लाइब्रेरी जाने शौक मुझे तब से है जब से मैं थोड़ा बहुत समझदार हुआ.अब जब भी फुर्सत मिलती है तो किताबें लेकर बैठ जाता हूँ..सच मानिए किताबों से ज्यादा तसल्ली कहीं नही मिलती. कल भी मैं लाइब्रेरी जाकर बैठा तो कुछ मज़ा नही आया ...अखबारों में आतंकवाद पर छप रही वही घिसी पिटी टिप्पणियां वही दूसरों पर ज़िम्मेदारी डालने वाले बयान और जो जगह बची उस पर कुछेक राज्यों में हो रहे विधान सभा चुनावों पर वाद-प्रतिवाद.....मन ऊब गया, उठ कर चल दिया. वापसी के समय नज़र चिल्ड्रेन सेक्सन पर चली गयी. बरबस ही उधर कदम उठ गए. चिल्ड्रेन सेक्सन में पहुँचा तो मज़ा आ गया ..ऐसा लगा कि जैसे छूटा हुआ बचपन फ़िर से मिल गया हो. चंदामामा, बालहंस, नंदन, लोट- पोट, चंपक अपने कुछ परिवर्तनों के वाबजूद उसी तेवर में मौजूद मिली......एक ओर कॉमिक्स का सेट भी रखा हुआ था यद्दपि कुछ नए कॉमिक चरित्र अब बाज़ार में आ चुके हैं मगर अभी भी चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी,राम रहीम, हवलदार बहादुर, क्रुकबोंड ,डोगा, नागराज........सभी उस चिल्ड्रेन सेक्सन में मिल गए थे जो बच्चे उस चिल्ड्रेन सेक्सन में मौजूद थे वे बड़ी तन्मयता से उन्हें पढ़ रहे थे .......कॉमिक्स ओर बच्चों को देखकर मेरे सामने अपनी पुरानी जिंदगी के सारे दृश्य ताज़ा हो गए जब मैं अपने छोटे भाई के साथ बस स्टैंड पर हर रोज़ जाकर मैगजीन वाली दुकान पर नयी कॉमिक्स या नयी बाल पत्रिका तलाशता था .....मुझे यह कहने में कोई संकोच नही कि किताबों को दोस्त बनाने की आदत शायद तभी से पड़ गयी जो अब तक बदस्तूर कायम है...... खैर चिल्ड्रेन सेक्सन में फ़िर मैंने चाचा चौधरी और राका के बीच होने वाले मजेदार कॉमिक्स को पढ़ा............... क्या आनंद आया....शायद मैं लिख पाने में नाकाम ही रहूँगा .
3 टिप्पणियां:
हाय क्या खजाना देख लिया आपने !
सही कहा आपने।हमे तो आज भी चंदामामा की कहानीयां पंसद हैं।
कुछ ना कुछ तो खास होता है सभी मे .....
पर आप की तो हर बात ही कुछ खास है
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