एक अरसे से ब्लॉग से गायब रहने के बाद फिर से हाज़िर हो रहा हूँ.....दरअसल गोरखपुर से आने के बाद मसूरी की ट्रेनिंग में ऐसा व्यस्त हुआ कि पढना- लिखना सब पीछे छूट गया....जीवन बस जैसे पीपीटी प्रेजेंटेसन'स तक सिमट कर रह गया। सोचा इस चादर के बाहर भी पैर फैलाए जाएँ इसी कोशिश- मशक्कत में ये ग़ज़ल लिख गयी सो बगैर देरी किये ये ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ.....!
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
याद आ गयी किसी के तबस्सुम की एक झलक,
है दिल मिरा महकता हुआ ज़ाफ़रान अब !!
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!
29 टिप्पणियां:
is gazal ke paanchon sher ek se badhakar ek hain...lekin rang alag hain. uuper ke do sher padhkar lagta hai ki jamane ka dard simat kar isii men sama gaya hai to baad ke tiino sher mood-mijaaj dono badal dete hain..!
वाह वाह .........बेहद उम्दा ग़ज़ल है ! आपकी यही बात तो खुश कर देती है .............ख़ामोशी के बाद जब जब आते है एक ना एक उम्दा नज़्म साथ लाते है !
बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
तबियत कैसी है अब आपकी ?
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
बेहतरीन शायरी ,ज़मीन से ,इंसानियत से मुन्सलिक है ये शेर बहुत ख़ूब!ख़ुद्सरी का ये अंदाज़ बहुत पसंद आया
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
ये क़ताबंद भी ज़िंदगी की सऊबतों को बयान करता हुआ ज़ह्न ओ दिल को छू जाताहै
मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं
बेहतरीन और लाजवाब मतले के साथ आपने इस ग़ज़ल का आगाज़ किया है और इसी ख़ूबसूरती को मकते तक बखूबी निभाया है...आपकी जितनी तारीफ़ करूँ कम है....एक एक अशआर ग़ज़ल में नगीने की तरह चमक रहा है...ढेर सारी दाद कबूल करें...
नीरज
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
kuch samajh mein nahi aa raha hai ki kis sher ki tareef karun...koi kisi se kam nahi hai...
ise kahte hain aana... ye to HD presentation ho gaya..bahut sundar..
aapko bahut-bahut badhai..
लाजिम है बारिशों का इम्तिहान अब ...
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
ख़ामोशी के दरमियाँ अनकही जब कही गयी तब ही तो ये लाजवाब ग़ज़ल हुई ...!
मुद्दत बाद पढने को मिली एक खूबसूरत ग़ज़ल. अच्छी पोस्ट.
इस्लाम में कंडोम अवश्य पढ़ें http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब
ahaaaaaaaa kya sher kahe hain aapne
waah sahab waah
खूबसूरत गज़ल... वाक़ई हर शेर खूबसूरत...!!
हुज़ूर
आदाब अर्ज़ !
मैं ब्लॉग दर ब्लॉग ख़ूबसूरत कलाम की प्यास में भटक रहा हूं , और अच्छा कलाम कहने वाले आप यहां छुपे हैं !
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
क्या मतला है जनाब ! भई वाह !!
याद आ गयी किसी के तबस्सुम की एक झलक,
है दिल मिरा महकता हुआ ज़ाफ़रान अब !!
वल्लाह ! सुभानल्लाह !!
यूं हमारे बड़े भाईसाहब नीरजजी दुरुस्त फ़रमा गए , इस्मत ज़ैदी साहिबा , अदाजी भी और श्रद्धाजी भी… मतले से मक़्ते तक तमाम अश्आर काबिले- ता'रीफ़ हैं ।
बधाई , मुबारकबाद !
समय निकाल कर शस्वरं पर भी तशरीफ़ लाएं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बहुत खूबसूरत गज़ल है। ये शेर बहुत ही अच्छे लगे---
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!
वाह वाह क्या बात है। बधाई
बेहतरीन. सुन्दर. अन्तिम शेर बहुत बढ़िया लगा..
याद आ गयी किसी के तबस्सुम की एक झलक,
है दिल मिरा महकता हुआ ज़ाफ़रान अब
इस जाफराँ की खुश्बू बहुत देर तक आएगी ... ग़ज़ब का शेर है जनाब ... सुभान अल्ला .... पूरी ग़ज़ल तो कयामत ढा रही है ...
क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
बहुत शानदार शेर....ग़ज़ल पढ़ कर आनंद आया...लाजवाब लिखी है..
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
--------- इसे तो मैंने तभी पढ़ लिया था ठीक से जब भावुक घटाटोप के वातावरण में
दौरे-इम्तिहान से गुजर रहा था !
@ है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !! --- याद आ रहा है , 'सर पर खयाले-यार की
चादर ही ले चलें ' !
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!
------- कह दिया आपने बड़ी सफाई से , पूरी गतिमयता के साथ , याद आ रहा है किसी
का कहना - ' जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा , एक पल रात भर नहीं गुजरा ! ''
क़ुर्बत का मतलब ही नहीं पता इसलिए इस शेर पर कुछ नहीं कह सकता , बाकी सारे शेर
शेर-छाप हैं ! आभार !
बहुत खूब भैया
लाजबाब गजल लिखी है अपने
हर शेर पर वाह..........वाह .........
शब्दों की कशमकश में पानी सी रवानगी है
प्रणाम स्वीकारें .......................
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!
क्या खूब कहा है....पूरी ग़ज़ल ही लाज़बाब है
बेहतरीन !
मतले पे खासा दाद देने के बाद मैं जहां आकर रुका वो यही शे'र है .. सोच रहा हूँ कौन सी घडी होगी जब ये शे'र बना ...
क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
और फिर इस शे'र की कैसे तारीफ़ करूँ समझ नै पा रहा ...
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !
अर्श
क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
क्या बात hai ....बहुत खूब .....!!
याद आ गयी किसी के तबस्सुम की एक झलक,
है दिल मिरा महकता हुआ ज़ाफ़रान अब !!
ओये होए .....!!
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!
क्या कहूँ ......?
इश्क किया है तो सब्र भी कर
इसमें यही कुछ होता है .......
लाजवाब ग़ज़ल ....!!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल..
आपका मुरीद तो पहले से ही हूँ ये ग़ज़ल भी बेहतरीन लगी..
ये बारिशों का नहीं, हम जैसों का इम्तिहान है. बाप रे बाप! ऐसा गजब का मतला, अर्थ की इतनी तहें!! दिमाग के परतें उधड़ गईं. मतले को ही बहुत देर तक पढ़ता सोचता रहा. बाकी शेरों में किसे कमतर कहूं, कोशिश के बावजूद फैसला नहीं हो सका.
एक, सबसे जरूरी बात, जो मुझे बहुत पहले कह देना चाहिए था- खुद को बचा कर रखें. आप देश के चंद गिने-चुने गजलकारों में से एक हैं, जिन पर गजल का भविष्य आधारित है. लेखन में स्वयं को सिर्फ और सिर्फ गजल तक ही केन्द्रित रखें.
शायद आप मेरी इस सलाह को औपचारिकता या अति प्रशंसा मान लें लेकिन मैं कमेन्ट देने और आकलन के मामले में बेहद कंजूस हूँ.
वो ज़ाफ़रान वाला शेर तो सचमुच खुशबू फैला रहा है.
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!
अच्छी लगी लाजवाब किस किस बात कि दाद दूँ हर बात दूसरे से भी बढ़ कर
अभी-अभी आपकी ये ग़ज़ल पढ़ी और अब सोच रहा हूं कि किस देशेर को कोट करूं सभी सामने आकर बैठ गये हैं
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब
दूर तक और देर तक अन्दर तक को हिलाने वाली ग़ज़ल हुई है. वाह!
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
waah! kya baat hai...
bahut hi achchee gazal kahi hai aap ne.
अरे हुज़ूर....क्या ग़ज़ल कही है सरकार। यूं ही मेरे मित्र ने एसएमएस नहीं किया था खास तौर पर इस ग़ज़ल के लिये। उफ़्फ़्फ़्फ़...हम नत-मस्तक हुये जनाब। खामखां हमें उस दिन फोन पर चढ़ा रहे थे आप।
इस मतले पे हमारी सारी ग़ज़लें निछावर। आपसे जल रहा हूँ। कमाल है इतना नायाब बेमिसाल शायर अब तलक जमने की निगाहों से छुपा बैठा। सरासर ज़ुल्म है ये। अभी तक की पढ़ी गयी चंद बेहतरीन ग़ज़लों में से एक।..और आखिरी शेर जो मुझे एसएमएस में आया था”उस एक लम्हे को हुक्मरान बन जाने का ट्रांसफार्मेशन...उफ़्फ़्फ़। क्या लिखे हो सर जी। और फिर तीसरे शेर का मिस्रा सानी "कुछ अनकहा है उसके मेरे दरमियान अब"...तारीफ़ के लिये उचित शब्द नहीं ढ़ूंढ़ पा रहा हूँ।
मिलने की उत्कंठा अब अपनी हद पार कर रही है। नोट करके रख रहा हूं इस ग़ज़ल को लोगों को सुनाने के लिये।
सर्वत साब की टिप्पणी काबिले-गौर है। हम सब को इस दुर्लभ प्रशास्निक अधिकारी पर फ़ख्र है। बनाये रखें अपना ये करिश्मा।
मतले के लिये एक बार फिर से करोड़ों दाद...
इस हुनर को तराशते रहें दोस्त, आप पर कुछ मेहरबानी उपरवाले की भी लगती है..... वक़्त निकाले और लिखते रहें
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