अक्टूबर 05, 2010

वियतनाम यात्रा पार्ट-1







सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट से वियतनाम विदा होते वक्त दिल में उदासी और प्रशन्नता दोनों भावों का अहसास हो रहा था। उदासी का एहसास इसलिए कि बीते सप्ताह सिंगापुर को बहुत नजदीक से देखने-समझने का अवसर मिला था। सिंगापुर की बहुलवादी संस्कृति, विकास के प्रतिभान, सिविक सेंस, प्रशासनिक कर्मठता इत्यादि को करीब से देखने के बाद दिल में यह जज्बा कुलांचे मारने लगा था कि कुछ ऐसा ही परिवर्तन अपने देश में भी किया जाए। सिंगापुर में भारतीय मित्रों ने जो प्यार-सम्मान दिया था , उसे भी दिल भुला नहीं पा रहा था। सिंगापुर के दर्शनीय स्थलों ने दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी थी, उसे भुलाना भी इतना आसान न था। सिंगापुर की यादों से निकलने का जी नहीं चाह रहा था, सो उदासी का घेरा मन के चारों ओर था किन्तु वियतनाम जैसे देश में पहुँचाने की लालसा भी अपनी जगह थी।



बहरहाल इस मानसिक उतार-चढाव में हिलोरे खाते हम सिंगापुर से विदा हुए। लगभग तीन घण्टे की हवाई यात्रा के बाद हम वियतनाम के नोई-बाई एअरपोर्ट पर जब उतरे तो विकसित एवम् विकासशील राष्ट्र के बीच का अन्तर स्पष्ट दिखने लगा। सिंगापुर में जहॉ सब कुछ व्यवस्थित सा था वहीं हनोई के इस एअरपोर्ट पर वह 'प्रोफेसनल कॉम्पीटेंसी' नहीं दिखी। इमीग्रेशन इत्यादि क्लीयर कराने में ही दो घण्टे से ज्यादा वक्त लग गया। इस थकाऊ प्रक्रिया के बाद हम ‘मिनी बस‘ से रवाना हुए अपने होटल ‘सिल्क पथ‘ की तरफ। हनोई एअरपोर्ट से हमारा होटल लगभग 35किमी0 दूर था। होटल की तरफ जाते वक्त हनोई की सड़कों का नज़ारा ऐसा एहसास दिला रहा था था कि जैसे हम अपने ही देश में हों। इन सडकों पर भी भारी ट्रैफिक था। सडको पर कार, बड़े वाहन, दुपहिया वाहन, साइकिल, पैदल और तो और पशु-जानवर सब एक साथ चल रहे थे। हनोई शहर में ट्रैफिक भी उतना ही अव्यवस्थित था जितना कि हमारे देश के किसी मध्यम स्तर के शहरमें हों। सडकों पर दुकानों का फैलाव भी कमोबेश अपने देश के ही किसी शहर की याद दिला रहा था। 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70 प्रतिशत हयूमिडिटी के वातावरण में हनोई के 'सिल्क पथ' होटल में पहुँच कर यहॉ के मौसम में गर्मी की तीव्रता का एहसास हुआ। सिल्क पथ पहुँच कर यह आदेश मिला कि हमें तत्काल 'नेशनल अकेडमी ऑफ़ पब्लिक एड्मिनिस्त्रेसन' पहुँचना है। हालांकि हम हवाई यात्रा व तदोपरान्त इस सड़क यात्रा के बाद पर्याप्त रूप से थक चुके थे किन्तु आदेश के पालन के लिए तत्काल राष्ट्रीय अकादमी निकल लिए।



हनोई की सडकों पर यात्रा करने का यह अनूठा अनुभव था। होटल से अकादमी की दूरी लगभग 10-12 कि0मी0 रही होगी। इस यात्रा के दौरान हनोई के बाजार, लोगों, सामान्य रहन-सहन, व्यवहार आदि के विशय में एक राय पुख्ता आकार लेने लगी थी। हनोई की इन कम चौड़ी सडकों पर दुपहिया वाहनों की भरमार थी हालाँकि चैपहिया वाहनों की संख्या काफी कम थी। लगभग आधे घण्टे की यात्रा के बाद हम अकादमी पहुंचे । अकादमी में घुसते ही लगा कि किसी ‘‘टिपिकल गवर्नमेण्ट आफिस बिल्डिंग‘‘ में आ चुके हैं। अकादमी के परिचयात्मक सत्र में वियतनाम के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने-वार्ता करने का अवसर प्राप्त हुआ। उनसे मिलते समय हैरानी हुई की वरिष्ठतम नौकरशाह भी ‘वियतनामीज‘ भाषा में ही वार्तालाप कर रहे थे। हमारी सम्प्रेषण की भाषा तो अंग्रेजी थी किन्तु वियतनामी अधिकारी अपनी राष्ट्र भाषा में ही वार्तालाप कर रहे थे, सहूलियत के लिए अनुवादक की व्यवस्था थी , लेकिन इसके बावजूद आपसी सम्प्रेषण में तारतम्यता का अभाव साफ दिख रहा था। बहरहाल इस अभाव के बावजूद वियतनामी लोगों का अपनी भाषा के प्रति लगाव प्रशंसनीय तो था ही.........।



अगले कुछ दिन इसी तरह वियतनाम में गुजरे। हर दिन वियतनाम से जुडाव गहराता गया। यहॉ के जन सामान्य पर अपनी प्राचीन इतिहास- संस्कृति-सभ्यता और भाषा का प्रभाव साफ नजर आता है। वियतनाम के वर्तमान पर कुछ लिखने से पूर्व वियतनाम के बारे में कुछ सामान्य जानकारी देना आवश्यक समझता हूँ । 86 मिलियन जनसंख्या वाले इस देष में 90% साक्षरता है और आधी जनसंख्या बौद्ध धर्म की अनुयायी है। 02 सितम्बर, 1945 को आजाद होने के बाद 15 अप्रैल, 1952 को इस देश में नया संविधान बना। प्रशासकीय दृष्टिकोण से यह देश 58 प्रान्तों तथा 5 म्यूनिसपैलिटीज में विभाजित है। ‘हनोई‘ जो वियतनाम की राजधानी है, वह भी एक म्यूनिसपैलिटी ही है। 1052डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाले इस देश की विकास दर 5% से कुछ ज्यादा है । इस देश में आय के साधन कोयला, कच्चा तेल, जस्ता, तांबा सोना, मैगनीज जैसे खनिज हैं। इनके अतिरिक्त चावल, कॉफी, मक्का, काजू, मसाले (काली मिर्च), आलू, मूंगफली मछली आदि उत्पाद भी देश के विकास में महती योगदान देते हैं।



वियतनाम का इतिहास लगातार बनता-बिगड़ता रहा है। चीन, जापान और फ्रांस की सभ्यताओं ने इस देश के इतिहास- सभ्यता को समय-समय पर प्रभावित किया है। इन देशों में वियतनाम जनता के साथ लगातार संघर्ष भी होता रहा है। यही संघर्ष वियतनाम की जनता को अपनी ‘अलग पहचान‘ स्थापित करने के लिये लगातार प्रेरित करते रहे। वियतनामियों को अपनी भाषा-संस्कृति से जुडाव यकीनन इन्हीं संघर्षों का परिणाम है। 1985 तक यह देश अंतर्राष्टीय नवाचारों से बहत ज्यादा नहीं जुड पाया था, 1986 में आर्थिक सुधारों को अपनाने के बाद वियतनाम अंतर्राष्टीय अर्थव्यवस्था से जुडा है। यह सुधार वियतनाम में डोई-मोई (क्व्प्।डव्प्) के नाम से जाने जाते हैं। ये सुधार केन्द्रीकृत नियोजन से इस देश को खुले अंतर्राष्टीय बाजार से जोडते हैं।



फिलहाल इस बार अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ, अगली पोस्ट में वियतनाम के महान नेता 'हो-ची-मिन्ह‘, प्रशासनिक व्यवस्था, यहाँ के लोक-पक्ष‘ और ‘लोक-व्यवहार‘ के विषय में लिखने का प्रयास करूंगा।




***** एक बात और वियतनाम जाने से पूर्व इस देश के बारे में बड़े भाई और देश के नामचीन पत्रकार (संपादक-हिंदुस्तान) श्री शशि शेखर जी से भी विस्तृत वार्ता हुई थी.....वे इस देश के इतिहास- संस्कृति-सभ्यता और भाषा से बहुत प्रभावित थे। वियतनाम जाने से पूर्व उनसे हुई बात-चीत ने वियतनाम को और भी करीब से देखने-समझने की दृष्टि विकसित की. आभारी हूँ श्री शशि शेखर जी का जिन्होंने इस देश को देखने और समझने के लिए परिष्कृत दृष्टि को अंकुरित-पल्लवित होने का अवसर दिया.




क्रमश:

18 टिप्‍पणियां:

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

परम पूज्य भैया
वियतनाम यात्रा व्रतांत पढ़ कर एसा लगा मनो
हम वियतनाम की सडकों पर घूम रहे हो
आप ने तो यहीं बैठे बैठे वियतनाम की सैर करा दी
बहुत ही ज्ञान वर्धक पोस्ट
बधाइयाँ ..........................

Rangnath Singh ने कहा…

वियतनाम विभिन्न कारणों से हमारी जिज्ञासा का केन्द्र रहा है। उम्मीद है आप वहां की वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक अवस्थितयों पर भी लिखेंगे।

rashmi ravija ने कहा…

रोचक संस्मरण ...वियतनाम के बारे में कई सारी जानकारी मिली...उनलोगों में अपनी भाषा के प्रति प्रेम..सराहनीय है

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

सुन्दर !
भारतीय संस्कृति के अवशेष और वर्तमानिक अभिव्यक्ति तो वहाँ बखूबी हैं ! परिचय इनका भी दीजिएगा !
वैसे तो तीसरी दुनिया के देशों में जो साम्य है होता है वह तो दिखेगा ही , सो भारत की यातायात व्यवस्था की याद वहाँ आये यह स्वाभाविक है |
'हनोई' में कितना दिल्ली था ? प्रभाव मूल्यांकन राजनीतिक ही नहीं ! बौद्ध प्रभाव का व्यापक होना इसमें निहित उस अंतर्शक्ति को बताता है जो बिना बाह्य आग्रहों का सहारा लिए अपनी स्वीकृति अपने दम पर कराता रहा ! भारतीय संवादी-स्वर की सफलता ही कहूंगा इसे !
'हो ची मिन्ह ' पर जानने की इच्छा है ! एक प्रशासनिक दृष्टि की परख करती लेखनी से चीजों को जानना अलग सा होगा ! आभार !

Abhishek Ojha ने कहा…

वियतनाम, इंडोनेशिया में बहुत कुछ भारत जैसा ही दिखता हैं अपने कुछ दोस्त आते-जाते रहे हैं उधर उन्होंने भी ऐसा ही बताया.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"वियतनाम के नोई-बाई एअरपोर्ट पर जब उतरे तो विकसित एवम् विकासशील राष्ट्र के बीच का अन्तर स्पष्ट दिखने लगा।"

यही भावना उन लोगो की भी होती होगी जो हम से भी ज्यादा विकसित देशो से हमारे देश में आते है !

जो भी हो आपके माध्यम से कम से कम हम लोगो को उन जगहों के बारे में और भी बहुत कुछ जानने को मिल रहा है जिन के बारे में सिर्फ़ अभी तक सुना या कहीं ना कहीं पढ़ा था !
बहुत बहुत आभार आपका ! अब तो बस जल्दी से मैनपुरी आ जाइये फिर बैठ कर बाते होती है !

Smart Indian ने कहा…

सुन्दर वृत्तांत, अगली कडी का इंतज़ार रहेगा!

शरद कोकास ने कहा…

बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत है ।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपका ये यात्रा वृत्तांत रोचक और बहुत ज्ञान वर्धक है...आनंद आ रहा है पढ़ते हुए...

नीरज

Salim Raza ने कहा…

pawan ji aapki ye viyatnaam yatra padh kar aisa laga,ki ham viyat naam pahuh gaye,sapne ki tarha ankh khuli to bistar par paya,bahut sundar likha hai aapne,aur viyatnaam ka naqsha zehan me chaa gaya,aapka ya khoobsoorat safar naama,qable taareef hai,har burha insaan yaqeenan beesvin sadi dekhne ki chutki zaroor lega,thanks for sharing,

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सिंगापुर के बाद अब वियतनाम...आपके दृष्टिकोण से समझने, जानने की कोशिश कर रहा हूँ।
..उम्दा प्रस्तुति।

ZEAL ने कहा…

रोचक संस्मरण

hem pandey ने कहा…

सिंगापुर की बहुलवादी संस्कृति, विकास के प्रतिभान, सिविक सेंस, प्रशासनिक कर्मठता इत्यादि को करीब से देखने के बाद दिल में यह जज्बा कुलांचे मारने लगा था कि कुछ ऐसा ही परिवर्तन अपने देश में भी किया जाए।

- जब ऐसा सोचने वालों की संख्या बढ़ती जायेगी तो हमारे देश में भी ऐसा होने लगेगा | इनमें से कुछ कार्यों के लिए तो शासन के सहयोग की भी आवश्यकता नहीं | जैसे- सिविक सेन्स |

adbiichaupaal ने कहा…

आपने घर बैठे वियतनाम की सैर करा दी. आपकी लेखनी तो जादू है जादू.

rajani kant ने कहा…

विएतनाम युद्ध और अमरीकी नव साम्राज्यवाद के बारे में वहाँ की युवा पीढ़ी क्या सोचती है, यदि संभव हो तो प्रकाश डालियेगा.

सत्येन्द्र सागर ने कहा…

प्रिय मित्र आपके ब्लॉग को पढ़कर तुलनात्मक लोक प्रशाशन की याद आ गयी. जिस प्रकार रिग्गस ने विकसित विकासशील तथा अविकसित देशो की प्रशासनिक अवस्थाओ का वर्णन किया है उसे अपने बिलकुल साकार रूप में प्रस्तुत किया है. प्रत्येक देश की अपनी एक राजनितिक-प्रशासनिक संस्कृति होती है. आपके ब्लॉग में सिंगापूर तथा वियतनाम की राजनितिक-प्रशासनिक संस्कृति के बीच का अंतर साफ़ झलकता है. अगर हमें विकसित होना है तो सबसे पहले अपनी राजनितिक-प्रशासनिक संस्कृति ही बदलनी होगी अन्यथा सारे प्रयास बेकार जायेंगे .

VOICE OF MAINPURI ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
pankaj ने कहा…

very keen observation of vietnaam. how interesting.