नवंबर 26, 2010

गाँवों में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं !!


एक मुद्दत से अपनी प्रिय विधा ग़ज़ल को लेकर कोई पोस्ट नहीं लगा पाया था...... शायद इसकी एक वज़ह यह थी कि व्यस्तता बहुत रही। ग़ज़ल पोस्ट करने के लिए जब एक मित्र ने शिकायती लहजे में बात की तो लगा कि ग़ज़ल पोस्ट कर ही देनी चाहिए, सो आज एक ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ........ मुलाहिजा फरमाएं.

अपने अपने हालातों से कौन यहाँ बेज़ार नहीं !!
ग़म से परेशाँ सब मिलते हैं, मिलते हैं गमख्वार नहीं !!

या के मंजिलें दूर हो गयीं, या के रास्ते मुश्किल हैं,
मेरे पाँवों में पहले सी तेजी और रफ़्तार नहीं !!

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अखवार नहीं !!

शह्रों की तहज़ीब पे जब भी तंज कसूँ तो लगता है,
गाँवों में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं !!

बेच चुका हूँ नज़्में ग़ज़लें महफ़िल महफ़िल गा गाकर,
मेरे हिस्से में अब कोई मेरा ही अशआर नहीं !!

कहने को मैं रंग शक्ल में उसके जैसा हूँ लेकिन ,
मेरे लहज़े में उस जैसा पैराया-ए-इज़हार नहीं !!

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं !!
ग़ज़ल का कोई भी शेर अगर आपको पसंद आ सका तो अपनी कोशिश कामयाब समझूंगा........ खुदा हाफिज़ !!!!!!

42 टिप्‍पणियां:

श्रद्धा जैन ने कहा…

बेच चुका हूँ नज़्में ग़ज़लें महफ़िल महफ़िल गा गाकर,
मेरे हिस्से में अब कोई मेरा ही अशआर नहीं !!

waah waah kya baat kahi hai ..
bade din baad aapko koi gazal dekhi hai
jaldi jaldi likha kare

Abhishek Ojha ने कहा…

पसंद तो खूब आई. जमाने का हाल तो ठीक पर ये मुझे थोड़ी निराशावादी सी लगी:

या के मंजिलें दूर हो गयीं, या के रास्ते मुश्किल हैं,
मेरे पाँवों में पहले सी तेजी और रफ़्तार नहीं !!

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक़ में लिखने वाले अब अख़बार नहीं।

इस मेयारी शेर' के लिये आप मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं । बधाई।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

आदरणीय सिंह साहब,
आपका ये कथन-
”ग़ज़ल का कोई भी शेर अगर आपको पसंद आ सका तो अपनी कोशिश कामयाब समझूंगा...”
जनाब हर शेर दिल में उतरता चला गया...
या के मंजिलें दूर हो गयीं, या के रास्ते मुश्किल हैं,
मेरे पाँवों में पहले सी तेजी और रफ़्तार नहीं
और-
शह्रों की तहज़ीब पे जब भी तंज़ कसूँ तो लगता है,
गाँव में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं
या फिर-
मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं
सब कुछ बयान कर दिया इस कलाम में...बहुत ही उम्दा.

Salim Raza ने कहा…

में तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा ,
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गये.
बहुत उम्दा ग़ज़ल लाजवाब काबले तारीफ़

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपसे मिलना ही पड़ेगा...
आइडेन्टिटी पर संदेह होने लगा है :)
शाइर है या अफसर है, अफसर है या शाइर है..
अफसर-कम(अंग्रेजी वाला या हिन्दी वाला) शाइर है..
बहुत अच्छे शब्द, सुन्दर पिरोये गये..

निर्मला कपिला ने कहा…

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अखवार नहीं !!

शह्रों की तहज़ीब पे जब भी तंज़ कसूँ तो लगता है,
गाँव में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं !!
वाह लाजवाब। वैसे मुझे पूरी गज़ल बहुत अच्छी लगी। बधाई।

mridula pradhan ने कहा…

bahut sundere.

sumati ने कहा…

ज़िन्दगी इस कदर न भारी है
दोस्त तुम पर थकान तारी है /(बाढ़ , चुनाव... )
हर कदम ला जबाब कहता हूँ
शक है ये ग़ज़ल भी तुम्हारी है./

ग़ज़ल hamesh की tarha लाजवाब है पर मूड बिगाडू ज्यादा है
ये भी तो एक एक कसौटी है मेरे भाई

आ जाओ मत खपाओ multiplex की तीनो पिक्चर देखते हैं सब ठीक लगने लगे गा
शहर भी और गांव भी

इस अभद्र एवंम अश्लील टिप्पणी की तुम्हारे सभी चाहनेवालों से छमा मांगते हुए
तुम्हारा

सुमति

वाणी गीत ने कहा…

शहर की तेज धूप से घबरा कर भगा मुसाफिर ठंडी छाँव की आस लिए गाँव में ....
मगर गाँव भी अब पहले जैसे रहे कहाँ थे ...
मेरे मुंह पर मेरे जैसी , उसके मुंह पर उसके जैसी ...हर आम ख़ास का चरित्र हो गया है ...इतना दुखी होने जैसी बात नहीं है ..

अच्छी ग़ज़ल !

वाणी गीत ने कहा…

शहर की तेज धूप से घबरा कर भगा मुसाफिर ठंडी छाँव की आस लिए गाँव में ....
मगर गाँव भी अब पहले जैसे रहे कहाँ थे ...
मेरे मुंह पर मेरे जैसी , उसके मुंह पर उसके जैसी ...हर आम ख़ास का चरित्र हो गया है ...इतना दुखी होने जैसी बात नहीं है ..

अच्छी ग़ज़ल !

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं !!
बहुत उम्दा और सच्चा शेर
इस पर मुझे अपना एक शेर याद आता है कि-
"इसे झुकाओ ,उसे झुक के तुम सलाम करो
कि कामयाबी की ज़ामिन यही कलाएं हैं "

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपके शब्द किसी और ब्लाग पर भी छप गये..

ZEAL ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल !

तिलक राज कपूर ने कहा…

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अखवार नहीं !!
एक ऐसा शेर है जो जगह जगह कहा जा सकता है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

http://sethiram.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html
यहां पर पेस्ट है...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अपने अपने हालातों से कौन यहाँ बेज़ार नहीं !!
ग़म से परेशाँ सब मिलते हैं, मिलते हैं गमख्वार नहीं !!

बहुत खूब ......!!

शह्रों की तहज़ीब पे जब भी तंज कसूँ तो लगता है,
गाँवों में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं !!

सच्च गाँव की हालत तो शहरों से भी बदतर है .....

बेच चुका हूँ नज़्में ग़ज़लें महफ़िल महफ़िल गा गाकर,
मेरे हिस्से में अब कोई मेरा ही अशआर नहीं !!
वाह ......!!
मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं !!

सच्च बयां करता .....

एक भी शे'र ......???
यहाँ तो हर शे'र लाजवाब कर रहा है ......
किसकी तारीफ करूँ ......???

बस गज़ब है .....सारे शे'र .....!!

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

अच्छी लगी...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल ...

यह गज़ल आपके बिना नाम छापे यहाँ भी है ...

http://sethiram.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अखवार नहीं !!

बहुत प्यारा शे’र है यह...मेरे भाई! यह शे’र क्या पूरी-की-पूरी ग़ज़ल ही प्यारी है! किस-किस शे’र पर अपना अभिमत रखूँ...? लगभग सारे ही शे’र उद्धरणीयता की क्षमता रखते हैं!

आपका यह निम्नांकित शे’र -

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछहै किरदार नहीं!

-मुझे कुछेक विनम्र सुझाव रखने की छूट दे रहा है, आशा है कि आप सहृदयता से ग्रहण करेंगे।

प्रथम... मत्‌अले में प्रयुक्त ‘हालातों’ शब्द ग़लत है। ‘हालात’ शब्द स्वयं में बहुवचन है, तो फिर बहुवचन का ‘बहुवचन’ नहीं बनाया जाना चाहिए।

द्वितीय...शे’र-३ में आपने ‘दुनिया’ लिखा जबकि आख़िरी शे’र में ‘दुनियाँ’। सही वर्तनी है- दुनिया।

तृतीय... ‘अख़वार’ की जगह ‘अख़बार’ होना चाहिए था। यहाँ आपकी उँगली स्लिप हो गयी होगी।

आज तमाम ब्लॉग्ज़ पर प्रशंसा करने वाले इस तरह की टिप्पणी देने से कतराते है...और मज़े की बात यह कि इस तरह की बारीकियों पर टिप्पणी करने के लिए हर रोज़ मेरे पास 25-30 बुलावे आते हैं। ये और बात है कि मैं पहुँच भले ही न पाऊँ, हर जगह।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति .गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर गज़ल .

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति .गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर गज़ल .

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति .गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर गज़ल .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शह्रों की तहज़ीब पे जब भी तंज कसूँ तो लगता है,
गाँवों में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं

भाई हमें तो सारे ही शेर पसंद आये .... पर ये ख़ास लगा ... लाजवाब ....

Deepak Saini ने कहा…

किसी एक शेर की क्या कहू यहाँ तो मुकम्मल गजल ही बेजोड है
हर शेर पढकर मुंह से दो ही शब्द निलते है
वाह वाह

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

भैया ये ग़ज़ल निश्चित ही बहतरीन ही नहीं
बल्कि बेहद उम्दा है .............इअसका हर शेर रूह को हिला देने वाला है
मुह से शब्द निकल ही नहीं पते
किसी शेर को ज्यादा कम आंकने की मेरी औकात नहीं है
फिर भी ........इस शेर पर में कुर्बान
या के मंजिलें दूर हो गयीं, या के रास्ते मुश्किल हैं,
मेरे पाँवों में पहले सी तेजी और रफ़्तार नहीं !!
बेहद उम्दा
बेच चुका हूँ नज़्में ग़ज़लें महफ़िल महफ़िल गा गाकर,
मेरे हिस्से में अब कोई मेरा ही अशआर नहीं !!
दुनियां की हकीकत बयां करता ये शेर ..........
मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं !!
और मतले की तो बात निराली है ..........
ग़ज़ल पढ़ कर निहाल हो गया ....................
बधाइयाँ.........................

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

में भारतीय नागरिक

का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने सेठी राम जैसे व्यक्ति की भर्त्सना की

कायदे में एसे लोगें की भर्तसना पूरे ब्लॉग जगत में होनी चाहिए ताकि

हमारा ब्लॉग जगत चोरों से मुक्त रह सके

हम सभी ब्लोगर से अपील करते है की सेठी राम http://sethiram.blogspot.com/ के ब्लॉग पर जाये और यही सिंह साहब की रचना

पढ़ें और इसका विरोध करें.............

धन्यवाद

अनुपमा पाठक ने कहा…

वाह!!!
बहुत सुन्दर!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सभी शेर एक से बढ़कर एक. किसकी तारीफ करूं किसकी छोडूँ समझ में नहीं आ रहा है. और आखिरी शेर तो लाजवाब ही है.

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं

वाह वाह..

Sethi ने कहा…

Respected Sir,

firstly i really very sory for tht i hv done.sir this all was hepened by mistake.sir गाँव में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं !!i like it very much,and im also belongs to a vilage.thats why i wanted to publish that in my blog.but sir that i have been done is very shameful and it was wrong.i really very very sorry sir.and sir this is a very nice creation.and my best regards to u sir,i m very greatfull to u.once again sir i really very sorry.

Sethi Ram

प्रेम सरोवर ने कहा…

पहली बार आया हूं। नमस्कार स्वीकार करें। हर शव्द मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गए। वहुत ही सुंदर गजल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इस गजल को पहले भी पढ़ा हूँ। सोचा था इतमिनान से कमेंट लिखूंगा फिर भूल गया।
बेहतरीन गज़ल है। यह शेर तो काफी उम्दा..

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अखवार नहीं !!
..वाह!

Vijay ने कहा…

After first time of strating my service I was on leave and at my village for 22 days, since I love to invest my time there.........but the time has changed and fotrunately the gazals on the same time on the same topic relaqizes me on the same....very near to HAQEEQAT.
regrd/vijay

सत्येन्द्र सागर ने कहा…

इतने निराशावादी भी न बनिए जनाब जब तक मेरा जैसा दोस्त आपके पास है आपको निराश होने कोई ज़रूरत नहीं.

Arvind Mishra ने कहा…

इस अंदाजे बयां को सलाम !नया वर्ष मंगलमय हो !

Rahul Singh ने कहा…

एक से बढ़कर एक शेर.

गौतम राजऋषि ने कहा…

बड़े दिनों बाद एक और नायाब ग़ज़ल आपकी कलम से पढ़ने का मौका मिला। हर शेर पढ़कर लगा कि उफ़्फ़्फ़ ये मैंने क्यों नहीं लिखा...ये मेरा क्यों नहीं है। यकीनन। ...और हर शेर में अक अलग-सा नयापन भी है।

बहुत खूब पवन सर! दिल से निकली है दाद...और जलन भी!

Unknown ने कहा…

महज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं,
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अखवार नहीं !!
अच्छी ग़ज़ल.....!!!!

वीनस केसरी ने कहा…

कई दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया और एक दिलकश गज़ल पढ़ कर दिल बाग बाग हो गया

बहुत बहुत बहुत बढ़िया गज़ल

बस मज़ा आ गया

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

@ मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनियाँ में सब कुछ है किरदार नहीं !!

-- यह तो कटु सत्य है। इसी सत्य को संग्याओं के साथ कह दें तो नरक मच जाता है।

और सारे अशआर आपके हिस्से के ही हैं, याने भरे-पूरे हैं। अभिषेक ओझा जी की”निराशावादी’ के पुट की शिकायत भी गौरतलब है।

pramod singh ने कहा…

sabsai pahlay mai aapko mainpuri mahotsav ki bade saflta par bahut bahut bhadae deta hu
aaj mainay aapki 04 may ko post najm ko padha to paya aap complete aur umda,gharay aur parvaan sayar ho gaye hai aapki chand panktiya to bahut hi gharai aur antar man ko chunay wali hai
"तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!

जब तक तुम थे पास हमारे नग्मा रेज़ फज़ाएँ थीं,
और तुम्हारे जाते ही फिर सन्नाटे से पसर गए !!"
en sabdo kay chayan mai bahut paarkhe hai
ab aur kya kahu bahut khoob bahut khoob

pramod singh ने कहा…

aapko maipuri mahotsav ki bumper safalta ke liye bumper badhaiyan.aaj mene apki 4 may ko post ki gai gazal padi gazal ka har lavz dil ki gahraiyon mai utarta mehsus hua.....dil ko karib se chua......."तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!

जब तक तुम थे पास हमारे नग्मा रेज़ फज़ाएँ थीं,
और तुम्हारे जाते ही फिर सन्नाटे से पसर गए !!"
en alfaazo ka chunav aapkay prakarti kay prati prem aur manav kay chupay huay jazbaat ko baya kar raha hai