ब्लॉग पर इधर जिस तरह बेहतरीन ग़ज़लें लिखी जा रही हैं वो इस बात का सीधा संकेत करती हैं कि ग़ज़ल के प्रति न केवल पढ़ने, बल्कि लिखने के प्रति अभी भी दीवानगी बनी हुयी है.........खेमेबाजी ने लेखन को बहुत नुकसान पहुँचाया...........प्रतिष्ठित लेखकों का यही एक दोष रहा कि उन्होंने साहित्य सृजन को कैम्पों में बाँट दिया। हर लेखक किसी न किसी कैम्प से जुड़ने को मजबूर हुआ...........प्रकाशन के अभाव में छोटे शहरों के तमाम सृजक इस दौड़ में कहीं पीछे छूट गए.......यह तो भला हो ब्लॉग का जिसने ऐसे तमाम स्वतंत्र सोच वाले सृजकों को नया प्लेटफार्म उपलब्ध कराया............बगैर किसी रोक टोक के अब उनको पढ़ा जा सकता है..........बहरहाल ग़ज़ल की बात करें तो इस समय ब्लॉग पर कई शानदार लेखक उभर कर आये हैं...........सबका नाम ले पाना तो मुश्किल है मगर जहाँ तक मैं ब्लॉग -विचरण करता हूँ उनमे निश्चित तौर पर गौतम राजरिशी, नीरज,लता हया,मानोसी,सतपाल, श्याम सखा, पंकज सुबीर, सर्वत जमाल, दीपक गुप्ता, रूपम, प्रवीण, योगेश भाई आदि के नाम बिना किसी संकोच के लिए जा सकते हैं........(कुछ और भी नाम हैं बस याद नहीं आ रहे, जैसे ही याद आये तो पोस्ट सम्पादित कर लिखूंगा ).............इनको देख कर कुछ नए लोग भी (मसलन महफूज़ अली, पी सिंह.......) ग़ज़ल लेखन में सामने आ रहे हैं...........नए लेखकों का भाव अथवा व्याकरण पक्ष कमजोर हो सकता है मगर ब्लोगर बंधुओं ने बड़े खुले मन से उन सब की हौसला अफजाई की और जहाँ ज़ुरूरी हुआ वहां हलकी सी झिडकी भी दे दी (शरद, समीर, गिरिजेश, और अमरेन्द्र जी इस मामले में अव्वल हैं) ..........! कुल मिलकर एक सुखद माहौल तो क्रियेट हो चुका है......बस इसको आगे ले चलने की चुनौती हमारे सामने है............! बहरहाल इस बीच नए साल की पहली ग़ज़ल आपको पेश करने का मन हुआ सो पेश कर रहा हूँ ..........!
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं !
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं !!
दिल जो इज़ाजत दे तो हाथ मिलाओ तुम,
बेमतलब के रिश्ते ढोना ठीक नहीं !!
हर आंसू की अपनी कीमत होती है,
छोटी -छोटी बात पे रोना ठीक नहीं !!
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो,
बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं !!
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे-खासे आज को खोना ठीक नहीं !!
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
दिए के जैसे रोशन तेरी आँखें हैं,
फ़स्ल-ए-आब को इनमें बोना ठीक नहीं !!
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं !
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं !!
दिल जो इज़ाजत दे तो हाथ मिलाओ तुम,
बेमतलब के रिश्ते ढोना ठीक नहीं !!
हर आंसू की अपनी कीमत होती है,
छोटी -छोटी बात पे रोना ठीक नहीं !!
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो,
बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं !!
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे-खासे आज को खोना ठीक नहीं !!
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
दिए के जैसे रोशन तेरी आँखें हैं,
फ़स्ल-ए-आब को इनमें बोना ठीक नहीं !!
19 टिप्पणियां:
नीरज गोस्वामी ने कहा…
हर आंसू की अपनी कीमत होती है,
छोटी -छोटी बात पे रोना ठीक नहीं !!
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
बेहतरीन शेरों से सजी आपकी ये ग़ज़ल लाजवाब है...हर शेर अपने आपमें पूरा है और कमाल का है...दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
९ जनवरी २०१० २:५२ AM
निर्मला कपिला ने कहा…
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं !
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं !!
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
सनझ नहीं आ रहा तारीफ करते हुये कि शेर को छोडूँ लाजवाब गज़ल है बधाई। शुभकामनायें
९ जनवरी २०१० ३:२६ AM
psingh ने कहा…
बहुत खूब आपने पुरे हिन्दी ब्लॉग का खाका चंद शब्दों में
खींच दिया और हम बिखरे हुए ब्लोगर को एक सूत्र में बांधा
बहुत सुन्दर हिन्दी ब्लॉग को आप जैसे लेखक की शख्त
जरुरत है|
और गजल के लिए कहना ही क्या बहुत सुन्दर .......
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे-खासे आज को खोना ठीक नहीं !!
उम्दा शेर
बधाई.............स्वीकारें
९ जनवरी २०१० ३:३२ AM
दिगम्बर नासवा ने कहा…
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो,
बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं !!
आपके नज़रिए का कायल हूँ ......... सच में मज़ा आ जाता है लाजवाब फनकारों को पढ़ कर .........
आपकी ग़ज़ल में भी खूबसूरत हैं सारे शेर ......... सोने पे सुहागे की तरह ........
९ जनवरी २०१० ३:३४ AM
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने कहा…
बंधुवर !
सहमत हूँ आपसे .. खेमेबंदी ने साहित्य का बहुत
बहुत नुकसान किया है ..
ब्लॉग-जगत इससे बचा रहे , इसकी प्रार्थना मैं भी
करता हूँ ..
'' बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !! ''
---------------- खेमे का जादूटोना तो बिलकुल ही ठीक नहीं ..
'' एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो,
बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं !! ''
------------------ क्या ही अच्छा होता अगर रचनाकार इसे अपना
काव्य-हेतु ( और प्रयोजन भी ) बना लेता !
............. आभार ,,,
९ जनवरी २०१० ५:३२ AM
sumati ने कहा…
दिए के जैसे रोशन तेरी ऑंखें हैं
फसले आब को इनमें बोना ठीक नहीं...
ये पूरी ग़ज़ल का माशूक शेर है
कुर्बान.....मैं
इस waveleanth के दो शेर और होते तो क्या कहने
मैं कहूँ तो ठिकाने दर ठिकाने तुम जैसे....एहसास और..... फ़िदा हुआ ......का दिल निचोड़ने वाला तेवर दिखा दो ...
एक बार फिर तो मैं बस ...
९ जनवरी २०१० १०:०७ AM
आशु ने कहा…
बहुत अच्छी शुरुयात की आपने अपने शुरू के पहरे में. सही कहा है ग़ज़ल का चलन बढ़ रहा है. और बहुत लोगों को ब्लॉग की वजह से फिर लिखने का प्रोत्हासन मिला है और उम्मीद है ऐसी कोई खेमेबाजी नहीं होगी जिस से यह creative प्रासेस में कोई रुकावट आ सके.
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं !
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं !!
हर आंसू की अपनी कीमत होती है,
छोटी -छोटी बात पे रोना ठीक नहीं !!
वैसे तो आप के सभी शेयर बहुत उम्दा है पर ग़ज़ल का मतला और दूसरा शेयर बहुत खूब लगे.
आशु
९ जनवरी २०१० ७:०९ PM
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
क्या ही ख़ूब कहा जी वाह वाह।
हर आंसू की अपनी कीमत होती है,
छोटी -छोटी बात पे रोना ठीक नहीं !!
यह पंक्तियाँ दिल को छू गयीं..... बहुत सुंदर ग़ज़ल....
मैं आजकल मशहूर ग़ज़लकार जावेद अख्तर से ग़ज़ल सीख रहा हूँ....
हम्म्म तो हमारा नाम भी ले लिया है आपने....लेकिन नीरज जी, लता हया जी, सतपाल भाई सर्वत जमाल साब, श्याम सखा साब पंकज सुबीर जी, दीपक गुप्ता जी के साथ हमारा नाम मत जोड़िये सरकार। ये सब के सब स्थापित धावक हैं ग़ज़ल की ट्रैक-फील्ड के हैं और हम तो अभी घुटनों के बल ही हैं इस ट्रैक पर।
...और आपकी लेखनी से उपजी एक और बेमिसाल ग़ज़ल। इस बहर पे खूब अशआर कहते हैं आप। अभी कुछ दिन पहले भी एक बेहतरीन ग़ज़ल सुनायी थी आपने अपने इसी ब्लौग पर इसी बहर में।
लाजवाब मतला...बेमतलब अल्फ़ाज पिरोना का इशारा दूर-दूर तक पहुंचे कि काश! और हासिले-ग़ज़ल शेर "मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं" पे जितनी दाद दूं पवन साब कम होगी। क्या शेर लिखा है सर जी...भई वाह-वाह!
मतले के मिस्रे-उला में थोड़ा-सा खटका है सर। साढ़े पाँच फ़ेलुन पर लिखा गया मिस्रा "इन्हें" की वजह से गुनगुनाते समय अटक जा रहा है। यदि "इनको" किया जाय तो शायद ठीक रहेगा। अरुजी लोग "इन्हें" का वजन फ़ऊ{12} में रखने को कहते हैं।
हासिले-ग़ज़ल शेर तो है ही चुराने लायक...किंतु फ़स्ले-आब का बिम्ब आखिरी शेर में शायर की सोच पे तालियां बजाने को विवश कर रहा है।
2nd and 3rd para has touches my heart.
regards/vijay
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
बेहद शानदार...हर एक लिए एक -एक शेर है इसमें
इस फड़कती हुई... गजलनुमा चीज के लिये बधाई।
गागर में सागर जैसा भर लाए हैं आप।
--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
सर्वप्रथम ह्रदय पुष्प पर आने और "असमानताएं" पर अपनी टिप्पणी से उसे सजाने के लिए हार्दिक आभार.
ब्लॉग पर ग़ज़ल सम्बन्धी लेख मेरे जैसे नए ब्लॉगर/पाठक के लिए अच्छा और ज्ञानवर्धक लगा.
"आँख का बंजर होना ठीक नहीं ..........!" शीर्षक ही इतना अच्छा लगा कि बिना पढ़े रह ही नहीं सकता था. सार्थक और संदेशवाहक ग़ज़ल के लिए बधाई और इस शेर ने सब कुछ कह दिया.
एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो,
बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं !!
मेरे ब्लॉग पर आने और प्रोत्साहन के लिए के लिए आभार.ब्लॉग जगत का विवरण अच्छा लगा, पर उसमें आपका नाम न होना "ठीक नहीं". बहुत ही बेतरीन ग़ज़ल है. चूँकि भाषा मेरा विषय नहीं है इसलिए "बेमतलब अल्फ़ाज़ पिरोना ठीक नहीं" माफ़ कीजियेगा आप की ही पंक्तिया लिख रही हूँ क्योंकि इस लाजवाब ग़ज़ल के बात कुछ भी कहना ठीक नहीं. सादर आभार
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं !
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं !!
ahaaaaaa kya baat hai
दिल जो इज़ाजत दे तो हाथ मिलाओ तुम,
बेमतलब के रिश्ते ढोना ठीक नहीं !!
bahut bahut khoob
हर आंसू की अपनी कीमत होती है,
छोटी -छोटी बात पे रोना ठीक नहीं !!
maza aa gaya kamaal kahte hain
बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं,
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं !!
bahut khoob
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे-खासे आज को खोना ठीक नहीं !!
मुख्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है,
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं !!
दिए के जैसे रोशन तेरी आँखें हैं,
फ़स्ल-ए-आब को इनमें बोना ठीक नहीं !!
kis sher ko kam kahun kisko zyada gazal ka har sher itni gahri baat kah raha hai aur dil tak seedha utara raha hai
bahut achcha likhte hain
बेहतरीन गज़ल.
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे-खासे आज को खोना ठीक नहीं !!
..सुंदर दर्शन की सफल अभिव्यक्ति ..वाह!
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