दोस्तों, इधर काफी मसरुफियात रही .... ब्लॉग पर भी कम ही आना जाना हो पाया. खैर, फिर से इस क्रम को लगातार बनाये रखने की जद्दोजहद में एक ग़ज़ल हो गयी है. अरसे बाद हुयी इस ग़ज़ल को पेशे खिदमत कर रहा हूँ .......!
सिर्फ ज़रा सी जिद की खातिर अपनी जाँ से गुज़र गए,
एक शिकस्ता किश्ती लेकर हम दरिया में उतर गए !!
तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!
जब तक तुम थे पास हमारे नग्मा रेज़ फज़ाएँ थीं,
और तुम्हारे जाते ही फिर सन्नाटे से पसर गए !!
हीरें भी क्यूँ शर्मिंदा हों नयी कहानी लिखने में,
जब इस दौर के सब राँझे ही अहदे वफ़ा से गुज़र गए !!
हर पल अब भी इन आँखों में उसका चेहरा रहता है,
कहने को मुद्दत गुज़री है उसकी जानिब नज़र गए !!
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
उसकी भोली सूरत ने ये कैसा जादू कर डाला,
उससे मुख़ातिब होते ही सब मेरे इल्मो हुनर गए !!
40 टिप्पणियां:
वाह भैया ! इतनी मसरूफियात में भी इतने मोती संजो लिये हैं आपने। चिंतन - मंथन से निकले हर शेर हैं। बेशक अनुभवों से भी। सब पर दाद, उस मसरूफियात जिनमें ये मोती निकले।
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
-- मेरे मन! निराश होने की जरूरत नहीं है.. कवि रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की सुनें:
“ अभी वक्त बाकी है बादल उठेगा
निगाहें उठाओ तो काजल जंचेगा।
मूंदे रहो तो न काजल न फाजल
जो आंजन लगाओ तो वो भी वृथा है,
बड़ी पोथियाँ हैं, जो ढो रहे हैं,
उन्हें क्या पता हैं मोहब्बत की बातें। ”
पिछली पोस्टों पर जाता हूँ..
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
वाह बहुत सुन्दर गज़ल
वाह जनाब ... क्या बात है ... बस इस सिलसिले को बनायें रखें ...!
"मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!"
पवन भाई, क्या कहने, इस शेर ने तो दिल जीत लिया, मेरा भी ओर आपकी भाभीजी का भी. ढेर सारी बधाइयाँ. व्यस्तताओं के बीच भी लिखना निरंतर रखे.
तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!
waah bahut khoob
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
बहुत ही ख़ूबसूरत बता कही है...
तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!
क्या बात है!
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
सही है. बस एक इस चादर को ही तो हम संभाल के नहीं रख पाते.
हर पल अब भी इन आँखों में उसका चेहरा रहता है,
कहने को मुद्दत गुज़री है उसकी जानिब नज़र गए !!
बहुत ख़ूब !बेहद नाज़ुक शेर !
मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, ग़ैरत, ख़ुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
वाह !बहुत उम्दा !
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
जिंदाबाद पवन जी
जिंदाबाद
लम्बे अरसे के बाद आपको पढ़ने का सुअवसर मिला. क्या लिख दिया भाई, पहली बार सरसरी तौर पर पढ़ लिया, कुछ नहीं हुआ. जब दूसरी बार पढा तो तीसरी और चौथी मर्तबा भी पढ़ना पड़ा. आँखें फट पडीं. याद आ गया-"रेख्ती के तुम्हीं उसी उस्ताद नहीं हो ग़ालिब ...."!
एक दो शेर कोट करना, मुझे इस ग़ज़ल की तौहीन लग रहा है.
बेहतरीन गज़ल।
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
...वाह! भुलाया न जा सकने वाला शेर।
तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!..................
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
क्यों जख्मो को हरा कर दिया मेरे दोस्त. जिन ज़ख्मो को वक्त भर चला है उन ज़ख्मो को छेड़े जा रहे हो.
Excellent आपकी जितनी तारीफ की जाय कम है आपका ये अंदाज़ रूमानी होने के साथ साथ सूफियाना भी है. हिंदी के श्रृंगार रस के वियोग के भाव के दर्शन भी बखूबी होते है.
keep it up.
हीरें भी क्यूँ शर्मिंदा हों नयी कहानी लिखने में,
जब इस दौर के सब राँझे ही अहदे वफ़ा से गुज़र गए ...
बहुत ही लाजवाब ... कमाल का शेर है जनाब ... बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा है आपने ... पर धमाकेदार है ...
तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!
भैया बहुत ही सुन्दर गजल
मतला बेमिसाल है
एसा लगता है की गुनगुनाते रहें
बधाइयाँ
बेहद संजीदा और खूबसूरत । मै अक्सर आपकी लाइने यहां वहां कोट करता रहता हूं,बगैर आपकी अनुमति के ,इतना अच्छा जो लिखते हैं आप ।
मुहब्बत की चादर पर भिड़े चूहे ! क्या बात है !
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
क्या बात है ......... बहुत खूब
बहुत खूबसूरत गज़ल. मसरूफियत में भी ऐसी चीज़ें पेश करते रहिये. धन्यबाद.
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
बहुत खूब,अद्भुत-अद्भुत-अद्भुत..!!
आपको ढ़ेरों बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर शेरों से सजी गज़ल्…………बधाई।
vaah,....ek aur achchhe shaayar se mulaqat hui...badhai, aise lekhan k liye....
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
तन्हाई में जब इतने मंजर गुजर गए तो तन्हा कहाँ रहे!
बेहतरीन !
हर पल अब भी इन आँखों में उसका चेहरा रहता है,
कहने को मुद्दत गुज़री है उसकी जानिब नज़र गए !!
बहुत खूबसूरत गज़ल....
सादर....
एक मुहब्बत की चादर को..............वाह वाह वाह
क्या ख़याल है और क्या अन्दाज़ेबयाँ| भई वाह|
उसकी भोली सूरत ने ये कैसा जादू कर डाला,
उससे मुख़ातिब होते ही सब मेरे इल्मो हुनर गए
बेहद उम्दा शेर
किसी एक शायर की ग़ज़लों का अगर शिद्दत से इंतज़ार रहता है तो वो आप हो पवन सर...इधर ब्लौग पढ़ना वैसे तो एकदम ही छोड रखा है| बस कभी कभार निकाल पड़ते हैं अपने पसंदीदा लोगों को ढूँढने ...
आपकी कलाम से निकला एक और हीरा...आह!
मतला बहुत ही सुंदर| मैंने पहले भी लिखा था आपकी किसे पोस्ट पर कभी की आपके मतले हमेशा बहुत ही जबरदस्त होते हैं| लेकिन ये शेर हजारों-लाखों बार उद्धृत करने लायक है सर जी "मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी/एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए"...वाह! क्या लिखा है!!!!
बधाई एक बेमिसाल ग़ज़ल के लिए!
tumko padha to ye khayal aaya
zindgi dhup tum ghana saya
behtreen ke aage koi lafz jante ho to batan es gazal ke liye behtrin se use replace karna hai
sumati
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए
is ek khoobsurat sher ki bdaulat gazal ki azmat mei khoob izaafa huaa hai .... har sher apni misaal aap hai... badhaaee .
वाह वाह...बड़ा कमाल लिखते हैं आप! बहुत बहुत बढ़िया ग़ज़ल है!
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !
बहुत गहरी बात कह दी आपने।
बहुत सुन्दर कविता..........
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत गज़ल....
हर पल अब भी इन आँखों में उसका चेहरा रहता है,
कहने को मुद्दत गुज़री है उसकी जानिब नज़र गए !!
वाह लाजवाब ग़ज़ल मतला ता मक्ता बेहद खुबसूरत
और दिलकश बार बार पढ़ा अच्छा लगा की कितनी
मसरूफियत भरी कठोर ज़िन्दगी में भी अहसास मरते
नहीं ज़रूरत है सिर्फ उन्हें अलफ़ाज़ देने की जिसे आपने बखूबी किया है
वाह पवन भाई वाह
जिंदाबाद
तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो,
भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !!
waah, dil ko chhunewali gazal
बहुत ही ज़ोरदार गज़ल है..मतला तो बहुत ही बढ़िया है..और फिर "जब तक तुम थे पास हमारे नग्मा रेज़ फज़ाएँ थीं..", "हीरें भी क्यूँ शर्मिंदा हों नयी कहानी लिखें में..", "मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी.." तो बहुत ही ज़ियादा पसंद आये.. बधाई.
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
सिंह साहब, ग़ज़ल का हर शेर बहुत अच्छा लगा,लेकिन यक़ीन मानिए कि ये शेर तो तारीखी बन गया, अमर शेर है, लाजवाब इसके लिए खास तौर पर मुबारकबाद.
उसकी भोली सूरत ने ये कैसा जादू कर डाला,
उससे मुख़ातिब होते ही सब मेरे इल्मो हुनर गए !!
यह भोली सूरत का जादू भी क्या है ..किसी को भी घायल कर देता है ......!
प्रिय बंधुवर पवन कुमार जी
singhSDM
सादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत शानदार रवां - दवां ग़ज़ल लिखी है ...
मुबारकबाद !
सभी शे'र पसंद आए ... यह कुछ ज्यादा
मज़हब, दौलत, जात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए !!
बहुत बड़ा शे'र है सचमुच !
...और
उसकी भोली सूरत ने ये कैसा जादू कर डाला,
उससे मुख़ातिब होते ही सब मेरे इल्मो हुनर गए !!
बड़ा ही मासूम और प्यारा शे'र ...
क्या बात है !
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
wahwa.....badhi + sadhuwad
बेहतरीन । चूहे बढते ही चले जारहे है और मोहब्बत की चादर भी थोडी ही बच रही है
Mazhab daulat zaat siysat sarhad ghairat khuddari..aik mohbbat ki chadar ko kitne chuhe kuter gaye.....gharana ki jagha siysat...aaj siyasat sab se badi vilain ban gayee hai mohabbat k liye..Hardeep saharanpur💐
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