विगत दस दिन होशंगाबाद में रहना एक नया अनुभव था. नर्मदा के तट पर बसा हुआ यह शहर सतपुडा पहाडिओं से घिरा हुआ है.इन पहाडिओं को देखना और मसूरी की पहाडिओं को देखना बिल्कुल अलग अलग एहसास है. हलकी भूरी और रेतीली ज़मीन इन पहाडिओं की विशेष पहचान है.
सबसे पहले नर्मदा की बात. नर्मदा यहाँ की लाइफ लाइन है. नर्मदा का अमरकंटक से निकल कर मध्य प्रदेश के इस शहर से गुजरना इस शहरवासिओं को गर्व का एहसास दिलाता है. हम जब होशंगाबाद में पहुंचे तो यहाँ हलकी हलकी ठंडक पड़ने लगी थी...नर्मदा की तरफ़ से मंत्रों और भजनों की आवाजें लाउड़्स्पीकर से आ रही थी. पता चला कि दीपावली से लेकर अगले 11 दिन तक यहाँ पूजा- भजन का माहौल रहता है नर्मदा के तट पर लोग श्रद्धा से आते हैं और स्नान -दर्शन करते हैं. हम भी नर्मदा के तट पर पहुंचे ..सेठानी घाट यहाँ का मुख्य घाट है.बहती हुई नर्मदा वाकई खूबसूरत लग रही थी.कम बारिश वाले इस क्षेत्र में नर्मदा को देखना वाकई सुखकारी था.
नर्मदा का दर्शन करने के बाद हमने इस शहर का भ्रमण किया.यह शहर तो छोटा है मगर यहाँ भारत के अन्य छोटे और मिडिल क्लास शहरों की तरह न तो भीड़ -भाड़ है और न ही ट्रैफिक की भागमभाग. धीमी गति से चलता हुआ यह शहर महानगरीय आपाधापी को चिढाता हुआ नज़र आया. सुबह 8 बजे तक इस शहर की नींद खुल चुकी थी...हमने पाया की यहाँ नाश्ते का काफी कल्चर है...मिठाईओं की दुकानों पर नमकीन पोहा (चावल से बना हुआ ) जगह जगह देखा. हमने स्थानीय लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि होशंगाबाद में पोहा को नाश्ते में लेना पुरानी परम्परा है...पोहा के साथ अगर गरम जलेबी मिल जाए तो फ़िर नाश्ता पूरा. और अगर हैवी नाश्ता करना है तो इसमे आलूवडा और भाजीवडा और गरमागरम चाय को और जोड़ लीजिये और मात्र 15 रुपये में दोपहर तक फ्री हो जाइए........और शायद शाम तक भी.
समीपवर्ती शहर बेतूल की तरफ़ जाते हुए से गुजरते हुए इस शहर के अन्तिम गाँव दांडीवादा में भी हम गए. आदिवासिओं के साथ हमने समय गुजारा...जानकर अच्छा लगा की अब आदिवासिओं की सामजिक शक्ल बदल रही है......अब पढ़ाई लिखाई की तरफ़ ध्यान दे रहे हैं. अगली पीढियां यह बात समझ चुकी हैं कि बिना शिक्षा के गुज़र नही है......छोटे छोटे बच्चों को स्कूल जाते देखना बहुत अच्छा लगा...लड़के- लड़कियों के छोटे छोटे झुंड अपनी साइकिलों पर स्कूल जाने के लिया निकल पड़े थे......दुनिया जहाँ में क्या हो रहा था इससे भी यह बच्चे बेखबर नही थे.....कौन सा फ़िल्म हीरो ,क्रिकेट खिलाड़ी उन्हें पसंद है इस पर उनकी प्रतिक्रिया सुनना अच्छा अनुभव था..... बाकी और भी बहुत कुछ के बारे में अगले कुछ पोस्ट में.
सबसे पहले नर्मदा की बात. नर्मदा यहाँ की लाइफ लाइन है. नर्मदा का अमरकंटक से निकल कर मध्य प्रदेश के इस शहर से गुजरना इस शहरवासिओं को गर्व का एहसास दिलाता है. हम जब होशंगाबाद में पहुंचे तो यहाँ हलकी हलकी ठंडक पड़ने लगी थी...नर्मदा की तरफ़ से मंत्रों और भजनों की आवाजें लाउड़्स्पीकर से आ रही थी. पता चला कि दीपावली से लेकर अगले 11 दिन तक यहाँ पूजा- भजन का माहौल रहता है नर्मदा के तट पर लोग श्रद्धा से आते हैं और स्नान -दर्शन करते हैं. हम भी नर्मदा के तट पर पहुंचे ..सेठानी घाट यहाँ का मुख्य घाट है.बहती हुई नर्मदा वाकई खूबसूरत लग रही थी.कम बारिश वाले इस क्षेत्र में नर्मदा को देखना वाकई सुखकारी था.
नर्मदा का दर्शन करने के बाद हमने इस शहर का भ्रमण किया.यह शहर तो छोटा है मगर यहाँ भारत के अन्य छोटे और मिडिल क्लास शहरों की तरह न तो भीड़ -भाड़ है और न ही ट्रैफिक की भागमभाग. धीमी गति से चलता हुआ यह शहर महानगरीय आपाधापी को चिढाता हुआ नज़र आया. सुबह 8 बजे तक इस शहर की नींद खुल चुकी थी...हमने पाया की यहाँ नाश्ते का काफी कल्चर है...मिठाईओं की दुकानों पर नमकीन पोहा (चावल से बना हुआ ) जगह जगह देखा. हमने स्थानीय लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि होशंगाबाद में पोहा को नाश्ते में लेना पुरानी परम्परा है...पोहा के साथ अगर गरम जलेबी मिल जाए तो फ़िर नाश्ता पूरा. और अगर हैवी नाश्ता करना है तो इसमे आलूवडा और भाजीवडा और गरमागरम चाय को और जोड़ लीजिये और मात्र 15 रुपये में दोपहर तक फ्री हो जाइए........और शायद शाम तक भी.
समीपवर्ती शहर बेतूल की तरफ़ जाते हुए से गुजरते हुए इस शहर के अन्तिम गाँव दांडीवादा में भी हम गए. आदिवासिओं के साथ हमने समय गुजारा...जानकर अच्छा लगा की अब आदिवासिओं की सामजिक शक्ल बदल रही है......अब पढ़ाई लिखाई की तरफ़ ध्यान दे रहे हैं. अगली पीढियां यह बात समझ चुकी हैं कि बिना शिक्षा के गुज़र नही है......छोटे छोटे बच्चों को स्कूल जाते देखना बहुत अच्छा लगा...लड़के- लड़कियों के छोटे छोटे झुंड अपनी साइकिलों पर स्कूल जाने के लिया निकल पड़े थे......दुनिया जहाँ में क्या हो रहा था इससे भी यह बच्चे बेखबर नही थे.....कौन सा फ़िल्म हीरो ,क्रिकेट खिलाड़ी उन्हें पसंद है इस पर उनकी प्रतिक्रिया सुनना अच्छा अनुभव था..... बाकी और भी बहुत कुछ के बारे में अगले कुछ पोस्ट में.
9 टिप्पणियां:
लगता है आजकल व्यस्तता कुछ ज्यादा ही है... अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
बहुत रोचकता से विवरण दे रहे हैं, आनन्द आ रहा है. अगली कड़ी का इन्तजार.
bahut accha vivran
regards
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लिखते रहिये... बस और क्या...
shukriya. aapka blog oadha...badhiya likha aapne.
Jivant vivran.
बहुत अच्छा विवरण लिखा आपने।
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