ऑफिस बैठा हुआ कुछ ज़ुरूरी कम निपटा रहा था.....अचानक मोबाईल बजा......उठाया- हेलो किया तो उधर से आवाज़ आई......आदाब कैसे हैं जनाब.......मैंने भी आदाब क़ुबूल कर उसी सम्मान के साथ आदाब किया.....आवाज़ जानी पहचानी लगी मगर मोबाईल पर अनजाना नंबर डिस्प्ले हुआ था सो इंतज़ार किया कि उधर वाले साहब अपना परिचय दें तो आगे बात बढाऊँ....बहरहाल यह स्थिति तुरंत ही साफ़ भी हो गयी.........उधर से आवाज़ आयी जनाब नवाज़ देवबंदी बोल रहा हूँ.......! मैंने तुरंत प्रति प्रश्न किया कि नंबर तो अनजाना लग रहा है......उन्होंने बताया कि वे आज गोरखपुर में ही हैं..........यहाँ उनका मोबाईल काम नहीं कर रहा है सो वे अपने किसी मित्र के फोन से बात कर रहे हैं ......! बात आगे बढ़ाते हुए बोले मैं मगहर आया हुआ था..........अखिल भारतीय मुशायरा में पढने के लिए......रास्ता यहीं से जाता है सो ट्रेन से उतर लिया फिलहाल गोरखपुर में हूँ शाम को मगहर जाऊंगा........अगर फुर्सत हो तो मुलाक़ात हो जाए.......! नवाज़ साहब की यही साफगोई मुझे बहुत पसंद है..........मैंने तुरंत कहा घर आ जाईये..............बिना किसी औपचारिकता के बाद शाम 7 बजे वे अपने एक स्थानीय शायर दोस्त के साथ तशरीफ़ ले आये................मैं तो उनका बेसब्री से इन्तिज़ार कर ही रहा था.........एक मुद्दत के बाद उनसे मुलाक़ात हो रही थी..........! उन्हें जल्दी ही जाना था......चाय लेने के दौरान मेरी पत्नी ने उनसे कुछ शेर पढ़ने को कहा तो नवाज़ साहब शुरू हो गए...........एक बार जब वे शुरू हो गए तो माहौल ऐसा परवान चढ़ा कि अगले दो घंटे कब गुज़र गए पता ही नहीं चला............एक के बाद एक बेहतरीन शेर ! ............. जैसे सारा खज़ाना नवाज़ साहब हम पर लुटाने को तैयार थे..........श्रोता के नाम पर मैं, मेरी पत्नी और रेलवे में अधिकारी मगर शायर के रूप में पहचान बना चुके बी. आर. बिप्लवी साहब थे. उनके हर एक शेर पर हम तीनों वाह- वाह- शुभान अल्लाह- क्या बात है- जिंदाबाद- मुक़र्रर जैसे जुमलों को दोहराते रहे........!
उनकी एक ग़ज़ल जो जगजीत सिंह साहब ने भी गयी है मुझे काफी पसंद है, मुलाहिजा फरमाएं-
तेरे आने की जब खबर महके,
तेरी ख़ुश्बू से सारा घर महके !
रात भर सोचता रहा तुझ को,
जेहनो दिल मेरे रात भर महके !
उनकी एक ग़ज़ल जो जगजीत सिंह साहब ने भी गयी है मुझे काफी पसंद है, मुलाहिजा फरमाएं-
तेरे आने की जब खबर महके,
तेरी ख़ुश्बू से सारा घर महके !
रात भर सोचता रहा तुझ को,
जेहनो दिल मेरे रात भर महके !
उनकी एक ग़ज़ल आदरणीय लता जी ने भी गयी है..........क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल है यह.....!
कुछ इस तरह से उसे प्यार करना पड़ता है,
कि उसके प्यार से इन्कार करना पड़ता है !
कभी कभी तो वो इतना करीब होता है,
कि अपने आपको दीवार करना पड़ता है !
खुदा ने उसको अता की है वो मसीहाई,
कि खुद को जान के बीमार करना पड़ता है !
उन्ही की जानिब से कुछ गजलों के चंद शेर और जो मेरे जेहन में अब तक बसे हुए हैं ..........
वो रुलाकर हँस न पाया देर तक,
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक !
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक !
गुनगुनाता जा रहा था इक फकीर,
धूप रहती है न साया देर तक !
कुछ और पेशकस.......
मेरी कमजोरियों पर जब कोई तन्कीद करता है,
वो दुश्मन क्यों न हो उससे मुहब्बत और बढती है!
एक और खूबसूरत ग़ज़ल का टुकड़ा पेश है.......
यह जला दिया वो बुझा दिया, ये काम तो है किसी और का,
न हवा के कोई खिलाफ है न हवा किसी के खिलाफ है !
वो है बेवफा तो वफ़ा करो, जो असर न हो तो दुआ करो,
जिसे चाहो उसको बुरा कहो ये तो दोस्ती के खिलाफ है !
वो जो मेरे गम में शरीक था जिसे मेरा गम भी अज़ीज़ था,
मैं जो खुश हुआ तो पता चला वो मेरी ख़ुशी के खिलाफ है !
14 टिप्पणियां:
वाह, नवाज साहब को पढ़कर आनन्द आ गया...दूसरा यह जानकर भी कि आप गोरखपुर में हैं..मेरी तो ददिहाल और ननिहाल दोनों ही गोरखपुर है.
नवाज साहिब की शायरी कमाल की है सुन्दर प्रस्तुति के लिये आभार
जनाब सिंह साहब आदाब
नवाज़ भाई के खूबसूरत अश'आर पढ़वाने के शुक्रिया.
वो तो माशा अल्लाह शिखर पर हैं..
पहली पोस्ट के सभी अश'आर बहुत पसंद आये
कोई भी कहीं से कमज़ोर नहीं-
खास तौर पर---
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं !
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं !!
एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो,
बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं !!
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे-खासे आज को खोना ठीक नहीं !!
बहुत खूब, मुबारकबाद
कभी वक्त मिले, तो 'जज्बात' पर भी तशरीफ लायें
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बहुत खूब भइया....नवाज़ साहब देश के संजीदा शायरों में एक हैं.यही वजह है उनकी ज़बान और बयान हर एक के लिए मायने रखते हैं.यही उनकी सबसे बड़ी खूबसूरती और काबलियत है.हिन्दू - मुस्लिम सदभव पर लिखा ये शेर उनके व्येक्तित्त्व की झलक देता है......
दरहम बरहम दोनों सोचें,
मिलजुल कर हम दोनों सोचें
दर्द का मरहम दोनों सोचें
सोचें पर हम दोनों सोचें
घर जल कर राख हो जाएगा
जब सब कुछ खाक हो जाएगा
तब सोचेंगे!
सोचो आख़िर कब सोचेंगे
सोचो आखिर कब सोचेंगे.
बहुत खूब जनाब. नवाज़ साहब से परिचय करने का बहुत बहुत शुक्रिया.
बहुत खूब जनाब. नवाज़ साहब से परिचय करने का बहुत बहुत शुक्रिया.
आप हैरान करते हैं मजिस्ट्रेट साब हर बार...कभी अपने अशआरों से, कभी अपने यात्रा-वृतांत से तो कभी अपने उम्दा मित्रगनों के परिचय से। अब नवाज साब से कौन भला नहीं परिचित होगा...कितनी दफ़ा तो सुन हूं उनको गाते मुल्क के हर दूसरे मुशायरे में टीवी पर और पूरा का पूरा मंच लूटते हुये....और विप्लवी साब भी आपके मित्रों में शुमार है, खुदा खैर करे| उनकी किताब "सुबह की उम्मीद" पिछले साल से मेरी पसंदीदा ग़ज़ल की किताबों वाली फ़ेहरिश्त में शामिल हैं। कभी उनके बारे में भी लिखियेगा...
आप जैसे प्रशासकों की जरुरत है सर जी इस मुल्क को बड़ी शिद्दत से...
पवन भाई, शिकायत है आपसे...अपने आप को कितना छुपाकर रखते हैं. मसूरी में कभी बताया भी नही की आप इतना अच्छा लिखते हैं और ना ही अपने ब्लॉग के बारे में बताया. वाकई आपके ब्लॉग से गुजरना आजके दिन की उपलब्धि रही. आपकी ग़ज़लें तो माशा अल्लाह हैं..गद्य भी बड़ा सधा, निखरा और प्रवाह युक्त है. मजा आ गया आपके ब्लॉग को पढ़ कर. बहुत सारे उस्ताद शायरों की भी प्यारी रचनाएँ पढने को मिली. ऐसे ही अपनी रचनाओं में अपने आप को, अपने समय को अभिव्यक्त करते रहे...मेरी और से ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
यह जला दिया वो बुझा दिया, ये काम तो है किसी और का,
न हवा के कोई खिलाफ है न हवा किसी के खिलाफ है !
वो है बेवफा तो वफ़ा करो, जो असर न हो तो दुआ करो,
जिसे चाहो उसको बुरा कहो ये तो दोस्ती के खिलाफ है !
वो जो मेरे गम में शरीक था जिसे मेरा गम भी अज़ीज़ था,
मैं जो खुश हुआ तो पता चला वो मेरी ख़ुशी के खिलाफ है !
आ...हा....उर्दू मुशायरे के जाने माने नाम नवाज़ साहब के इन शे'रों ने मन मोह लिया ......सलाम उन्हें .....!!
बहुत ही सुन्दर मुलाकात भैया .....
नवाज साहब से मुलाकात का तो सभी को बेसब्री से
इंतजार रहता है | पर यह मौका खुशनसीब लोगों को ही
मिलता है | किन्तु अपने हम सभी ब्लोगर को एसा अहसास कराया
जैसे हम भी नवाज़ साहब से रु ब रु है | मुलाक़ात का बेहतरी वर्णन
जनाब नवाज साहब और आप मेरा तहे दिल से सलाम कुबूल करें |
अरे नवाज़ साहब अपने गोरखपुर और मगहर गए थे..दुर्भाग्य मेरा की मै घर नहीं..'तेरे आने की जब खबर महके' तो मेरे लिए बिलकुल भजन की तरह है..महीने-महीने गुनगुनाया है इसे...!
नवाज़ साहब की लेखनी को साष्टांग प्रणाम...!
मजिस्ट्रेट साब ....! आपका बेहद आभारी हूँ...इस रूबरू के लिए...!
चलिए एक और नायाब शायर का परिचय मिला आपसे , जनाब की शायरी
और आपकी लेखनी ... क्या कहने इसके !
गोया ,
''हम पी भी गए छलका भी गए '' ...
.............. आभार ,,,
आपके द्वारा पेश किये हुए हर ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....
आपके ब्लॉग पर विसीट करने पर आपके और आपके चाहने वालों की हर विधा की बेहतरीन गजले और शायरी पढ़ने का मौका एक ही जगह पर मिल जाता हैं | उसपर जिस तरह संजिदियो और अदब से बेहतरीन तरह से आलोचना देखने को मिलती है, उससे एक मशहूर शायर जनाब " मंजर भोपाली " की लिखी शायरी की एक लाइन याद आ रहीं हैं जो की आज के ज़माने के सभी शायरों को समर्पित हैं
" कह दो मीर-वो- ग़ालिब से , हम भी शेर कहते हैं |
वो सदी तुम्हारी थी , यह सदी हमारी हैं || "
reagrds/vijay/ntpc
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