मित्रों अपने ब्लॉग पर एक नयी- ताज़ा ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ....! पढ़कर अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत ज़रूर कराईयेगा ....!
समंदर सामने और तिश्नगी है !
अज़ब मुश्किल में मेरी ज़िन्दगी है !!
तेरी आमद की ख़बरों का असर है,
फ़िज़ा में खुशबूएं हैं,ताज़गी है !!
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है !!
वो आते ही नहीं हैं कर के वादा,
हमारी मौत उनकी दिल्लगी है !!
तेरी आँखों से रोशन है नज़ारे,
तेरी ज़ुल्फों से कोई शब जगी है !!
सुनाये थे जो नग्में कुर्बतों में,
ख्यालों में उन्हीं से नग्मगी है !!
लुटाता रोशनी है बेसबब जो,
उसी के हक में देखो तीरगी है !!
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
तुम्हें हर सिम्त हो मंज़िल मुबारक,
हमारे हक में बस आवारगी है !!
समंदर सामने और तिश्नगी है !
अज़ब मुश्किल में मेरी ज़िन्दगी है !!
तेरी आमद की ख़बरों का असर है,
फ़िज़ा में खुशबूएं हैं,ताज़गी है !!
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है !!
वो आते ही नहीं हैं कर के वादा,
हमारी मौत उनकी दिल्लगी है !!
तेरी आँखों से रोशन है नज़ारे,
तेरी ज़ुल्फों से कोई शब जगी है !!
सुनाये थे जो नग्में कुर्बतों में,
ख्यालों में उन्हीं से नग्मगी है !!
लुटाता रोशनी है बेसबब जो,
उसी के हक में देखो तीरगी है !!
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
तुम्हें हर सिम्त हो मंज़िल मुबारक,
हमारे हक में बस आवारगी है !!
35 टिप्पणियां:
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है !!
बेहद उम्दा शायरी,कई बार ये शेर पढ़ चुकी हूं,बहुत मुतास्सिर करता है ये शेर
लुटाता रोशनी है बेसबब जो,
उसी के हक में देखो तीरगी है !!
वाक़ई सच है ये ,चराग़ तले अंधेरा तो होता ही है
रोशनी बांटने वाले के नसीब में अंधेरा ही होता है
बहुत ख़ूब !
वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बहुत अच्छी है लेकिन ये दो अश’आर कुछ कहने को मजबूर करते हैं
वाह! वाह! बेहद खूबसूरत गज़ल!
मतले से मकते तक का इतना खूबसूरत सफ़र बड़ी मुद्दत बाद हासिल हुआ...ऐसी ग़ज़ल कही है आपने के हर शेर पर रुक कर तालियाँ बजाना लाजिमी हो गया है मेरे लिए...वाह...वा...किन लफ़्ज़ों में तारीफ़ करूँ इस कशमकश में हूँ...ऐसी यादगार और बेमिसाल ग़ज़ल के लिए शायद लफ्ज़ इजाद ही नहीं हुए हैं...मेरी दिली दाद कबूल करें...
यूँ तो आपकी पूरी ग़ज़ल कलेजे से लगाने लायक है लेकिन आपके ये शेर:-
तेरी आमद की ख़बरों का असर है,
फ़िज़ा में खुशबूएं हैं,ताज़गी है !!
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है !!
वो आते ही नहीं हैं कर के वादा,
हमारी मौत उनकी दिल्लगी है !!
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
अपने साथ लिए जा रहा हूँ...जब से पढ़ें हैं ज़ेहन में बस गए हैं और अब इन्हें छोड़ना मुमकिन नहीं...
नीरज
बहुत खब, एक बार और फिर एक बार और खुद ही पढ़ता हूं.
बहुत खब, एक बार और फिर एक बार और खुद ही पढ़ता हूं.
हैरान हो जाती हूँ आपकी ग़ज़लों की रवानगी देख कर...
सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं....
हम जैसे तो इनकी तारीफ़ तक करने की ताब नहीं रखते..
बहुत ही ख़ूबसूरत....
शुक्रिया.
वो आते ही नहीं हैं कर के वादा,
हमारी मौत उनकी दिल्लगी है !!
सुभानाल्लाह .....क्या दिल्लगी है .....!
तेरी आँखों से रोशन है नज़ारे,
तेरी ज़ुल्फों से कोई शब जगी है !!
क्या बात है ......बहुत खूब.....!!
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
ग़ज़ल कहना तो कोई आपसे सीखे .....
ये हुनर तो आपसे सीखना पड़ेगा .....!!
भैया, बेहद उम्दा ग़ज़ल है ...........बहुत दिनों बाद आपकी कलम ने फिर कमाल दिखाया है ! माफ़ कीजियेगा पहले नहीं आ पाया ......कुछ कारण ही ऐसे आ गए थे !!
बेहतरीन ग़ज़ल ! हरेक शेर काबीले तारीफ़ है !
वो आते ही नहीं हैं कर के वादा,
हमारी मौत उनकी दिल्लगी है !!
क्या बात है !
दरो- दीवार से ...... सन्नाटे में रह गया हूँ. क्या शेर है, सच्चाई तो यही है. और हम हैं कि यह सच हजम नहीं होता.
पूरी गजल ही बेमिसाल है. आपकी गजलों के प्रति मेहनत इस बात का सबूत है कि आने वाले, नजदीकी वक्त में गजल की परवरिश और उसकी तरक्की देने वालों की फेहरिस्त में जो कुछ थोड़े से नाम होंगे, उनमें आप यकीनी तौर पर शामिल होंगे.
बढ़िया ! कठिन शब्दों के मतलब लिख दिया कीजिये. हमें सुविधा हो जायेगी.
तुम्हें हर सिम्त हो मंज़िल मुबारक,
हमारे हक में बस आवारगी है !!
और फिर आवारगी भी तो एक नियामत है ... मलाल कैसा!!
बहुत सुन्दर गज़ल
bhai SDM, aap ne kaheen likha tha ki main bhee to Agre ke saint johns college se padha hoo, aaj achanak vo bat yad aa gayee aur yaha aa gaya. ek achchhee gazal padhane ko mili. dhanyvaad. bhagvaan kare Sarwat Jamal ka kaha sach nikale.mai do panktiyaa jode ja raha hoon--
bahut gahari hain baaten
magar kya saadagi hai
तेरी आमद की ख़बरों का असर है,
फ़िज़ा में खुशबूएं हैं,ताज़गी है ..
जो उनके आ जाने से आ जाती है चेहरे पे रौनक ...
वाह ... सुभान अल्ला ... ग़ज़ब से शेर हैं सब ... लाजवाब .... मज़ा आ गया पूरी ग़ज़ल पढ़ कर ...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
वाह जी वाह..हिन्दी और उर्दू के शब्दों का बेहतरीन संयोजन..ग़ज़ल खूबसूरत बन पड़ी है...प्रस्तुति के लिए आभार
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है !!
सुनाये थे जो नग्में कुर्बतों में,
ख्यालों में उन्हीं से नग्मगी है !!
ये दो शेर पसंद आये..
समंदर सामने और तिश्नगी है !
अज़ब मुश्किल में मेरी ज़िन्दगी है !!
समंदर और तश्नगी को साथ- साथ रख कर
क़यामत बरपा कर दी है आपने जनाब
अकेला मिसरा ही कामयाब बन पडा है
और...
लुटाता रोशनी है बेसबब जो,
उसी के हक में देखो तीरगी है !!
शेर ...
पहले से ही कह गयी बात को एक अलग तरीक़े से
बयान कर पाने में खरा हो चुका है ... वाह !!
पूरी ग़ज़ल क़ाबिल-ए-ज़िक्र है .... बधाई
ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है....
और ये शेर.....
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है...
ज़ेहन में बस गया और....
दाद के लिए
मुनासिब से अलफ़ाज़ भी नहीं मिल रहे हैं.
समंदर सामने और तिश्नगी है !
अज़ब मुश्किल में मेरी ज़िन्दगी है !
पहले ही शेर ने ढेर कर दिया। वाह!
हर ग़ज़ल कसी हुई जैसे किसी सांचे से निकाल लाते हों आप।
हरजीत जी की ग़ज़लों का समर्थन करने के लिए धन्यवाद अगर उनके बारे में कुछ जानकारी हो तो साझा करने की कृपा करें।
पवन भाई, आपकी इस ग़ज़ल को उसकी शैशवावस्था में देखने का सुयोग मुझे मिला और फिर उसे उसकी परिपक्वावस्था में देख-पढ़ कर मन खुश हो गया. शेर अपने में जिन्दगी का जो फ़लसफ़ा संजोये हुए है, उसे देखने को बहुत ही परखी नजर कि जरुरत होती है. आपकी नजर और नजरिया, दोनों ही अपने वक़्त को आइना दिखाते हैं..दुआ है कि यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहे. शुभकामनाएँ!
खूबसूरत गज़ल. सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं. मतले के साथ यह शेर बहुत प्रभावित करता है...
समंदर सामने और तिश्नगी है !
अज़ब मुश्किल में मेरी ज़िन्दगी है !!
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
बहुत प्यारी ग़ज़ल, बच्ची कोई ज्यूँ
ठुनक-कर,आँख मलकर अब जगी है
बहुत सुन्दर ग़ज़ल, मज़ा आ गया।
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है ..
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम,
मगर बुनियाद से बावस्तगी है
लुटाता रोशनी है बेसबब जो,
उसी के हक में देखो तीरगी है
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है
कोई भी शेर ऐसा नही जो पसन्द न हो लाजवाब गज़ल के लिये बधाई
sms kiye bina hi post kardali . dont forget u must ristrict ur passion need not to have tnt or rdx gazals
behave under ctbt
sumati
भैया पूरी की पूरी गजल बेहतरीन है
शेर चुन पाना बेहद मुश्किल हो गया
हर शेर की अपनी जुबान है ...........
सर्वात साहब की बात से में पुर्णतः सहमत हूँ
पर मेरी राय है की आप बेहतरीन गजलकारों की लाइन में नहीं बल्कि सबसे
आगे होंगे शीर्ष पर ...................!
पवन सर,
नमस्कार , काफी समय बाद आपकी गज़लें मैंने आज पढ़ी.
आपकी गज़लें पढ़ने के बाद लगता ही नहीं की ये गज़लें लिखने वाले का प्रसाशनिक कार्यों से कोई वास्ता भी होगा.
मयंक चतुर्वेदी
नेटवर्क इंजिनियर, यूपी स्वान
गोरखपुर.
ohho..kya khoob likha hai..wah!
भैया ,
देर नहीं बहुत देर से टीप रहा हूँ .. पर आता रहता था , टीपों को पढता रहता था .. गजल पढता था , मुदित होता था , समंदर और तिश्नगी जैसा ! फिर शेष इच्छा !
@ दरो-दीवार से भी है मरासिम ,,,,,,,,,,,,,
--- यस शेर ख़ास ध्यान खींचता है ! स्वाभाविक है अगर दरोदीवार से मरासिम हैं तो बुनियाद से कोई बड़ी खुशी नहीं होगी ! पर नियति तो है यही कि बुनियाद से बावस्तगी रखनी ही होगी !
@ मौत ...... दिल्लगी --- कहावत है , '' चिरई कै जिउ जाय / गेदहरन कै खिलौना ! ''
@ किसी के आँखों ( दृष्टि ) से नजारों ( दृश्य ) का रोशन हो जाना स्वाभाविक है क्योंकि हम शेष विश्व को अपने प्रिय के प्रसार-भाव में देखते हैं ! एक विधान आपने पलटा है , अक्सर जुल्फों से घटाएं छाती हैं , रात आती है और आप यहाँ अपने शेर में रात को ही जुल्फों से जगा रहे हैं !
तोष-असंतोष के उप्रात्न आवारगी की सकारात्मकता पर गजल का ठहर जाना उचित ही है ! आभार !
फिर एक अंतराल के बाद आ पाया हूं अपने प्रिय शायर को गुनने।
गज़ब का मतला हमेशा की तरह। एक बार पहले भी कहा था मैंने कि आपके मतले हमेशा बहुत ही जबरदस्त होते हैं। और फिर तीसरे शेर का "बुनियाद से बावस्तगी" वाला जुमला तो सुभानल्लाह...आह! क्या लिखते हो पवन साब। और आखिरी शेर का ऐलाने-आवारगी ने मन मोह लिया है।
यूं ही संवारते रहे ग़ज़ल की महफ़िल...!
ख़फ़ा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो,
ज़माने भर से क्या नाराज़गी है !!ye behtreen lga....
daro deevaar se apnaayiyat tapke to me jaanu
kahi-n par naam likh dene se apna ghar nahi-n hota
बहुत ही शानदार लिखा है आपने, लाजवाब
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