ दे रहे थे वे भी मंजीरा, तबला,ढोलक,बैंजो, हर्मोनिअम जैसे परम्परावादी संगीत यंत्रों के साथ मौजूद थे. तीजन जी ने महाभारत के उस प्रसंग की प्रस्तुति की जिसमे कि " दुर्योधन- भीम के गदा युद्ध " होता है और किस तरह भीम दुर्योधन का वध कर के महाभारत के 18 दिन के विकराल युद्ध को समाप्त करते हैं. सचमुच मज़ा आ गया. तीजन जी की परफोर्मेंस बहुत ही एनेर्जेटिक थी. पांडवानी (पांडवों की वाणी) की इस गायिका ने छत्तीसगढ़ी जुबान में महाभारत की प्रस्तुति कर पूरे विश्व (इंग्लैंड,जर्मनी, पेरिस,फ्रांस .....) इस लोक कला का परचम फहराया है.दुनिया के बहुत से देशों में उनके प्रोग्राम होते ही रहते हैं. अगर हम पांडवानी शैली का तकनीकी पक्ष देखें तो इस कला को दो तरीके से प्रस्तुत किया जाता है -एक कापालिक शैली और दूसरी वेदमती. तीजन जी कापालिक शैली की गायिका हैं.उन्हें 1988 में पदम् श्री,1995 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और 2003 में पदम् भूषण से नवाजा गया है. 1956 में भिलाई के पास एक छोटे से गांवमें जन्मी तीजन जी को पांडवानी शैली की शिक्षा अपने नाना ब्रिज लाल से मिली. बाद में महान रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें भरपूर मौके देकर उनको स्टार बना दिया. बाद में उन्हें दुनिया में अपनी कला दिखने का अवसर मिला. अब तो वे डॉक्टर भी हैं........ये अलग बात है कि वे ख़ुद को मंच से निरक्षर बताने में कोई संकोच नही करती. पांडवानी की इस महान गायिका को लोक कलाओं के इतिहास में सदैव अत्यन्त सम्मान के साथ देखा जाएगा.

12 टिप्‍पणियां:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

मैंने भी तीजन बाई का पर्फ़ार्मेन्स देखा है कोई आज से १५ साल पहले की बात कर रही हूँ। बहुत ही सुंदर था, अब तक याद है। छत्तीसगढ़ में ही बड़ी हुई हूँ, ठिठुरते ठंड की रातों में देर रात तक माइक पर पंडवाणी का मधुर राग दूर से तैरता हुआ बंद घरों की खिड़की से भीतर आ जाया करता था, याद ताज़ा हो आई।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

तीजन बाई तो हमारी(छत्तीसगढ़ की) पहचान बन चुकी हैं।

sumati ने कहा…

mujhe bhi ..meri mitee ne
ek pehchan dee thi...

jo mere saur ke bojhe
main.. dab ke pinha hai...

अभिन्न ने कहा…

आपके लेखन की एक खास बात यह है की आप साधारण सी दिखने वाली बातो पर अपनी लेखनी चला कर उसे अव्वल दर्जे की साहित्यिक रचना बना देते है,मंसूरी मेरा भी पसंदीदा हिल स्टेशन है अक्सर यहाँ आना होता रहता है ,आप के संस्मरण पढ़ कर मेरी यादें ताजा हो गई .
तीजन बाई को छोटे परदे पर कई बार देखा,उनकी प्रस्तुति वाकई काबिले तारीफ है आंचलिक शैली में महाभारत का प्रस्तुतीकरण कर के उन्होंने जो पहचान बने है वह हमारे लोक साहित्य और नृत्य को बढावा देने के लिए प्रेरक है,पिज्जा .........सच में बहुत लज़ीज़ बनता है कई बार खा चुका हूँ अब तो मन कर रहा है आज ही मंसूरी जाकर रेड हिल पर पिज्जा का मज़ा लूँ ..
धन्यवाद

कडुवासच ने कहा…

"नजरिया" में पहुँच कर अच्छा लगा, तीजन बाई पर अभिव्यक्ति प्रभावशाली है।

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

तीजन बाई को बहुत पहले टीवी पर देखा था ,उनका वो ऊर्जा से ओत प्रोत परफॉर्मेंस आज भी याद है ,उनकी शैली के बारे में बताने के लिए बहु बहुत शुक्रिया !!!!!!!

Unknown ने कहा…

aapne tijan bai ka chitaran ish prakar kiya hai ki hum bhi tijan bai ka program dekhne ko aatur ho gaye hain.

उमेश कुमार ने कहा…

छत्तीसगढ की लोक संस्कृति अति सम्पन्न है फ़िर भी कुछ जीवट कलाकार ही तीजन बाई जैसे प्रसिद्ध हो पाते है।अगर अन्य प्रतिभाशाली कलाकारो को भी सरंक्षण मिले तो वे भी तीजन बाई जैसी नाम कमाकर छत्तीसगढ का नाम रोशन करेंगे।

fatima ali ने कहा…

पवन जी मैं आपकी बहुत बड़ी कद्रदान हूँ. सच पूछिये तो मैं आपको बहुत चाहती हूँ. मैं दिल से आपका एहतराम करती हूँ. आप जितने अच्छे लेखक है उतने खुबसूरत इन्सान भी है. मुझे लगता है की काश आप मेरी जिन्दगी मैं होते तो कितना अच्छा होता. मुझे पता है आप एक शादीशुदा इन्सान है और मुझे इस तरह की बातें नही करनी चाहिए. लेकिन मैं क्या करूँ पवन जी मैं चाहकर भी ख़ुद को रोक नही पाई हूँ. मेरे बारे में आप क्या सोचेंगे मुझे नही पता. लेकिन प्लीज़ मुझसे नफरत नही करना. मैं ग़लत नही हूँ . उम्मीद करती हूँ आप मुझे भी अपने साथियों में शामिल कर लेंगे.

खुदा हाफिज़

सत्येन्द्र सागर ने कहा…

तीजन बाई का मैं भी बचपन से बहुत बड़ा फैन हूँ . तीजन बाई भारतीय लोक कलाओ की प्रतिनिधि ही नही अपितु प्रेरणा का स्त्रोत भी हैं . भुमंदलिकरण की जिस अंधी दौड़ में हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं वहां तीजन बाई न केवल एक आन्दोलन है अपितु एक अकेडमी भी है. तीजन बाई भारत की लोक कलाओ को पहचान ही नही अपितु संपूर्ण भारत का गौरव है. तीजन को सौ सलाम.

Smart Indian ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई! खुशकिस्मत हैं आप!

fatima ali ने कहा…

क्या पवन जी आपने इतने दिनों से एक भी ब्लॉग नही लिखा क्या आप मुझसे नाराज़ हो गए है? अगर ऐसा है तो मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ. मेरा इरादा आपको परेशां करने का या आपका दिल दुखाने का बिल्कुल भी नही था. प्लीज़ लिखते रहिये ना मुझे बहुत खुशी होगी आपका लिखा हुआ पढ़कर. एक और गुजारिश है आपसे अपना फोटो जरूर एडिट कीजिये ताकि हम आपका चेहरा तो देख सके. मैं काफी दिनों से आपके ब्लॉग का इंतज़ार कर रही थी लेकिन अपने तो एक महीने से कुछ भी नही लिखा. मैं सोच रही थी की अपने कोई नई ग़ज़ल लिखी होगी. प्लीज़ अपनी ग़ज़ल जरूर ब्लॉग पर डालिए

खुदा हाफिज़