आज निदा फाजली का आज जन्म दिन है. निदा साहेब हमेशा से मेरे प्रिय शायर रहे हैं.सच तो यह है कि वे मेरे ही नहीं पूरे अवाम और जहाँ तक हिन्दुस्तानी भाषा समझी जाती है वे वहां तक अपना दखल रखते हैं.यूँ तो उनका अपना हर एक शेर, हर एक नज़्म, दोहे, लेख अपने आप में एक मील का पत्थर है मगर उनकी मकबूलियत का एक छोर " कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता " से भी शुरू होता है. बगैर हिंदी- उर्दू के विवाद में पड़े उन्होंने शायरी का एक लम्बा सफ़र तय किया है...उर्दू में दोहे लिखने का आगाज़ भी उन्ही के जादू का कमाल है. 1938 में जन्मे निदा साहेब जन्म दिन की दिलीदिन की दिली मुबारकबाद .
निदा साहेब भी संघर्षों की एक ऐसी दास्ताँ हैं जो जिंदगी के धूप छाओं से गुज़रती रही है. बँटवारे के बाद पूरे परिवार का पाकिस्तान चले जाना और उनका यहीं रुक जाना....मुंबई आ जाना...पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहना प्रगतिशील उर्दू रायटर्स के बीच पहचान बनाना, मुशायरों में शिरकत करना....1964-80 के बीच का यह सफ़र निदा साहेब के लिए खुद को बनाये रखने की ज़द्दोजहद का समय था....1980 में फिल्म आप तो ऐसे न थे के गीत " कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता " ने उन्हें हर एक जुबान पे ला दिया. अपने इस गीत की सफलता के बाद निदा फाजली ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस गीत ने पूरे भारत में धूम मचा दी। इसके बाद निदा फाजली ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे। वर्ष 1983 में फिल्म रजिया सुल्तान के निर्माण के दौरान गीतकार जां निसार अख्तर की आकस्मिक मृत्यु के बाद निर्माता कमाल अमरोही ने निदा फाजली से फिल्म के बाकी गीत को लिखने की पेशकश की। वर्ष 1998 में साहित्य जगत में निदा फाजली के बहुमूल्य योगदान को देखते हुये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा निदा फाजली को खुसरो अवार्ड, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी पुरस्कार, हिंदी उर्दू संगम पुरस्कार, मीर तकवी मीर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। अब तक निदा फाजली द्वारा लिखी 24 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। अपने जीवन के लगभग 70 वसंत देख चुके निदा फाजली आज भी पूरे जोशो खरोश के साथ साहित्य और फिल्म जगत को सुशोभित कर रहे हैं। मेरा यह दुर्भाग्य ही है की तमाम शायरों -गीतकारों-कवियों-लेखकों से मिलने के बावजूद अभी तक मेरी मुलाकात निदा साहेब से नहीं हो सकी है.....मैं उस दिन के इन्तिज़ार में हूँ जब उनसे मेरी मुलाकात हो. आज उनके जन्म दिन पर मेरी तरफ से मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ जो उन्ही को पेशे खिदमत कर रहा हूँ......
मैं रोया परदेश में भीगा माँ का प्यारदुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
प्रसिद्द शायर शानी उनके बारे में ठीक ही फरमाते हैं “गज़ल की जान हो या ज़बान, सोच हो या शिल्प, छब-ढब हो, रख-रखाव हो या सारा रचनात्मक रचाव—अपने मिज़ाज़, तेवर और रूप में रचनाकार निदा फ़ाज़ली बिल्कुल अकेले ही दिखायी देते हैं। कुछ मायने में तो वे उर्दू के उन बिरले जदीद शायरों में से हैं जिन्होंने न सिर्फ़ विभाजन की तक़लीफ़ें देखीं और सही हैं बल्कि बहुत बेलाग ढंग से उसे वो ज़बान दी है जो इससे पहले लगभग गूँगी थी। उर्दू की शायरी की सबसे बड़ी और पहली शिनाख़्त यह है कि उसने फ़ारसी की अलामतों से अपना पीछा छुड़ाकर अपने आसपास को देखा, अपने इर्द-गिर्द की आवाज़ें सुनीं और अपनी ही ज़मीन से उखड़ती जड़ों को फिर से जगह देकर मीर, मारीजी, अख्तरुल ईमान, जांनिसार अख्सर जैसे कवियों से अपना नया नाता जोड़ा। उसने ग़ालिब का बेदार ज़हन, मीर की सादालौही और जांनिसार अख्तर की बेराहरवी ली और बिल्कुल अपनी आवाज़ में अपने ही वक़्त की इबारत लिखी—ऐसी इबारत, जिसमें आने वाले वक्तों की धमक तक सुनाई देती है। यह संयोग की बात नहीं है कि उर्दू के कुछ जदीद शायरों ने तो हिन्दी और उर्दू की दीवार ढहाकर रख दी और ऐसे जदीदियों में निदा फ़ाज़ली का नाम सबसे पहले लिया जाएगा।“
मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुशवारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है
औरों जैसे होकर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है
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दो और दो का जोड़ हमेशा
चार कहाँ होता है
सोच-समझवालों को थोड़ी
नादानी दे मौला
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता
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सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो
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बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
सब कुछ तो है क्या ढूँढ़ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता
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हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी
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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से
किसको मालूम, कहाँ के हैं, किधर के हम हैं
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं
कभी धरती के, कभी चाँद-नगर के हम हैं
खुदा से दुआ मांगते है की आप यूँ ही लिखते रहे.....और अलम जलाते रहें.
14 टिप्पणियां:
निदा फाजली को जन्मदिन की शुभकामनाएं। आपको भी बधाई जो इतनी अच्छी पोस्ट लगायी।
निदा फाज़ली साहब को जन्म दिन बहुत मुबारक । आपका आभार कि आपने उनके चुनिंदा शेर दुबारा पढवाये । ये वाला तोकमाल है ।
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो
खूब लिखा भईया...''मिलने जुलने का सलीका है जरुरी.वरना आदमी चाँद मुलाकातों में मर जाता है''.ऐसे शेर फाजली की कलम से ही निकल सकतें हैं.जन्म दिन की शुभकामनायें...
मैं रोया परदेश में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
iske bad to kuch khne ki sunne ki talkh hi nhi .
nida fajliji ko jnmdin ki badhai aur shubhkamnaye
बहुत बढ़िया मेरे दोस्त काश मैं भी तुम्हारे जैसा होता उर्दू हिंदी साहित्य के प्रति मेरी भी रूचि होती. लेकिन बहुर अफ़सोस होता है यार मुझे भगवन ने साहित्य को समझने की शक्ति क्यों नहीं दी. वैसे भी नए वैज्ञानिक शोधो में प्रमाणित हो गया है की साहित्य के प्रति लगाव या दुराव वास्तव मैं दिमाग की संरचना पर ही निर्भर करता है. या बहुत कुछ जेनेटिक है. लेकिन जो भी है सब ठीक है. आपको निदा फाजली साहब के जनम दिन की बहुत बधाई. उम्मीद करता हूँ की आप भी निदा फाजली की तरह ऊँचा मुकाम हासिल करो और ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करो.
आपका दोस्त सागर
देर से आई, माफ़ी चाहूंगी. निंदा साहब मेरे भी पसंदीदा शायर हैं. वे लिखते ही इतना अच्छा इहैं कि हरदिल अज़ीज़ हैं.
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता
बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
वाह.....बहुत सुंदर शे'र चुने हैं .....!!
निदा जी को जन्मदिन कि ढेरों शुभकामनाएं .....!!
निदा फाजली साहब पर इतना विस्तार से पहली बार पढ़ा है.
लेख पसंद आया.निदा साहब को उनके जन्मदिवस की बधाईयाँ.
[aap ko mera prayaas[Bharat parytan ]upyogi laga..धन्यवाद.
दीवाली की शुभकामनाये स्वीकारें.
निदा फाजली साहब से आपने सविस्तार परिचय कराया. आपका आभार.
"मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुशवारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है
औरों जैसे होकर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है"
...ऐसा लगता है हमारे मस्तिष्क को पढ़ कर हमारा वजूद लिख दिया गया है. मैं भी मचल गया इस महान सख्सियत से मिलने को. फिलहाल फाजली साहब को जन्मदिन की हार्दिक बधाई और आपको दीवाली की शुभकामनाये.
झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."
regards
एक नज़र यहाँ भी :-
http://burabhala.blogspot.com/2009/10/blog-post_13.html
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
nida fazli sahb ke jeevan ke bare me aapne bahut achchhi jankari di, unki in nazmon ko aapne bahut achchhi tarh pesh kiya, aapko bahut bhut dhanyavad.
Dharm Pal
bahut khub acchi gazal
bahut bahut abhar
जन्म दिन की शुभकामनाय
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