मित्रों ने कहा कि बहुत दिनों से अपनी कोई ग़ज़ल पोस्ट नहीं की....क्या कहता उनसे....असल में खुद को कहाँ तक पोस्ट में रखता रहूँ.....दुनिया जहान में इतने लोग -इतने किस्से -इतनी घटनाएँ हैं कि उनके बारे में लिखते हुए ही आनंद महसूस करता हूँ....बहरहाल अपने दोस्त मनीष की मांग पर बहुत संकोच के साथ एक नयी ताज़ा ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ.......................शायद पसंद आये............!
तेरी खातिर खुद को मिटा के देख लिया !
दिल को यूँ नादान बना के देख लिया !!
जब जब पलकें बंद करुँ कुछ चुभता है,
आँखों में एक ख्वाब सजा के देख लिया !!
बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया !!
कोई शख्स लतीफा क्यों बन जाता है,
सबको अपना हाल सुना के देख लिया !!
खुद्दारी और गैरत कैसे जाती है,
बुत के आगे सर को झुका के देख लिया !!
वस्ल के इक लम्हे में अक्सर हमने भी,
सदियों का एहसास जगा के देख लिया !!
18 टिप्पणियां:
दिल की बात ग़ज़ल कैसे बनती है ??
आज आपको पढ़ कर हमने देख लिया !!
भाई जान, बहुत बढ़िया लिखा है ! यु ही लगे रहिये , शुभकामनाएं !
बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया !!
बेहतरीन है ...हर शेर उम्दा!!
बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया !!
इस शेर की जितनी तारीफ़ कीजये कम है...लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने...
नीरज
धमाचौकडी मचाते बच्चे ही अच्छे लगते हैं
एकदम सही बात है
अरे सिंह साहब....भई लाजवाब ग़ज़ल है सर। दिल से ठीक तरह से तारीफ़ भी नहीं कर पा रहा हूँ।
ग़ज़ल को पढ़ते ही जगजीत सिंह की गायी "तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है" की धुन पर इसे गाने लगा मैं तो।
जबरदस्त मतला है।
तीसरा शेर तो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़....बस उफ़्फ़्फ़्फ़!!!
और चौथा शेर पे हम कुर्बान हो गये।
ये दोनों अशआर तो हीरा हैं हीरा जनाब!...शायद आपको भी सही ढ़ंग से अंदाजा नहीं होगा कि आपने क्या बुना है इन दो शेरों के रूप में। थोड़ी-बहुत जितनी भी आज की ग़ज़लें पढ़ी हैं मैंने, उस बिना पर ये दावा कर रहा हूँ।
फिर से आता हूँ इस नायाब ग़ज़ल को पढ़ने...
खुद्दारी और गैरत कैसे जाती है,
बुत के आगे सर को झुका के देख लिया !!
खूब लिखा भाई.
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है, जनाब आपने
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चाँद, बादल और शाम
क्या लिखा है सर ...मेरे पास तो शब्द ही नहीं है आपके लिए
पर बगेर कहे भी रहा नहीं जाता बहुत उम्दा लिखी है ग़ज़ल
खास तौर पर ये शेर -
कोई शख्स लतीफा क्यों बन जाता है,
सबको अपना हाल सुना के देख लिया !!
सिंह साहब गज़ल बढिया है लेकिन पाँचवे शेर मे वज़न कुछ गडबड लग रहा है ।
bahut acchhi ghazal hai,shandar likh rahe ho,keep it up,dua lab par to aye bhi post karo,..manish
खुददारी वाला शेर आपका हासिले ग़ज़ल शेर है। बधाई।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
''वस्ल के इक लम्हे में अक्सर हमने भी,
सदियों का एहसास जगा के देख लिया !!''
इसे हासिल-ए-गजल कहा जाय तो गलत न होगा |
यक अच्छी गजल के ताई सुक्रिया ...
परयास जारी रखौ ...
जब जब पलकें बंद करुँ कुछ चुभता है,
आँखों में एक ख्वाब सजा के देख लिया
बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया
AAPKE KHYAALON KI UDAAN BAHOOT KAMAAL KI HAI .... BAHOOT ACHHA LIKHTE HAIN AAP ... LIKHTE RAHEN ...
फिर से आया था इस नायाब ग़ज़ल का लुत्फ़ लेने...
"कोई शख्स लतीफा क्यों बन जाता है,
सबको अपना हाल सुना के देख लिया"
वाह हुज़ूर!
खुद्दारी और गैरत कैसे जाती है,
बुत के आगे सर को झुका के देख लिया !!
इस शेर में वजन ठीक करने के लिए ‘सर को’ की जगह ‘शीश’ कर दें। बाकी पूरी गजल लाजवाब है। आपके इस फ़न से हम वाकिफ़ न थे। अचानक नज़र पड़ी तो दिल बाग़-बाग़ हो गया। बधाई।
aapne kitni vastvik sachchai ko gazal ka roop diya hai, very nice
ग़ज़ल है तो महफ़िल है, महफ़िल है तो नजदीकियां है, नजदीकियां है तो मुहब्बत है, मुहब्बत है तो जिंदगी है, तो गज़लों का सिलसिला जारी रखिये ज़नाब.
खुदा हाफिज़
बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया !!
zindaabaad zindaabaad
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