काफी दिनों के बाद आज ब्लॉग को देखा तो अपनी मशरूफियत का एहसास हुआ.....न कोई पोस्ट न कोई टिप्पणी .......गोरखपुर से मसूरी का ये सफ़र बहुत ही शांति से गुज़र रहा है.....इस ख़ामोशी को एक ग़ज़ल के साथ तोड़ रहा हूँ एक ग़ज़ल के साथ......मगर यह ग़ज़ल मेरी न होकर मेरी हमसफ़र और शरीके हयात अंजू की है...... ग़ज़ल कच्ची है, गलतियाँ होनी ही हैं....! मगर फिर भी पेश है ये ग़ज़ल अपने उसी रूप में बगैर किसी इस्लाह के.......!
हवाओं का दरख्तों से मुसलसल राब्ता है
कि उसकी याद का खुश्बू से जैसे वास्ता है !!
हसीं मंज़र है वो नज़रों में उसको कैद कर लो
इन्ही लम्हों से सदियों का निकलता रास्ता है !!
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !!
हरे पत्तों पे ठहरी बारिशों कि चाँद बूँदें
इन्ही आँखों से उन अश्कों का गहरा रस्स्ता है !!
किसी भी हाल में 'गेसू' कभी तन्हा कहाँ है
कि गोया साथ उसके चल रहा एक रास्ता है !!
जल्दी मुलाक़ात होगी एक नयी ग़ज़ल के साथ
20 टिप्पणियां:
सार्थक अभिव्यक्ति।
बहुत बढिया !!
पवन जी, बहुत अच्छे भाव हैं ग़ज़ल में.
हसीं मंज़र है वो नज़रों में उसको कैद कर लो
इन्ही लम्हों से सदियों का निकलता रास्ता है !
ये शेर बहुत पसंद आया है.!! दाद की हक़दार हैं "हमसफ़र"!
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !!
अचानक वासिम साहब का एक शेर याद आ गया "...क्या इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना जरुरी है"
इंतज़ार है अगले पोस्ट का.
हसीं मंज़र है वो नज़रों में उसको कैद कर लो
इन्ही लम्हों से सदियों का निकलता रास्ता है !
उम्दा शेर है! बधाई!
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !..
शरीके हयात ने तो अपनी सादगी कुछ ही लफ़्ज़ों ... या यूँ कहूँ इतने लाजवाब शेर में उतार दी है .... ग़ज़ब की शेर है ....
उम्दा शायरी है...
आगाज़ का यह आलम है तो अंजाम क्या होगा...:)
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !..
वाह क्या खूबसूरत शेर हैं । आपकी शरीके हयात को बहुत बहुत बधाई शुभकअमनायें । इन्तजार रहेगा अगली गज़ल का।
अब यह बतायें कि आपने अपनी उनसे सीखा है या आपकी उन्होंने आपसे...
वैसे भाव बढ़िया हैं...
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता
bahut khoobsoorat gazal
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !!
क्या खूब कहा...उम्दा प्रस्तुति..बधाई
बहुत ही ख़ूबसूरत और नाज़ुक़ शायरी है
मज़ा आ गया!
बहुत खूबसूरत।
बहुत खूब , सुन्दर पंक्तियाँ
हवाओं का दरख्तों से मुसलसल राब्ता है
कि उसकी याद का खुश्बू से जैसे वास्ता है !!
बढ़िया ग़ज़ल !
अब यह बताइए जनाब ..............तबियत कैसी है अब ??
खूबसूरत!
अरे वाह-वाह पवन साब...मैम ने तो कमाल कर दिया है। ऊपर वाले ने एकदम चुन कर आपदोनों को मिलवाया है...
मैम को सैल्युट है। मतले ने और इस मिस्रे ने खासकर "इन्ही लम्हों से सदियों का निकलता रास्ता है" मन मोह लिया है।
कैसी चल रही है मसूरी में? पुराने ट्रेनिंग के दिन याद आ रहे होंगे... ;-)
huzoor
bahut hi achhee gzl padhvaaee aapne
har sher kisi shaayar ke zehn se nikalaa huaa .... !!
उम्दा गज़ल है भाभी जी को बधाई कहें ।
Sir,
पहली बार भाभी जी ग़ज़ल आपके पोस्ट पर पढने को मिली और ग़ज़ल के प्रति उनकी चाहत की अनुभूति हुई. आप शब्दों के चयन और व्याकरण का हवाला देकर जज्बात को कम नहीं कर सकते क्योकि किसी मशहूर shyaar ( नाम नहीं याद आ rahan ) हैं:-
"तेरे चिराग अलग, मेरे चिराग अलग,
मगर उजाला तो फिर भी अलग नहीं होगा "
regards/vijay
यह कच्ची ( जैसा कि आपने लिखा है ) गजल भी कितनी पकी सी है !
अब कुछ उर्दू शब्दों का शब्द ज्ञान बढ़ाना होगा , नहीं तो आस्वादन और
चिंतन दोनों नहीं कर पाउँगा ! आभार !
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