कल जब खबर आई कि मशहूर चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन नहीं रहे तो एक टीस सी उठी. वैसे मैं पेंटिंग्स के बारे में कोई बड़ा पारखी नहीं हूँ........ लेकिन जबसे होश संभाला तब से पेंटिंग्स के बारे में जब भी लिखा पढ़ा तो मक़बूल फ़िदा हुसैन का ज़िक्र ज़रूर आया. याद आया कि जब वर्ष 2000 में जब उनकी फिल्म 'गजगामिनी' रिलीज हुयी तो उत्सुकतावश मैंने भी यह फिल्म देखी, क्रिटिक्स ने इस फिल्म को कोई खास तवज्जो नहीं दी थी. मुझे भी कोई ख़ास नहीं लगी थी मगर उस वक्त भी इस फिल्म के बारे में मेरी यह पुख्ता राय थी कि इस फिल्म को यदि एक कलासृजक की भावनाओं से जुडकर देखने का एहसास रखा जाये तो फिल्म अच्छी लगेगी............. !!!! बहरहाल जो गुज़र गया सो गुज़र गया . एक कलाकार को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि........!
भारत के पिकासो कहे जाने वाले मक़बूल फ़िदा हुसैन का जन्म महाराष्ट्र के पंढ़रपुर में 17 सितंबर 1915 को हुआ था. एमएफ़ हुसैन को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर पहचान 1940 के दशक के आख़िर में मिली. हुसैन 1940 के दशक के अंत से ही प्रसिद्धि पा चुके थे. वह 1947 में फ्रासिस न्यूटन सूजा द्वारा स्थापित प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप में शामिल हो गए. यह ग्रुप भारतीय कलाकारों के लिए नई शैलियाँ तलाशने और बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट द्वारा स्थापित परंपराओं को तोड़ने के इच्छुक युवा कलाकारों के लिए बनाया गया था. युवा पेंटर के रूप में एमएफ़ हुसैन बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे. वर्ष 1952 में उनकी पेंटिग्स की प्रदर्शनी ज़्यूरिख में लगी. उसके बाद तो यूरोप और अमरीका में उनकी पेंटिग्स की ज़ोर.शोर से चर्चा शुरू हो गई. वर्ष 1955 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया. वर्ष 1967 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ़ अ पेंटर' बनाई. यह फ़िल्म बर्लिन फ़िल्म समारोह में दिखाई गई और फ़िल्म ने 'गोल्डन बीयर' पुरस्कार जीता.
वर्ष 1971 में साओ पावलो समारोह में उन्हें पाबलो पिकासो के साथ विशेष निमंत्रण देकर बुलाया गया .1973 में उन्हें पद्मभूषण और वर्ष 1986 में उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया. भारत सरकार ने वर्ष 1991 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया . 92 वर्ष की उम्र में उन्हें केरल सरकार ने राजा रवि वर्मा पुरस्कार दिया. क्रिस्टीज़ ऑक्शन में उनकी एक पेंटिंग 20 लाख अमरीकी डॉलर में बिकी. इसके साथ ही वे भारत के सबसे महंगे पेंटर बन गए . उनकी एक कलाकृति क्रिस्टीज की नीलामी में 20 लाख डॉलर में और 'बैटल ऑफ गंगा एंड यमुना- महाभारत 12' वर्ष 2008 में एक नीलामी में 16 लाख डॉलर में बिकी यह साउथ एशियन मॉडर्न एंड कंटेम्परेरी आर्ट की बिक्री में एक नया रिकॉर्ड था.हालाँकि एमएफ़ हुसैन अपनी चित्रकारी के लिए जाने जाते रहे किन्तु चित्रकार होने के साथ.साथ वे फ़िल्मकार भी रहे. मीनाक्षी, गजगामिनी जैसी फ़िल्में बनाईं. उनका माधुरी प्रेम भी ख़ासा चर्चा में रहा . शोहरत के साथ साथ विवादों ने भी उनका साथ कभी नहीं छोड़ा. जहाँ फ़ोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें भारत का पिकासो घोषित किया वहीं वर्ष 1996 में हिंदू देवी.देवताओं की उनकी पेंटिग्स को लेकर काफ़ी विवाद हुआ, फलस्वरूप कई कट्टरपंथी संगठनों ने तोड़.फोड़ कर अपनी नाराजगी ज़ाहिर की .जब किसी ने उनसे पूछा कि आपकी चित्रकारी को लेकर हमेशा विवाद होता रहा है, ऐसा क्यों................? उनका जवाब था 'ये मॉर्डन आर्ट है. इसे सबको समझने में देर लगती है. फिर लोकतंत्र है. सबको हक़ है. ये तो कहीं भी होता है. हर ज़माने के अंदर हुआ है. जब भी नई चीज़ होती है. उसे समझने वाले कम होते हैं. ' हुसैन साहब का ये अंदाज़े-बयां जताता है कि आलोचनाओं से वे कभी नहीं डरे....... अपनी बात भी धड़ल्ले से कही. बहुत कम लोगों को पता है कि जब मुग़ल.ए.आज़म बन रही थी तो निर्देशक के. आसिफ़ साहब ने युद्ध के दृश्य फ़िल्माने से पहले युद्ध और उसके कोस्ट्यूम वगैरह के स्केच हुसैन साहब से ही बनाये थे. जब आसिफ साहब ने 'लव एंड गॉड' बनाई तो आसिफ़ साहब ने 'स्वर्ग' के स्केच भी उन्ही से बनवाए. मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के बड़े प्रशंसक एमएफ़ हुसैन ने उन्हें लेकर 'गज गामिनी' नाम की फ़िल्म भी बनाई . इसके अलावा उन्होंने तब्बू के साथ एक फ़िल्म 'मीनाक्षी- अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज़ बनाई .एक और विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब पिछले साल जनवरी में उन्हें क़तर ने नागरिकता देने की पेशकश की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था.
हैरानी की बात यह है कि हुसैन साहब ने कला का कहीं से भी विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया था. अपने कला जीवन की शुरूआत उन्होंने मुंबई में फिल्मों के होर्डिंग पेंट करके की जिसमे उन्हें प्रति वर्ग फुट के चार या छह आना मिलते थे. फरवरी 2006 में हुसैन पर हिंदू देवी.देवताओं की नग्न तस्वीरों को लेकर लोगों की भावनाएं भड़काने का आरोप भी लगा और हुसैन के खिलाफ इस संबंध में कई मामले चले. इस फक्कड़ी चित्रकार ने इसकी परवाह न करते हुए अपने काम से काम रखा. उन्हें जान से मारने की धमकियाँ भी मिलीं. उन्होंने अपनी पसंदीदा अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को लेकर 'गजगामिनी' बनाई तथा कुछ और फिल्मों पर भी काम किया. माधुरी को लेकर 'गजगामिनी' फिल्म के बाद हुसैन ने तब्बू को लेकर 'मीनाक्षी- ए टेल ऑफ थ्री सिटीज ' का निर्माण किया. हुसैन ने अभिनेत्री अमृता राव की भी कई तस्वीरें बनाईं. विवाद हमेशा हुसैन के साथ रहे. कुछ समय पहले जब केरल सरकार की ओर से प्रतिष्ठित राजा रवि वर्मा पुरस्कार उन्हें दिया गया तो मामला कोर्ट कचहरी तक जा पहुंचा. हुसैन को अम्मान स्थित रॉयल इस्लामिक स्ट्रैटेजिक स्टडीज सेंटर ने दुनिया के सबसे प्रभावशाली 500 मुस्लिमों की सूची में भी शामिल किया. उन्हें बर्लिन फिल्म समारोह में उनकी फिल्म ' थ्रू दि आईज ऑफ ए पेंटर' के लिए गोल्डन बीयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. वह 1971 में साओ पाओलो आर्ट बाईनियल में पिकासो के साथ विशेष आमंत्रित अतिथि थे.
न केवल भारतीय पेंटिंग विधा बल्कि पूरा भारतीय समाज इस कलाकार का इसलिए भी ऋणी रहेगी क्योंकि इस तल्ख़ तेवर वाले चित्रकार ने भारतीय कला को वैश्विक बाज़ार में स्थापित कर नया रेकोर्ड रचा. व्यक्ति और चित्रकार की स्वतंत्रता का उद्घोष करते हुए हवा के विरुद्ध अपना परचम फहराने की कुव्वत रखने वाले इस महान चित्रकार की कला के प्रति निष्ठा और समर्पण को को सलाम............ !!!!!
(**तस्वीर गूगल, सन्दर्भ-बीबीसी)
24 टिप्पणियां:
Aapne bahut achcha article likha hai.. Gajgamini maine bhi dekhi thi mujhe bhi nahi pasand aayi thi.. shayad wo sense hi nahi samjhne layak.. sach kahte hain ki art samjhne ke liye dil chahiye.. mere pass aapka mobile no. nahi hai isliye India aakar bhi aapse baat nahi ho saki.. apna mobile no. dijiyega aur mail Id bhi
shrddha8@gmail.com
mmmmm
हूसेन के जीवन के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा ... एक कलाकार को भावभीनी श्रधांजलि ....
मेरे ब्लाग पर आपके आगमन का धन्यवाद ।
आपको नाचीज का कहा कुछ अच्छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार
आपका ब्लाग भी अच्छा लगा । बधाई
आपकी बाते वाकई बहुत ही काबिले गौर हैं. मकबूल फ़िदा हुसैन के लिए, जिसके वो काबिल भी हैं.
पर जैसा की आपके ब्लॉग का नाम है 'नजरिया'.
तो एक मुद्दे पे दो लोगो का नजरिया हमेशा जुदा होता है.
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क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?
बाबा का अनशन टुटा !
huasen ji ke bare me mujhe itna nahi malum tha aapke lekh se mujhe bahut jankari mili .aapne likha bhi bahut achchhe andaz me hai
rachana
भावभीनी श्रधांजलि
हुसैन जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! उनको मेरी भावभीनी श्रधांजलि !
Bade afsos ki baat hai ki kuchh kattarpanthiyon ki wazah se bhaarat ke Picasso kahe jaane waale mahaan artist ko apne hi mulk me zannat nasheen hone ka mauka nahi mila
Hussain sahab ko bhawbheeni shraddhanjali
Many thanks for your encouraging words on my blog.
Regards
Fani Raj
नए टेम्पलेट में ब्लॉग बहुत सुंदर है... हुसैन साहब की बायोग्राफिकल पोस्ट बहुत अच्छी लगी... और कई नई इन्फौर्मेशन भी उनके बारे में... मिली....
बहुत अच्छी लगी पोस्ट...
नए टेम्पलेट में ब्लॉग बहुत सुंदर है... हुसैन साहब की बायोग्राफिकल पोस्ट बहुत अच्छी लगी... और कई नई इन्फौर्मेशन भी उनके बारे में... मिली.... बहुत अच्छी लगी पोस्ट...
हुसैन जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! उनको मेरी भावभीनी श्रधांजलि|
हुसैन को श्रद्धांजलि ..
मकबूल फ़िदा हुसैन अपनी कला जरिए फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले इंसान थे. वे अपनी पेंटिंग्स में सदा जीवित रहेंगे. उन पर बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुत की है आपने. आभार.
हुसैन जी को सादर श्रद्धांजलि - अपनी लेखनी से हमारी जानकारी बढ़ने के लिए आभार तथा धन्यवाद्
मरहूम मकबूल फ़िदा हुसैन जी पर अत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित लेख के लिये आपको हार्दिक बधाई ।
साथ ही उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !
हुसैन का जीवन का एक स्वप्न जैसा ही है. एक महान कलाकार को सच्ची श्रद्धांजलि.
A REAL TRIBUTE TO NOT ONLY INDIA'S MOST CHARISMATIC ARTIST BUT ALSO A GREAT HUMAN BEING......EVERYTHING ABOUT HIM LARGER THAN LIFE !!!
THE BEAUTY OF M.F. HUSSAIN'S PAINTINGS SAVED IN OUR HEART AND SOUL FOREVER....
TANKS FOR YOUR UNMATCHED POST....
SACHIN SINGH
A REAL TRIBUTE FOR M.F.HUSSAIN- A MARATHON MAN WITH NO EXPIRY DATE..... HE BOUND ALL OF US,AND HIS DEATH TOO HAS BROUGHT US ALL TOGETHER TO SPEAK AGAINST WRONG HE FACED IN THIS GREAT NATION.....
THANKS FOR YOUR UNIQUE POST...
सबसे पहले देर से आने के लिए मांफी चाहूँगा
बहुत ही उम्दा आर्टिकल लिखा भैया
हुसैन साहब का पूरा जीवन इस लेख में समाहित है
उनको भावभीनी श्रधांजलि ....
भावभीनी श्रधांजलि !
आप सच कहते है वे भारत के पिकासो थे !
हुसेन जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी
बहुत बढ़िया ! आभार मेरे ब्लॉग पर आने का !
Ek mahan chitera ko aapne badi khubsurati se chitrit kiya hai.achchha laga.aabhar
बेशक हुसैन साहब एक बहुत बड़े चित्रकार थे उनकी कला का कोई सानी नहीं है. मैं भी उनकी कला कि प्रशंसा करता हूँ. लेकिन मेरी नज़र में वो हमेशा एक कायर ही रहेंगे एक सच्चा फनकार तथा चिन्तक कभी भी अपनी अभिव्यक्ति तथा अपने विचारो के उद्बोधन से नहीं डरता. चाहे वो सुकरात हो, मीरा बाई हो, या गैलिलिओ हो अपनी बात कहने से कभी नहीं डरे. हुसैन के पास बहुत बड़े स्पष्टीकरण थे जिनके आधार पर वो अपना पक्ष मजबूत बना सकते थे. अजंता एलोरा eliphanta खजुराहो ना जाने कितने उदाहरण पेश कर सकते थे और उन चाँद लोगो का मुंह बंद कर सकते थे जो कि unke विरुद्ध थ. लेकिन वो कायर निकले अपना वतन अपनी ज़मीन अपने लोग छोड़ कर भाग गए. एक भगोड़ा कभी भी मेरी नज़र में कभी भी महान नहीं बन सकता.
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