सितंबर 13, 2009

बोरलाग का जाना

ख़बर मिली कि नॉर्मन बोरलाग नही रहे.....एक टीस सी उठी. बोरलाग वही शख्स थे जिन्होंने 1970 के दशक में भारत और तमाम विकासशील देशों को भोजन उपलब्ध कराने में महती योगदान दिया था। हरित क्रांति के मसीहा के रूप में उन्होंने पिछड़े देशों में खाद्यान्न उपज के प्रति जो आन्दोलन चलाया उसका सम्मान उन्हें नोबेल पुरुस्कार के रूप में मिला। ऐसे में डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन का यह कहना बिल्कुल सटीक ही है कि "नॉर्मन बोरलॉग भूख के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले महान योद्धा थे. उनका मिशन सिर्फ़ खेतीबाड़ी से पैदावार बढ़ाना ही नहीं था, बल्कि वो ये भी सुनिश्चित करना चाहते थे कि ग़रीब तक अन्न ज़रूर पहुँचे ताकि दुनिया भर में कही भी कोई भी इंसान भूखा ना रहे।"
यदि वैज्ञानिक लहजे में कहा जाए तो उन्होंने छोटे कद वाले गेंहूं और अन्य फसलों के पौधों को उगाने पर ज़ोर दिया ताकि अपनी ऊर्जा को बचा कर पेड़ ज्यादा उत्पाद दे सकें......ऐसा करने से फसली उत्पादन इस हद तक बढ़ा कि फौरी ज़रूरतें पूरी हो सकीं । यह अलग बात है कि कालांतर में इसके बहुत नकारात्मक प्रभाव भी देखे गए क्योंकि उनके बीजों की और खेती-बाड़ी के तरीक़ों की निर्भरता उर्वरक खादों पर बहुत थी जिससे ज़मीन की उत्पादक क्षमता धीरे-धीरेकम होती जाती है. लेकिन फिलहाल हम उन पर न जाकर बस नॉर्मन बोरलॉग को इसलिए याद कर रहे हैं कि उन्होंने ही हमारे जैसे देशों को 1970 में भूख से निजात दिलाई।

2 टिप्‍पणियां:

Abhishek Ojha ने कहा…

खबर हमने भी पढ़ी. दुखद !

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

upyogee jaankaaree dee hai aapne ..