तेरे मिलने के लम्हे फूल जैसे,
मगर फूलों की उम्रें मुख़तसर हैं.
एक और नमूना देखेंताम्मुल कत्ल में तुझको मुझे मरने की ज़ल्दी है,
खता दोनों की है उसमे कहीं तेरी कहीं मेरी।
एक मशहूर ग़ज़ल तो उनकी zउबन पर सुनी जा सकती है
रंजिश ही सही................
अहमद फ़राज़ के बारे में आगे गुफ्तगू जारी रहेगी अगर आपको भी फ़राज़ साहेब के बारे में आप हमारे साथ शेयर करे.
1 टिप्पणी:
भैया !
तौ ई रही आपकै पहिली पोस्ट ..
बहुत नीक ..
पहिली पोस्ट पढ़ब हमैं बहुत पसंद अहै ..
लेकिन आपकै औरउ पोस्ट पढ़ब ..
पहिली टिप्पनी अपनी भासा मा करै मा बड़ा मजा आवा ..
फराज साहब का मेहदी हसन के कंठ से सुने हन .. अलग से का तारीफ करी ..
...................... आभार ,,,
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