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इतिहास के राजमार्गों से गुज़रते हुए कुछ अनाम सी पगडंडियाँ भी मिल जाती हैं जिनकी शिनाख्त बेशक उस करीने से न हो पाई हो जिनकी वे हकदार थीं मगर इससे उनकी महत्ता कम नहीं हो जाती. ऐसी ही तमाम पगडंडियाँ स्वतंत्रता के संग्राम के दौरान निकलती हैं जो भले ही इतिहास में उस महत्तव को नहीं पा सकीं पर उनकी गूँज से तत्कालीन परिस्थितियां हुईं. अगस्त 1942 में बम्बई में महात्मा गांधी की 'करो या मरो' की उद्घोषणा देश के कोने-कोने तक पहुँच चुकी थी। पटना, कलकत्ता, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़ सभी जगहों पर तिरंगा लहरा उठा, विद्रोह का बिगुल बज उठा, तार-संचार रेल-पटरी सभी को ध्वस्त करने का सिलसिला शुरू हो गया। सरकारी इमारतों, थानों, सचिवालयों, अदालतों पर तिरंगा फहराने लगा और जगह-जगह लोगों को गोलियों से भूना गया। चन्दौली धरती भी इससे अछूती नहीं रही।
इस जिले में स्थानीय आन्दोलनकारियों ने अपने योगदान का उदाहरण पेश किया। 10 अगस्त को हेतमपुर ग्राम में कामता प्रसाद के नेतृत्व में सम्पन्न एक बैठक में निर्णय लिया गया किआज़ादी के समर्थन में स्थानीय बाजार बन्द कराये जाएँ । गुलाब सिंह कादिराबाद की अगुआई में 11 अगस्त को कमालपुर बाजार और लल्लन सिंह की अगुआई में धानापुर का बाजार बन्द कराया गया। इसी क्रम में 12 अगस्त को अन्दोलनकारियों का जत्था कामता प्रसाद विद्यार्थी की अगुआई में गुरेहूँ ग्राम पहुँचा जहां बन्दोबस्त का कार्य बन्द कराया। यहां आजादी का झन्डा फहराया गया। यहां बन्दोबस्त अधिकारी व पटवारी को अपना बस्ता समेटने पर विवश किया गया। चन्दौली के स्वतंत्रता सेनानियों ने 13 अगस्त 1942 ई0 को चन्दौली तहसील पर आजादी का झण्डा फहराने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन में श्री रामसूरत मिश्र, श्री बिहारी मिश्र, श्री जगत नारायण दुबे, श्री चन्द्रिका शर्मा, श्री रामनेरश सिंह, श्री रामधनी सिंह, श्री सरजू साहू, श्री लालता सिंह, श्री विभूति सिंह, श्री लालजी सिंह, श्री बैजनाथ तिवारी, श्री सरजू साहू एवं श्री उमाशंकर तिवारी आदि महत्वपूर्ण नेता शामिल हुये। 14 अगस्त को उक्त आन्दोलनकारियों के नेतृत्व में एक जत्था सकलडीहा स्टेशन पहुँचा और वहां पर झण्डा फहराया इसके बाद यह निश्चय किया गया कि 16 अगस्त को एक बजे दिन में धानापुर थाने पर झण्डा फहराया जायेगा।
16 अगस्त को ये जत्था धानापुर थाने पहुँचा। हजारों की संख्या में उमड़ती भीड़ थाने की तरफ बढ़ने लगी, लोग ’सर पर बांधे कफन, शहीदों की टोली निकली’ गीत गाते हुये जा रहे थे, जूलूस थाने के फाटक के सामने पहुँच गया। श्री राजनारायण सिंह, सूर्यमनी सिंह, बलिराम सिंह ने तैनात थानेदार को समझाया कि वे आन्दोलनकारियों को शान्तिपूर्ण ढंग से थाने पर झण्डा फहराने दें। थानेदार अनवारूल हक ने आन्दोलन कारियों से साफ़ शब्दों में कहा की अगर झंडा फहराने की कोशिश की तो गोली चला दी जाएगी। थानेदार अपनी जिद पर अड़ा था और खुद मोर्चाबन्दी कर 52 चैकीदारों को अर्द्धवृत्ताकार बनाकर मोर्चाबंदी कर ली।इसमें लाठी बन्द 08 हवलदार थे और चैकीदार के पीछे राइफल धारी सिपाही तैनात थे। आन्दोलनकारी मगर इन धमकियों से कहाँ डरने वाले थे, कामता प्रसाद विद्यार्थी जी बिजली की तीव्र गति से थाने के धारदार फाटक को लांघकर उस पार पहुँच गये और उनके साथ रामाधार कोहार भी भीतर कूद गये। विद्यार्थी जी के फाटक लांघने के साथ हीरा सिंह, रघुनाथ सिंह, महंगू सिंह, सत्यनाराणय सिंह, शिवनाथ गुप्ता एवं गुलाब सिंह फाटक पर चढ़ चुके थे और इसी बीच थानेदार की रिवाल्वर की गोली धाँय-धाँय कर उठी। एक गोली विद्यार्थी जी के कान के पास से निकल गयी लेकिन हीरा सिंह, मंहगू सिंह, रघुनाथ सिंह को प्राणघातक गोली लगी। कुल आठ आदमियों को गोली लगी। इसी बीच फाटक के भीतर ही नीम के पेड़ के नीचे ही श्री कामता प्रसाद विद्यार्थी ने झण्डा फहरा दिया। झण्डा फहराने के बाद विद्यार्थी जी फाटक लांघ कर बाहर आ गये। भीड़ के उग्र मिजाज़ को समझ कर थानेदार भागने लगा, जनता उद्वेलित हो गयी, क्रुद्ध जनता ने थाने को तीनों ओर से घेर लिया। उसी समय आन्दोलनकारी हरि नारायण अग्रहरि ने दौड़कर थानेदार को पकड़ लिया। क्रुद्ध जनता की अनगिनत लाठी थानेदार पर बरसने लगी और वह लुढ़क कर जमीन पर गिर गया और मौके पर उसकी मृत्यु हो गयी। क्रुद्ध जनता ने हेड कान्सटेबल और 02 सिपाहियों को फाटक के सामने ही मौत के घट उतार दिया और कुछ सिपाही वर्दी उतार कर छुपकर भाग खड़े हुये।हीरा सिंह वहीं शहीद हो गये, रघुनाथ सिंह सकलडीहा अस्पताल में दाखिल हुये और वहां शहीद हुए और मंहगू सिंह रास्ते में शहीद हो गये। उद्वेलित लोगों ने थाने के फाटक तोड़ दिया, कागज जला दिया, थाने के फर्नीचर तथा चारों पुलिस कर्मियों की लाशों को थाने के फाटक के बाहर इकट्ठा करके जला दिया।
16 अगस्त से 26 अगस्त तक धानापुर थाने पर तिरंगे झंडे का कब्जा बना रहा। इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों में आज भी असीम उत्साह रहता है. इतिहास में धानापुर का यह संग्राम छोटी सी घटना जरूर हो सकती है मगर इस घटना को लेकर स्थानीय जन आज भी उसी श्रद्धा से जुड़ा है।
19 टिप्पणियां:
वाह भैया लाजबाब एतिहासिक पोस्ट
सवतंत्रता दिवस पर इस से अच्छी पोस्ट क्या हो सकती है
चंदौली के यह अनछुए पहलु को आप ही खोज सकते है आपके इस जज्बे को सत सत नमन
परनाम स्वीकार करें
चन्दौली से आपका आत्मीय भाव प्रदर्शित करती है यह पोस्ट!
धानापुर-संघर्ष चन्दौली का गौरव-अध्याय है. प्रत्येक चन्दौली-वासी यह गाथा अपने हृदय में संजोता आया है, प्रेरणा-हेतु बनकर ठहरती है यह.
इतने विस्तार से यह संघर्ष-गाथा लिखकर उपकार ही किया आपने. यह अन्तर्जाल पर सजी और कई अनजान लोगों तक पहुँची. हम जैसे लोगों तो हर्षित हुए ही. आभार।
पवन दादा ,
जय हिन्द !
मैं तो सिर्फ इतना कहूँगा कि न आपकी पोस्टिंग चंदौली मे होती न वहाँ का यह गौरवशाली इतिहास हम लोगो को पता चलता !
अखबार के माध्यम से एक डीएम के रूप मे आपके चंदौली प्रवास की खबरें हम सब को मिलती रहती है ! जो अनछूए पहलू रह जाते है उनकी कसर आपकी पोस्टें पूरी कर देती है !
लिखते रहिए ... हम सब को आपकी पोस्टो का इंतज़ार रहता है !
प्रणाम !
बहुत बहुत धन्यवाद. आपने धानापुर की गौरव गाथा से हम सभी का ज्ञानवर्धन किया. जय हिंद.
हिमांशु जी की टीप को ही मेरी टीप मान ली जाय।
ब्लॉगिंग ने पूरे किए 13 साल - ब्लॉग बुलेटिन – यही जानकारी देते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन तैयार की है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
जमें हुए हैं देश में, अब काले अंग्रेज।
समय आ गया अब उन्हें, कारा में दो भेज।।
दस्तावेजी प्रेरक शोधपरक आलेख...
सादर
जयहिंद.
ऐसी अनगिनत शौर्य गाथाएं इतिहास के गर्भ में दबी पडी हैं जिन्होंने स्वतन्त्रता दिलाने में महती भूमिका निभायी !
इस परिचय के लिए आभार!
आप उस श्रेष्ठ परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं जिनसे भारत के कितने अनदेखे अनपढ़े अध्याय हमारे सामने आते गए हैं ......
साधुवाद!
बहुत सामयिक पोस्ट
चंदौली में धानापुर काण्ड वही महत्व रखता है जो १८५७ भारत में....
घटना बाहर की दुनिया के लिए पहचानी हुई नहीं है, अन्यथा कहीं से भी छोटी घटना नहीं है| ऐसी गौरव गाथाएं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच पा रही हैं, इसके लिए आपका आभार|
बढिया आलेख
अच्छी जानकारी
ज्ञानवर्धक पोस्ट
यहां मेरठ में भी 18 अगस्त 1942 को भामोरी कांड हुआ था, जिसमें पांच क्रांतिकारी शहीद हो गए थे, इसे मिनी जलियावाला कांड भी कहा जाता है.
बहुत ही उम्दा और सहेजने लायक पोस्ट सर |
बहुत सुन्दर लाभप्रद प्रस्तुति के लिए आभार!
एक प्रेरणास्पद और शोधपरक लेख के लिए आभार...
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