सिंगापुर यूँ तो ऐसा देश है जिसमें इतने दर्शनीय स्थल हैं कि जिन्हें देखने के लिए काफी वक्त चाहिए.............. किन्तु हमारे पास वक्त की कमी थी, सो चाहकर भी कुछ ही दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर पाए।
दरअसल दिन भर के क्लासरूम सेसन तथा विभिन्न संस्थाओं/ प्राधिकारियों से ‘इन्टरएक्शन’ के बाद सांय का वक्त ही हमें ऐसा मिलता था कि जब हम सिंगापुर के दर्शनीय स्थलों और यहां के खूबसूरत बाजारों का अवलोकन कर सकते थे। सिंगापुर में ऐसे कई दर्शनीय स्थल हैं, जो किसी भी पर्यटक को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त हैं-जैसे, मेगाजिप एडवेंचर पार्क, सेन्टोसा पार्क, मिंट म्यूजियम ऑफ ट्वायज, चांगी बार म्यूजियम, एशियन सिविलाइजेशन म्यूजियम, पेरनकान म्यूजियम, सिंगापुर डिस्कवरी सेंण्टर, मेरीना बैराज, न्यूवाटर विजिटर सेण्टर, साइंस सेण्टर सिंगापुर, चेंग हो क्रूज, ज्वेल केबल कार ड्राइव, क्लार्क क्वे, रेड डॉट डिजाइन म्यूजियम, सिंगापुर फ्लायर, सिंगापुर रिवर क्रूज, सिगापुर टर्फ क्लब, बटरफ्लाई पार्क, नेशनल आर्चिड गार्डेन इत्यादि इत्यादि। भारतीय पर्यटकों के लिए यहां लिटिल इण्डिया, मुस्तफा कामर्शियल सेण्टर घूमना अपने देश में ही घूमने जैसा है।
बहरहाल समयाभाव के बावजूद हमने सिंगापुर को अधिकाधिक ‘एक्सप्लोर’ करने का प्रयास किया। सिंगापुर सिविल सर्विसेज कॉलेज से छूटते ही हम वापस अपने ‘फ्यूरामा रिवर फ्रंट’ होटल आते और इन स्थलों को देखने के लिए निकल पड़ते। कुछ स्थानीय भारतीय मित्रों ने कहा कि सिंगापुर दर्शन ‘सेण्टोसा बीच’ के भ्रमण के बिना अधूरा है सो हमने तय किया कि ‘सेण्टोसा बीच’ जरूर देख लिया जाए। सेण्टोसा पार्क में अण्डर वाटर सी व जलचरों का सजीव प्रदर्शन, स्काई ड्राइविंग तथा सिंगापुर म्यूजियम देखना शानदार अनुभव था। इस अनुभव में अपना रोमांच तब चरम पर पहुंचा जब हमनें ‘सांग ऑफ द सी’ पर जबरदस्त वाटर लेजर शो देखा। हजारों दर्शकों की भीड़ के बीच इस वाटर लेजर शो के प्रदर्शन ने हमारा मन मोह लिया। सेण्टोसा में इसके अलावा 4-D थिएटर, फोर्ट सिलिसों को घूमना भी अदभुत क्षण थे।
सेण्टोसा के अलावा मुझे सिंगापुर के ‘फ्लायर’ ने बहुत आकर्षित किया। 165 मीटर ऊंचाई वाले इस फ्लायर में ‘ट्रांसपेरेण्ट बॉक्स’ से सिंगापुर को देखना अत्यंत रोमाचंक अनुभव था। इस फ्लायर से यूथ ओलम्पिक की गतिविधियाँ देखना तो और भी रोमांचकारी था। सिंगापुर के बाजारों में देर रात तक रौनक रहती है। यहां जगह-जगह फूड कोर्टस देखे जा सकते है। इन फूड कोर्टस में दुनिया के अलग-अलग देशों के लजीज व्यंजन खाए जा सकते हैं। एम॰आर॰टी॰ (भारतीय मेट्रो ट्रेन की तरह) से चंद सिंगापुरी डालर्स में सिंगापुर को घूमना यादगार अनुभव रहा। विश्वास नहीं होता कि महज 700 वर्ग कि॰मी॰ में फैले किसी देश में इतने पर्यटक स्थल हो सकते हैं। इस देश की प्रगति में भारतीयों का भी बहुत बड़ा योगदान है।
जनसंख्या में लगभग दस फीसदी भागेदारी भारतीयों की है और कोई भी क्षेत्र हो, चाहे उद्योग या उत्पादन या फिर तकनीक....... सर्वत्र भारतीयों की भूमिका सहज स्वीकार्य है।
सिंगापुर में बिल्डिंग्स की बनावट तथा भू-खण्डों के प्रयोग को देखकर बार-बार इस देश के नीति निर्माताओं को धन्यवाद देने का मन करता रहा, जिन्होंने छोटे-से-छोटे भूखण्ड का ‘आप्टिमम यूज’ करते हुए उसे सुंदर से सुंदरतम बना दिया है। सड़क पर पैदल यात्रियों को सड़क पार करते हुए ट्रैफिक का रूक जाना......... रेड-ग्रीन लाइट सिग्नलस का शत-प्रतिशत अनुपालन करना ऐसे उदाहरण थे जो वास्तव में इस देश में ‘‘सिविक सेंस’’ होने का अहसास कराते थे। रेन वाटर हार्वेस्टिंग, रूफ टॉप ग्रीनरी इत्यादि को देखकर यहां की प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति आदर का भाव उत्पन्न होता रहा।
एक सप्ताह की इस सिंगापुरी यात्रा से निश्चित रूप से प्रशासनिक समझ विकसित हुई। यहां की चुस्त-दुरूस्त कानून और व्यवस्था को देखकर मन बार-बार यही सोचता रहा कि योजनाबद्ध प्रतिबद्धता और योजनाओं के क्रियान्वयन में ईमानदारी ने इस देश को विगत 45 साल में कहां से कहां पहुंचा दिया है। 1965 में आजाद हुये इस देश ने आशा से कहीं ज्यादा तेजी से विकास किया है और दुनिया में अपने अस्तित्व का सशक्त प्रमाण प्रस्तुत किया है।
सिंगापुर से लौटने के बाद भी कुछ स्थानीय भारतीय मित्रों की याद आती रही। इस यात्रा के दौरान श्रद्धा जैन जी, प्रशांत जी, अरूण दीक्षित दम्पत्ति, विक्रम-अम्बिका द्वारा दिए दिए गए स्नेह-सम्मान के प्रति मन अब तक आभारी है। सिंगापुर के बाद हमारा अगला पड़ाव वियतनाम था, जिसके बारे में तफसील से अगली प्रस्तुति में लिखने का प्रयास करूंगा।
क्रमशः
22 टिप्पणियां:
nice
bhaiya
singaapur yatra ka sundar varnan
maza aya apke batane ke anusar jana ki vakai chota sa ye desh
pargati ke marg par kis trah age badha hai .
apko videsh yatra ke liye punah dil se badhaiyan...........
बहुत खूब....मुझे तो अभी से वियतनाम को लेकर उत्सुकता बढ गयी है...पूरी दुनिया में इसके जैसा कोई नहीं है..जल्दी लिखना...
aisa laga jaise ham bhi ghoom rahe han. bahut badhiya.
"सब से पहले बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं नयी पोस्टिंग की !
मैनपुरी जल्दी आइये फिर आपके साथ बैठ कर इन पलो को साथ साथ जीना है ! वैसे भी जिस तरह से आप ने यहाँ लिखा है उस को पढ़ कर यही मलाल होता है कि काश हम भी साथ होते ! किसी भी जगह के विकास में वहाँ के लोगो का बहुत बड़ा योगदान होता है ......सिंगापूर के बारे में यह कहना एकदम सटीक होगा कि वहाँ के लोगो में हम लोग से ज्यादा सिविक सेन्स है!"
यह मेरी वह टिपण्णी है जो मैंने आपकी पिछली पोस्ट पर दी थी ....... आपने अपनी आज की पोस्ट में भी यही लिखा है की वहाँ के लोगो में हम लोगो से ज्यादा सिविक सेन्स है ! अब जब आपने खुद यह महेसूस कर ही लिया है तब आपकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कम से कम अपनी पोस्टिंग वाले इलाके में लोगो को जागरूक बनने की ! कोई भी देश बिना जनता के योगदान के आगे नहीं बढ़ सकता !
वैसे आपका बहुत बहुत आभार जो आपने हम सब को घर बैठे बैठ ही सिंगापुर घुमवा दिया !
इस जीवंत दर्शन के लिए आभार
रोचक जानकारी .... थोड़े से चित्र और दिखाते तो आनंद बहुत बढ़ जाता...:))
नीरज
सेण्टोसा का वो 4-D थिएटर क्या बला थी सर जी? फोर डी सुनकर ही हम भ्रमित हो गये।
अगले किश्त के लिये दिलचस्पी बढ़ गयी। श्रद्धा जी ने कितनी ग़ज़लें सुनायीं? अच्छी नसिश्त जमी होगी वहाँ पर तो....
बहुत ही बढ़िया और रोचक जानकारी मिली! ख़ूबसूरत चित्रों के साथ साथ इतनी सुन्दरता से आपने विस्तारित रूप से वर्णन किया है ऐसा लगा मानो हम भी घूमकर आ गए हैं!
रोचक जानकारी के लिए आभार सिंह साब , श्रधा जी की गज़लें .... इंतज़ार रहेगा..
अर्श
आप ने हम जैसों को घर बैठे ही सिंगापुर की यात्रा करा दी. इस छोटे से देश के विकास की जो गाथा आप ने बयान की है, इस देश के हुक्मरानों की आंखें खोलने के लिए एक सबक़ है लेकिन यह सबक़ पढा क्यों जाए. सिविक सेंस् की बात की है आप ने तो एक बार फिर दुहराता हूं------
1000 वर्षों की गुलामी का असर 63 वर्षों मेन नहीं खत्म होता.
बहुत आभार इस वृतांत का.
काश सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज जीत गयी होती तो सिंगापुर भारत का ही हिस्सा होता. ब्लॉग के लिए धन्यवाद.
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
दोनों कडियां आज ही पढीं। बहुत खूब!
इस जीवंत जानकारी के लिए... आभार.....
बहुत ही बढ़िया
वाह ...... हमने भी मानसिक यात्रा कर ली
बेहतरीन
सिंगापुर से पार्ट-1, पार्ट-2 एक साथ पढ़े हैं...
कितनी खूबसूरती के साथ हर एक मंज़र और मुलाकातों को पेश किया है आपने.
सुंदर संस्मरण।
बहुत बढिया विवरण
भैया , क्रमशः में इतना लेट क्यों हो रहा है !
पढ़ते हुए अंतिम छोर तक चले जाने की इच्छा होती है !
अक्सर देर होने पर संस्मरण भूलने लगते हैं , मेरी 'ताकझांक-स' की योजना पूरी नहीं हो सकी देर के चक्कर में ! कहीं नोट करते रहें , नहीं तो खो जायेंगी !
अलग से क्या कहूँ , आज भी पूर्ववत रोचकता मिली !
चरण स्पर्श भैय्या ..............
आप और सिंगापुर एक जैसे ही हो ................
बल्कि मै समझता हूँ आप उस से आगे हो .............
वो कैसे ?
मै बताता हूँ आप की जन्म तिथि १९७५ है वहीँ सिंगापुर की जन्म तिथि १९६५ है .....
वो आप से १० साल पुराना है पर तरक्की तो दोनों ने बराबर की न ,फिर आप ने उससे १० साल पहले लक्ष्य पा लिया......
पर वो अभी भू-आर्थिक एवं भू-राजनितिक मुद्दों पर थोडा घिरा है .........
श्याम कान्त
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