अक्तूबर 30, 2009

धुनों के यात्री....पंकज राग


सितम्बर माह में मैं लखनऊ में था। लखनऊ में उन दिनों राष्ट्रीय पुस्तक मेला चल रहा था ....काम में व्यस्तता इतनी ज्यादा थी की मैं इस मेले में बस आखिरी दिन जा सका. किताबें वैसे भी मेरे खर्चे की एक बड़ी मद रही हैं......इस मेले में मैंने कुछ शायरी की किताबें और कुछ नए उपन्यास अदि ख़रीदे.....


विभिन्न प्रकाशकों के स्टालों से गुज़रते हुए अचानक राजकमल प्रकाशन के स्टाल पर निगाह एक किताब को देख कर अटक गयी .........सामान्य से कुछ ज्यादा ही मोटी दिखने वाली इस किताब का नाम था " धुनों की यात्रा"....पलटने पर दिखाई पड़ा कि इस पुस्तक के लेखक हैं...श्री पंकज राग। यह पुस्तक 1931-2005 तक की अवधि में हिंदी फिल्मों में संगीत दे चुके संगीतकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित थी। चूँकि मेरी हिंदी फिल्म संगीत व् उनके संगीतकारों में हमेशा दिलचस्पी रही है सो मैं इस पुस्तक को खरीद बैठा। 1000 रुपये वाली इस पुस्तक यद्दपि आरम्भ में कुछ महँगी लगी किन्तु जब इस पुस्तक को पढना शुरू किया तो लगा कि यह पुस्तक महज़ सूचनाओं का संकलन भर नहीहै। यह पुस्तक अपने आप में एक सम्पूर्ण शोध ग्रन्थ है....यह शोध ग्रन्थ कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। पहला महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह पुस्तक एक आई. ए. एस.अधिकारी द्वारा लिखी गयी है। आम तौर पर सिविल सेवकों को "ड्राई" माने जाने वाले मिथक को खंडित करने की जिम्मेदारी मध्य प्रदेश कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी श्री पंकज राग ने निभाई है।फिल्म संगीत के उपरे सरस एवं प्रमाणिक शोध करने वाले श्री पंकज राग 1990 बैच के आई. ए. एस. अधिकारी हैं जो विभिन्न महत्त्वपूर्ण सरकारी ओहदों पर रह चुके हैं और वर्तमान में पुणे स्थित फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टिट्यूट के निदेशक भी पुन आते हैं " धुनों की यात्रा" पर।मेरी नज़र में यह ऐसी पहली किताब है जिसमे हिंदी फिल्मों के संगीतकारों के विषय में विषद सामग्री दी गयी है। संगीतकारों के विवरण और विश्लेषण के साथ उनकी सृजनात्मकता को सन्दर्भ सहित संगीत,समाज और जन- आकाँक्षाओं की प्रवृत्तियों को रेखांकित किया गया है....800 पृष्ठ वाली इस पुस्तक में दशक वार- संगीत कारों के विषय में फिल्मवार व गीतवार दी गयी जानकारी अद्भुत है....चालीस के दशक से आरम्भ हुए हिंदी फिल्म संगीत के विषय में लेखक ने अत्यंत बारीकी से राग-ताल-गीत की सजावट और बुनावट के विषय में गूढ़ जानकर प्रस्तुत की है...


यह पुस्तक नामचीन संगीतकारों के विषय में तो है साथ ही अच्छा काम करने के बावजूद गुमनामी में खो गए कई ऐसे संगीतकारों के विषय में अच्छी खासी जानकारी प्रस्तुत करती है. पंकज मालिक, खेमचंद प्रकाश,अनिल विश्वास, सी रामचंद्र, हुस्नलाल भगतराम ,चित्रगुप्त, गुलाम मोहम्मद, एस. डी. बर्मन, खय्याम, नौशाद, रोशन, सरदार मालिक, शंकर जयकिशन, मदन मोहन, हेम,अंत कुमार, ओ पी नैयर, सलिल चौधरी, रवि, जयदेव, कल्याण जी आनंद जी, लक्ष्मी-प्यारे, आर. डी. बर्मन, रविन्द्र जैन, राजेश रोशन से लेकर समकालीन लिजेंड ए. आर. रहमान तक प्रमुख संगीतकारों पर वृहद् जानकारी उपलब्ध तो है ही...........गुमनामी में कहीं चुप गए राजकमल, रघुनाथ सेठ, दत्ताराम ( आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें.....), रामलाल ( पंख होते तो उड़ जाती रे....... ), एस. मोहिंदर ( गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा....), बसंत देसाई ( सैयां झूटों का बड़ा सरताज निकला......) पर भी कमोवेश उससे भी ज्यादा जानकारी बहुत ही रोचक भाषा में मिलती है. फिल्मों और संगीत से जुडी हस्तियों के अनूठे पोस्टर प्रस्तुति को और भी जीवंत कर देते हैं. संगीत प्रेमियों विशेषतया हिंदी फिल्म संगीत में रूचि रखने वाले पाठकों/ श्रोताओं के लिए यह पुस्तक किसी दस्तावेज से कम नहीं.... यद्दपि इस अनूठी कृति के लिए श्री राग की प्रशंसा करना भी उनके कृतित्व के सापेक्ष बहुत कम होगा.......तथापि श्री पंकज राग को हिंदी फिल्म संगीत के ऊपर जुनूनी काम करने के लिया सादर नमन.....!

8 टिप्‍पणियां:

प्रकाश गोविंद ने कहा…

इस तरह की पुस्तकों का मेरे पास अच्छा-खासा संग्रह है ! लेकिन इस पुस्तक के बारे में जानकार बहुत ही अच्छा लगा !
आपसे जलन हो रही है जी !
कीमत निश्चित ही ज्यादा है !

जानकारी के लिए आपका आभार

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

मेरे ब्लाग पर पधारने का शुक्रिया
पंकज जी के इस पहलू पर
पहली भार ध्यान देने का अवसर मिल शुक्रिया
आपको उपयोगी आलेख के लिये आभार

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

abki baar aap lucknow aayen to zaroor miliyega

mera number 998768524 hai.....

apki yeh post bahut achchi lagi......

Asha Joglekar ने कहा…

अरे वाह यह तो अपने आप में एक अनूठी किताब लगती है । जानकारी हमारे साथ समीक्षा रूप में बांटने का आभार ।

शरद कोकास ने कहा…

पंकज जी जब बैतूल मे कलेक्टर थे तब मैने इस किताब की तैयारी देखी थी उनके घर मे यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है ।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सर्वप्रथम पंकज राग जी को इस पुस्तक के लिए बधाई .....न जाने उन्होंने कितनी मेहनत की होगी इस पुस्तक पर ....इतना आसान नहीं होता इतनी छानबीन कर तथ्यों को ढूंढ़ना ....!!

आपके शौक की भी दाद देती हूँ ...आपने इतनी कीमत देकर यह अनमोल पुस्तक खरीदी और हम तक पहुंचाई .....शुक्रिया ....!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक बहुत ही बढ़िया आलेख !बहुत ही बढ़िया जानकारी मिली ! आभार !

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

क्या लिखते है हुज़ूर कुछ बाकी भी रहने दिया करो
पुष्पेन्द्र सिंह