24अक्टूबर शनिवार शाम से शुरू हुए ओसियान सिनेफ़ैन फ़िल्म समारोह की शुरुआत "गुलज़ार साहब को सम्मानित किये जाने के साथ " होने की खबर बहुत सुखद लगी.......इस बरस की शुरुआत में भी तब बहुत अच्छा लगा था जब ऑस्कर में उनके "जय हो" ने हम भारतीयों
को बरसों की साध पूरी होने का अवसर दिया था. दिल्ली में आयोजित ओसियान सिनेफ़ैन फ़िल्म समारोह में गुलज़ार साहब को सम्मानित किया जाना खुद समारोह की इज्ज़त बढाता है. गुलज़ार साहब पर इतना लिखा गया है कि जब भी कुछ लिखने को जी चाहता है तो लगता है कि यह सब तो लिखा जा चुका है. क्या लिखूं उनके ऊपर.... " मोरा गोरा अंग लई ले " से गीतों को लिखने की शुरुआत करने वाले गुलज़ार अब तक "चड्ढी पहन कर फूल खिला है " जैसे मनभावन बाल गीत से लेकर " कजरारे- कजरारे" तक का लम्बा सफ़र तय कर चुके हैं। गीतकार-फिल्मकार-डायेरेक्टर- साहित्यकार और भी न जाने क्या क्या..........गुलज़ार साहब को हमारा इस अवसर पर फिर से एक बार सलाम.....सच तो यह है कि हम हमेशा उन्हें सलाम करने के लिए तैयार रहते हैं....बस कोई बहाना चाहिए।
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते -फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नही
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जनम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी-----------------?
17 टिप्पणियां:
प्यार की इंतेहा इसी को कहते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
गुलजार साहब की कलम को नमन। मुझे स्मरण आ रहा है न्यूयार्क। तब विश्व हिन्दी सम्मेलन में तीन दिन तक गुलजार साहब रहे थे, हम सब उनका सान्निध्य पाकर अच्म्भित हो रहे थे। लेकिन उनका समुचित उपयोग आयोजक नहीं कर पाए, इसका दुख भी था।
बहुत सुन्दर नज़्म पढ़वाई। धन्यवाद।
घुघूती बासूती
खैर ये सही है कि गुलज़ार साहब पर इतना लिखा जा चुका है कि लिखने वाला भी सोचता है कि अब क्या लिखा जाए..लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि गुलज़ार साहब की रचनाओं में इतनी ताजगी और नयापन रहता है कि वो हमें कुछ लिखने का रास्ता दिखा जाता है।
गुलजार साहब की हर बात निराली...
आभार इस उम्दा नज्म को पेश करने का.
जैसा की आपने भी कहा है... गुलज़ार साहब के बारे में क्या कहा जाय !
सही कहा
इससे बेहतर नज़्म क्या होगी
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है.......
हमारा भी सलाम कलम के इस बेताज बादशाह को ....जिसे लोग गुलज़ार कहते है !
isiliye GULJAAR he.../\
umda peshkash
नमन गुलजार साहब को .....AUR AAPKO BHI बहुत सुन्दर नज़्म पढ़वाई ...
सुन्दर नज़्म के लिए आपका शुक्रिया
इतनी सुन्दर रचना पढ़वाने के लिये आपका आभार ।
बहुत खूबसूरत बात कही है, पढ कर दिल खुश हो गया। मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
गुलजार साहब की बेशकीमती लाजवाब नज्म पढ़वाने के लिए आपका शुक्रिया !
गुलजार साहब जैसी अजीम शख्सियत पर जितना भी कहा जाए कम ही है !
आभार व शुभ कामनाएं
गुलज़ार साब की ये नज़्म मेरी सर्वाधिक पसंदीदा नज़्मों में से एक है।
...और हौसलाअफ़जाई का शुक्रिया एसडीएम साब।
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी-----------------?
आपके इन दो lafzon ने wo सब कह दिया जो आप kahna चाहते थे ......!!
'Gulzar' .....nman इस mhaan hasti को ....!!
Gulzaar saheb ka to koi sani nahi..bahut pyaari nazm padhaai shukriya...
blog par aane ka bhaut shukriya aapka.
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