अप्रैल 13, 2011

लाइव मैनपुरी मुशायरा...पार्ट-1


09 अप्रेल 2011, शनिवार स्थान कादम्बरी मंच श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी मैनपुरी समय रात 9 बजे....... जी हां यही देश -काल परिस्थितियां थीं जब इस ऐतिहासिक मंच व प्रदर्शनी में अखिल भारतीय मुशायरे का आगाज हुआ. यूँ तो मुशायरे की शमा अपने नियत समय से लगभग एक घण्टे देर से रोशन हुई........ लेकिन सामयीन की अपने शायरों को सुनने-देखने की इन्तजारी न तो गैर अनुशासित हुई, न ही उनकी आवाज शोर-शराबे में में तब्दील हुई. बहरहाल फीता काटने और शमा रोशन करने की जरूरी रस्मों के बाद निजामत जनाब मंसूर उस्मानी और सदर-ए-मुशायरे की कमान जनाब प्रो0 वसीम बरेलवी ने संभाली तो मुशायरे का माहौल एक दम से भव्य हो उठा.


निजाम ने ’नात‘ को पढ़ने के लिये जब तरन्नुम के उस्ताद शायर जनाब अकील नोमानी को पुकारा तो जनता सीधे उस रूहानी ताकत से जुड़ा हुआ महसूस करने लगी, जिसके दम पर पूरी कायनात रोशन है......."नवी का दीन यहाँ भी बहुत फल फूला, अकील इसलिए हिन्दोस्तान को भी सलाम" जैसा कलाम पेश कर अकील नोमानी ने मुशायरे का आगाज किया.


इसके बाद मेघा कसक ने अपने कलाम से पण्डाल मे उपस्थित तीन हजार की भीड़ को अपना दीवाना बना दिया. खूबसूरत आवाज और-अपने पुरकशिश अन्दाज में मेघा ने "ये हकीकत है के हम चाहें न चाहें लेकिन ज़िन्दगी मौत की आगोश में सर रखती है, भूल बैठे हो अमीरी के नशे में साहिब मुफलिसी अब भी दुआओं में असर रखती है '' सुनाकर भीड़ को दीवाना बना दिया। मेघा की तरन्नुमी लहर हालांकि ठहरने का नाम नही ले रही थी, लेकिन शायरों की लम्बी फेहरिस्त को देखते हुये इसे रोका जाना भी जरूरी था सो अगले शायर सर्वत जमाल को आवाज दी गयी.


सर्वत ने आते ही अपनी ‘फिक्र की शायरी' के हवाले से जनता को मानसिक रूप से झिंझोड़ दिया. "आराम की सभी को है आदत करेंगे क्या, ये सल्तनत परस्त बगावत करेंगे क्या. मज़हब की ज़िन्दगी के लिए खून की तलब, हम खून से नहाके इबादत करेंगे क्या. तक़रीर करने वालों से मेरा सवाल है,जब सामने कड़ी हो मुसीबत करेंगे क्या. " काफिये के नये प्रयोगों से सर्वत ने मंच को मुशायरे को ‘अदबी मुशायरे ‘ के रूप में तब्दील करने का काम किया जो मुशायरे के आखिर तक मुसलसल जारी रहा। सर्बत ने अपने कलाम से जनता को जेहनी तौर पर खुद से और अवाम की माजूदा परिस्थितियों से जोड़ लिया.


इसके बाद लखनऊ से आये युवा शायर मनीष शुक्ल ने बड़े ही प्यारे अन्दाज में "बात करने का हसीं तौर तरीका सीखा, हमने उर्दू के बहाने से सलीका सीखा" और "हमने तो पास ए अदब में बंदापरवर कह दिया, और वो समझे कि सच में बंदापरवर हो गए ", जैसे शेर पढ़कर अपने कद का एहसास दिलाया. प्रांतीय सिविल सेवा के अधिकारी मनीष शुक्ल को मैनपुरी की जनता ने हर शेर पर दाद दी. उनके हरेक शेर पर मैनपुरी की जनता ने खड़े होकर तालियां बजाकर उनका इस्तकबाल किया. जनता ने उनके शेर "आँखों देखी बात है कोई झूठ नहीं, चोट लगाकर कहते हैं कि रूठ नहीं. खुद ही भरते जाते हैं गुब्बारे को , फिर कहते हैं ए गुब्बारे फूट नहीं " को बार बार पढने की ताकीद की.


म0प्र0 उर्दू अकादमी की सचिव मोहतरमा नुसरत मेहदी ने अपना कलाम सुनाने की जैसे ही भूमिका तैयार की, उपस्थित श्रोताओं ने उनकी आमद पर देर तक तालियां बजाई. मोहतरमा मेंहदी ने भी श्रोताओं की अपेक्षाओं और मिजाज के मुताबिक कलाम पेश किया. उनकी गजल " आप शायद भूल बैठे हैं यहाँ मैं भी तो हूँ, इस ज़मीं और आसमान के दरमियाँ मैं भी तो हूँ. आज इस अंदाज़ से तुमने मुझे आवाज़ दी, यक ब यक मुझको ख्याल आया कि हाँ मैं मैं भी तो हूँ. तेरे शेरों से मुझे मंसूब कर देते हैं लोग, नाज़ है मुझको जहां तू है वहां मैं भी तो हूँ." को जनता की भरपूर दाद मिली। पहली बार मैनपुरी आई मोहतरमा मेंहदी मैनपुरी बार-बार आने का वायदा करके जनता की वाह-वाही लूट ले गयीं। अब तक साढ़े ग्यारह बज चुके थे, माहौल में शेरो शायरी का जुनून हावी हो चुका था.........


माहौल को देखते हुये ‘आमीन' के शायर आलोक श्रीवास्तव को आवाज दी गयी. उनकी निहायत सीधे-सादे अल्फाज वाली शायरी ने जनता से उन्हे ऐसे जोड़ा की गजल-दर-गजल उनकी वाह-वाही बढ़ती गयी. इंसानी रिश्तों ओर उनके नाज़ुक एहसासात की रचनाओं को सुनाकर आलोक श्रीवास्तव ने महफ़िल लूट ली. उनकी ग़ज़ल "तुम्हारे पास आता हूँ तो साँसें भीग जाती हैं, मुहब्बत इतनी मिलती है की आँखें भीग जाती हैं.तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसी है, वो जब भी बात करता है तो बातें भीग जाती हैं. ज़मीं की गोद भरती है तो कुदरत मुस्कुराती है, नए पत्तों की आमद से ही शाखें भीग जाती हैं" बहुत पसंद की गयी.


इसके बाद मुशायरा ख्यातिलब्ध और सीनियर शायरों की तरफ मुखातिब हुआ. मंचासीन डा0 कलीम कैसर ने सामयीन के मिजाज और उनकी नब्ज को पकड़ते हुये अपना कलाम चाहतों की ज़रा सी दस्तक पर दिल का राज़ खोल सकता है,इश्क ऐसी ज़बान है प्यारे जिसको गूंगा भी बोल सकता है और “ज़रूरी है सफ़र लेकिन सफ़र अच्छा नहीं लगता , बहुत दिन घर पे रह जाओ तो घर अच्छा नहीं लगतापेश किया. डा0 कैसर मंच के बड़े शायर हैं, .................उन्होने मैनपुरी की जनता को उनके ‘अदबी टेस्ट‘ के लिये बार-बार बधाई दी और कहा कि यह मुशायरा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मुशायरे ने यह साबित कर दिया है कि यदि अदबी मुशायरे आयोजित किया जाएं तो जनता उसे आंखो-आंख लेती है.


माहौल में पसरी गंभीरता को हंसी-मंजाक के रंगों से भिगोने के लिये स्थानीय कवि जयेन्द्र पाण्डेय ‘लल्ला‘ और हजल उस्ताद शरीफ भारती को बुलाया गया. शरीफ भारती ने आधे-पौन घण्टे तक अपने अन्दाज से मौजूद तादाद को पेट पकड़ने पर मजबूर कर दिया. किसी चोर के घर के घर में घुसने पर नामचीन शायरों की प्रतिक्रिया का अन्दाज करने वाले उनकी प्रस्तुति ने सामयीन को हंसते-हंसते लोट-पोट कर दिया. " छत पे हम समझे तुझे वो तेरी अम्मी निकली, इश्क क्या ख़ाक करें दूर का दिखता ही नहीं " अपने गजब के ‘सेंस आफॅ ह्यूमर‘ और 'चालू जुमलों' से जनता को गुदगुदा कर जब वे वापस हुये तो जनता ने उन्हे एक बार और बुला लिया.


इस मजाहिया मंजर के बाद मदन मोहन दानिश को माइक पर दावत दी गयी. दानिश मौजूदा दौर के सर्वाधिक ‘फिक्रमंद शायर' के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। दानिश ने “ डूबने की जिद पे कश्ती आ गयी, बस यहीं मजबूर दरिया हो गया. गम अँधेरे का नहीं दानिश मगर वक्त से पहले अँधेरा हो गया “और “ गुज़रता ही नहीं वो एक लम्हा, इधर मैं हूँ कि बीता जा रहा हूँ “ पढ़कर जनता की तालियां लूटीं.

*अगली किस्त में मंसूर उस्मानी, इशरत अफरीन और वसीम साहब के कलाम के बारे में रिपोर्टिंग....!

9 टिप्‍पणियां:

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

वाह..! भैया कमाल कर दिया अपने जस का तस
मुशायरा पेश कर दिया अपने
बहुत खूब ....बधाइयाँ

सर्वत एम० ने कहा…

लगा जैसे 'बराहे-रास्त'मुशायरा देख रहे हों. आपकी शायरी तो पहले ही जादू जगा चुकी है, अब नस्र (गध)भी वही उसी आबो-ताब के साथ उभर रही है.
दूसरी किस्त का इंतज़ार है.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

क्या करूँ कि उस दिन मैनपुरी में नहीं था नहीं तो मैं भी वहाँ होता ... खैर आपकी इस सिलसिलेवार रिपोर्ट ने वहाँ ना होने के गम को काफी कम कर दिया ! बहुत बहुत शुक्रिया !

Abhishek Ojha ने कहा…

उफ़ ! कमाल के शेर मिले कुछ तो. बहुत बढ़िया.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

जल्दी से अगली किश्त पेश की जाये..

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह! पढ़कर ही आनंद आ गया। टेप भी तो किया होगा आपने..सुना ही दीजिए।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

सच में मज़ा आ गया इस रिपोर्ट को पढ़कर
वाक़ई में ऐसा ही महसूस हुआ जैसे लाइव मुशायरा देख रहे हों
सर्वत साहब की ये ग़ज़ल बहुत ही उम्दा है ब्लॉग पर पढ़ी है
दूसरे शोअरा के अश’आर भी बहुत ख़ूबसूरत हैं
शुक्रिया ,,अगली पोस्ट का इंतेज़ार रहेगा

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

चाहते हुये भी ना सके .पढ कर ऎसा लगा जैसे हम वही है

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

सोचा पार्ट-१ से ही देखूँ।
पूरा मुशायरा ही टहलवा दिया आपने । मेधा, सर्वत , मनीष ...आदि आदि की गजलें बहुत सुन्दर हैं। कितने स्नेह से सभी को रखा है आपने। सुन्दर !