अगस्त 17, 2008

मनीष एक अदबी शायर

मनीष और मेरा साथ गत १० बरस का है। मनीष से मेरा साथ तब से है जब हमारी नयी नयी नौकरी लगी थी । हम ट्रेनिंग में लखनऊ में थे वित्त संस्थान में ट्रेनिंग ले रहे थे तभी शेर ओ शायरी के शौक ने हम को एक दूसरे के करीब ला दिया । हम लोग नैनीताल में भी ट्रेनिंग साथ साथ कर रहे थे ....तब ये शौक परवान चढा। हम दोनों घंटो एक दूसरे को शेर ओ शायरी को शेयर करते। बहरहाल मनीष के साथ रिश्ते दिन ब दिन मजबूत हुए मुझे ये कहने में कोई हिचक नही की मनीष आज मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक है। उम्र में ५ बरस बड़ा होने के कारण मनीष मेरे बड़े भाई के रूप में भी है। उनकी सबसे ख़ास बात ये है की अच्छे अधिकारी होने के साथ साथ वे एक अच्छे शायर भी हैं। बड़ी खामोशी के साथ वे अपना साहित्य srijan में लगे हुए हैं और मज़े की बात ये है की उनकी शायरी में अदब तो है ही जीवन के मूल्यों की गहरी समझ भी है। मेरे अन्य शायर दोस्तों की तरह वे भी दिखावे और मंच की शायरी से दूर रहते हैं । उनको पहली बार मंच पर लाने का काम मैंने तब किया जब मैं मीरगंज में ऊप जिलाधिकारी था और एक मुशायरा वहां आयोजित कराया था। १९७० को उन्नाओ में जन्मे मनीष शुक्ला की कुछ ग़ज़ल यहाँ पेश है ............निश्चित रूप से अच्छी लगेंगी।

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कागजों पर मुफलिसी के मोर्चे सर हो गए, और कहने के लिए हालात बेहतर हो गए।

प्यास के शिद्दत के मारों की अजियत देखिये ,खुश्क आखों में नदी के ख्वाब पत्थर हो गए।

ज़र्रा ज़र्रा खौफ में है गोशा गोशा जल रहे, अब के मौसम के न जाने कैसे तेवर हो गए।

सबके सब सुलझा रहे हैं आसमा की गुत्थियां, मस आले सारे ज़मी के हाशिये पर हो गए।

फूल अब करने लगे हैं खुदकुशी का फैसला, बाग़ के हालात देखो कितने अब्तर हो गए।

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गए मौसम का डर बांधे हुए है।

परिंदा अब भी पर बांधे हुए है।

मुहब्बत की कशिश भी क्या कशिश है,

समंदर को कमर बांधे हुए है।

हकीकत का पता कैसे चलेगा,

नज़ारा ही नज़र बांधे हुए है।

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आसमा धरती समंदर किसलिए, ये तमाशा बन्दा परवर किसलिए।

कौन सी मंजिल पे जाना है हमें,ये सर ओ सामान ये लश्कर किसलिए।

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याद करने का बहाना चाहिए,आरजू को इक ठिकाना चाहिए।

कुछ नही झूठा दिलासा ही सही ,हौसले को आब ओ दाना चाहिए।

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मुय्याँ kaid की मुद्दत नही है, रिहाई की कोई सूरत नही है।

ठहर जाता हूँ हर शये से उलझ कर , अभी बाज़ार की आदत नही है।

8 टिप्‍पणियां:

shelley ने कहा…

तेरे बिन क्या पास 'अभिन्न' के
हर आम में तुम हर खास में तुम
aapki gagal to gagal hai bhai. achchhi lagi

गौतम राजऋषि ने कहा…

पहले तो हौसला बढाने का शुक्रिया....और आपकी तमाम रचनायें पढी.हाईकु और गज़लें भी.गज़ल तो मैं पहले ही पढ़ चुका था लफ़्ज़ में.मैं लफ़्ज़ का संरक्षक हूँ.तुफ़ैल जि से बात होते रहती है.....

sumati ने कहा…

pawan,

tum se ek mang ki thi abhi tak puri nahin hui...tumeh yad hai kya..

shayad ek sher fit na baithta ho phir bhi jo manish ka likh tumne padhvaya aur jo apna likha tum nahin likhna chahte ho ....mujhe malum hai tumhari kashmakash yahi ...shayad.yahi hogi ki vo etne angadh katrane aur main....aur ye nahin to to mehdud kahan ho...han sher yun hai..

rakh ke apni ankh main,
kuchh arziyan tum dekhna..

bas milengi kagzi ,
humdardiyan tum dekhna.

arz abhi bhi ...kayam hai..

sumati

seema gupta ने कहा…

" very interesting creations, read few of them, nice thoughts and imaginory"
Regards

राज भाटिय़ा ने कहा…

धन्यवाद इज्जत देने के लिये,मेने आज "मनीष" जी की शायरी पढी ओर आप की दोस्ती के बारे पढा, बहुत अच्छा लगा, मनीष जी के शेर बहुत ही अच्छे लगे,आप ने भी अच्छा लिखा हे,
धन्यवाद
कागजों पर मुफलिसी के मोर्चे सर हो गए, और कहने के लिए हालात बेहतर हो गए।
मनीष जी का बहुत बहुत धन्यवाद

डॉ .अनुराग ने कहा…

अपने दोस्त मनीष को कहियेगा ...वे वाकई उम्दा लिखते है.....ओर खूब लिखते है....उनके ये शेर खास पसंद आये

आसमा धरती समंदर किसलिए, ये तमाशा बन्दा परवर किसलिए।

कौन सी मंजिल पे जाना है हमें,ये सर ओ सामान ये लश्कर किसलिए।

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याद करने का बहाना चाहिए,आरजू को इक ठिकाना चाहिए।

कुछ नही झूठा दिलासा ही सही ,हौसले को आब ओ दाना चाहिए।

अभिन्न ने कहा…

हमारे ब्लॉग पर आने और कमेन्ट करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, ज़नाब ,आपके ब्लॉग पर आये तो आप से तो मुलाकात हो ही गई ज़नाब मनीष जी से भी और उनकी शायरी से भी मुलाकात हो गई .बहुत उम्दा लिखते है मनीष जी साथ ही साथ आपकी दोस्ती भी मिसाल देने लायक है .हम तो बस जो मन में आया लिख देते है ,व्याकरण और तकनिकी बारीकियों का ज्ञान है भी नहीं और उसको सिखने का साहस भी नहीं कर पाते,बस भावनाएं है जैसे कोई झरना .......
आप ने हमे सराहा हौसला बढाया ..बहुत बहुत धन्यवाद

सत्येन्द्र सागर ने कहा…

मनीष एक अच्छे शायर ही नही अपितु एक अच्छे दोस्त भी है. में जब भी लखनऊ जाता हूँ तो उनसे मुलाकात जरूर करता हूँ. मनीष जैसा शांत तथा सौम्य मित्र होना एक फख्र की बात है. मनीष मेरे लिए भी एक elderly की तरह है.