अगस्त 01, 2008

अकील नोमानी - मेरे अज़ीज़ शायर

मैं बरेली में 2004 - ०६ के दौरान उप जिला अधिकारी के पद पर तैनात रहा । इस दौरान मीरगंज नाम की तहसील में मैं लगभग दो साल रहा। बहुत सी यादें उस तहसील की ,तहसील के लोगों की, तहसील की घटनाओं की आज भी जेहन में जिंदा हैं। कई लोगों से मेरा दिली जुडाव रहा। इन्ही लोगों में से एक थे - अकील नोमानी । अकील नोमानी -ब्लाक मीरगंज में ग्राम विकाश अधिकारी के पद पर तैनात थे। मेरे तहसील में पहुँचने के साथ ही वहां के बीडियो का तबादला हो गया। उनके विदाई समारोह में मुझे रस्मी तौर पर jaanaa पड़ा। विदाई karyakram samanyta aupchrik होते हैं। ये program भी कुछ वैसा था किंतु karyakram का sanchalan कर रहे एक shkhash की तरफ़ मेरा dhyan गया जो बहुत खूबसूरत अंदाज़ में बोल रहे थे......पता किया to batya गया की ये अकिल नोमानी हैं, एक शायर ..........बाद में मेरा उनसे इतना जुडाव हो गया की तहसील में roj का उनका आना जाना हो गया। जिस दिन वे न आते to मैं unhe bulaawa bhejata की अकील कहाँ हो ...मैं intezaar कर रहा हूँ। आज मुझे kahne में कोई hichak नही है के उनकी गिनती देश के बड़े शायरों में होना है देर हो सकती है......और वैसे भी हमारे देश में अच्छे की पहचान देर में होती भी है खैर उनके लिए दुआएं कीजिये और मज़ा लीजिये उनकी ग़ज़लों का...
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दिल से निबाह कर के मुसीबत में आ गए, दो हर्फ़ जिंदगी को कहानी बना गए।
महदूद कर दिया था बिखरने ke शौक ने, ख़ुद में सिमट गए तो ज़माने पे छा गए।
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ख़ुद को सूरज का तरफदार बनने क लिए,
लोग निकले हैं चरागों को बुझाने क लिए,
गम तो ये है क parinde ही मदद करते हैं,
जब ही आता है कोई जाल बिछाने क लिए,
कितने लोगों को यहाँ चीखना पड़ता है अकील,
एक कमजोर आवाज़ दबाने क लिए।
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मैं मकान रहा वो मकीं रही,
जो बजाहिर और कहीं रही,
कोई हुस्न मेरी नज़र में रहा,
सो ये कायनात हसीं रही,
उन्हें आसमानों का शौक रहा,
मera ख्वाब सिर्फ़ ज़मीं रही,
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जेहन जैसे तो कभी दिल जैसे, मुझमे कुछ log hain shamil jaise ।
जब भी देखा तो थकन ख्वाब हुई, है कुछ लोग थे मंजिल जैसे।
उसने यूँ भी देखा हमें अक्सर, हम भी हो दीद क काबिल जैसे।
जिंदगानी की ये मुहतातार्वी, कोई दुश्मन हो मुकाबिल जैसे।
जब मिला इज्ने तकल्लुम तो अकील, यों मेरे होंट गए सिल जैसे।
************* खुदा हाफिज़ कैसा लगा.......... जल्दी फ़िर आऊंगा.

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