दिसंबर 05, 2009

एक मुलाक़ात पंकज राग से............


कुशीनगर जाने का कार्यक्रम भी अचानक बन गया....सुबह दीपक जी, स्वतंत्र जी और उनकी धर्मपत्नी के साथ चर्चा हुई कि क्यों न एक दिन कुशीनगर चला जाए...........सहमती बनी कि कभी क्यों आज ही क्यों नहीं...... बात भी ठीक थी रविवार तो था ही...........निकल दिए थोड़ी देर बाद कुशीनगर के लिए!
कुशीनगर महत्मा बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली के रूप में जाना जाता है. कुशीनगर गोरखपुर से महज 80 किमी दूर है...लगभग दो घंटे की यात्रा के बाद हम कुशीनगर पहुँच चुके थे. चूँकि बच्चे साथ में थे......चाय ठन्डे की उनकी जिद थी सो तय हुआ की ' रेफ्रेस्मेन्ट ' क्यों न सरकारी विश्राम गृह 'पथिक निवास' में किया जाए. हमने गाड़ियाँ मोड़ ली पथिक निवास की तरफ...........बच्चों के साथ हम भी जल-पान ले रहे थे.....बताया गया कि कुशीनगर में उपचुनाव चल रहा है और पर्यवेक्षक महोदय भी इसी गेस्ट हाउस में ठहरे हुए हैं...कौतूहलवस मैं पूछ बैठा कि पर्यवेक्षक महोदय कौन हैं कहाँ से आये हैं.............पता चला कि पंकज राग साहब एम.पी. काडर आई. ए.एस. हैं! मेरे लिए तो यह अवाक् रह जाने वाली स्थिति थी वही पंकज राग जिनकी कृति 'धुनों की यात्रा' बमुश्किल एक महीने पहले मैंने लखनऊ पुस्तक मेले से खरीदी थी औरउन्हें इस अद्भुत कृति के लिखने पर कई बार धन्यवाद देने की कोशिश कर चुका था, मगर कोई संपर्क न. न मिल पाने के कारन यह कार्य नहीं कर सका था. मैंने इस कृति का ज़िक्र कुछ दिनों पूर्व अपने ब्लॉग पर किया ही था.
खैर मैंने बिलकुल भी देर नहीं लगी श्री राग से मिलने में ......मिलने का सन्देश भेजा, उन्होंने तुरंत बुला लिया...... श्री राग से पहली मुलाक़ात इतनी आत्मीय थी कि मैं उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सका. हौले हौले से मुंह में 'रजनीगंधा' चलाते हुए चश्मा पहने इकहरे बदन वाले श्री राग इतने युवा लगे कि वे कहीं से भी मुझे 1990 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी नहीं लगे. कुछ लम्हों की औपचारिकताओं के बाद वे तुरंत अनौपचारिक हो गए ..............अपने साहित्यिक सारोकारों को बताने लगे कि सिविल सेवक होने के वाबजूद वे कैसे सतत साहित्य सृजन करते रहे. व्यस्तता के बाद भी वे म . प्र. के पर्यटन व सांस्कृतिक विरासत के ऊपर काफी किताबें लिख चुके हैं. उनकी एक कृति "ये भूमंडल की रातें" कविता रूप में है जिसे कुछ दिनों पूर्व ही म.प्र. सरकार के 'वाचस्पति अवार्ड' से नवाजा गया है. इतिहास के अध्येता होने के नाते वे सम्प्रति 1857 की क्रांति पर एक किताब लिख रहे हैं.
श्री राग मूलत: बिहार के रहने वाले हैं. उन्होंने दिल्ली के सेन्ट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर किया तदोपरांत दिल्ली युनिवर्सिटी से आधुनिक भारतीय इतिहास में एम् फिल किया. वे इससे पूर्व म.प्र. की विशिष्ट प्राचीन प्रतिमाओं पर पुस्तक “Masterpieces of MP” तथा “50 years of Bhopal as capital” का लेखन भी कर चुके हैं. इसके अलावा वे प्राचीन ऐतिहासिक छाया चित्रों के संकलन की पुस्तक “Vintage Madhya Pradesh” का संपादन भी कर चुके हैं.आज कल वे पुणे स्थित राष्ट्रिय टेलीविजन संसथान के निदेशक का दायित्व संभाल रहे हैं. श्री राग से यह मुलाकात हमेशा याद रहेगी.
लेखकीय क्षमता के धनी प्रशासनिक सेवारत श्री राग की विद्वता, सृजनात्मकता तथा प्रशासकीय सूझ बूझ मेरे लिए सदीव प्रेरणा स्रोत का कार्य करेगी.

12 टिप्‍पणियां:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

भैया !
पहली मुलाकात में इतनी आत्मीयता उड़ेल देने वाले आदमी का जीवन
और रचना-संसार अवलोकनीय होगा ही . मौका पाकर मैं भी राग साहब के ' राग '
का आस्वाद करूंगा . एक पोस्ट में ही आपने ऐसे हीरे से परिचित कराया
जो कभी नहीं कहता कि 'लाख टका मेरा मोल '. एक सिविल अधिकारी होने
के बावजूद इतनी सक्रियता सराहनीय है ...
आपकी शैली काबिलेतारीफ है ...
..................... आभार ... ...

Unknown ने कहा…

Aapne ak sachche bhartiya ka parichay hum sabhi ko karaya. Aapko dhanyavad. Dhunon ki kriti khoj kar padhna chahta hoon. Sri Rag Sahab jaise Civil Officer ke karan hi apna desh mahan hai. hum sabhi ko inke karyo se inspiration milega.

सत्येन्द्र सागर ने कहा…

सिविल सेवक होना ऊपर से साहित्यकार भी होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. ऐसे कई अफसर है जो की उच्च कोटि के साहित्यकार भी है उनमे एक नाम पवन कुमार का भी है. मुझे इंतज़ार उस दिन का जब पवन कुमार को साहित्य अकादेमी पुरस्कारमिलेगा.

गौतम राजऋषि ने कहा…

एक दिलचस्प मुलाकात का रोचक वर्णन...!

आपने अपनी ग़ज़लें सुनायीं कि नहीं उन्हें?

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

पंकज राग जी पर आलेख देकर आपने उत्कृष्ट कार्य किया हम सब आभारी है

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत अच्छा लगा यह आलेख.....

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब आप की मुलाक़ात बड़ी बड़ी हस्तियों से यूँ ही होती रहे
शुभकामनायें

पंकज ने कहा…

राग से राग. एक अच्छे लेखक और इंसान से परिचय कराने के लिये धन्यवाद.

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लगा! इतने अच्छे और मशहूर लेखक के साथ परिचय करवाने के लिए धन्यवाद!

निर्झर'नीर ने कहा…

सिविल सेवक होना ऊपर से साहित्यकार भी होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.
sagar ji ne satya kaha

khushnasiibi hai aapki jo aapki aisi shakhsiyat se mulakaat huii

kushinagar hamara bhi kai baar jana hua hai par aap jaisa ittifaq kabhi nahi hua.

Asha Joglekar ने कहा…

कुशी नगर देखा तो इस पोस्ट पर आ गई । कभी मैं भी गई थी । पर यहां तो राग साहब से भी मुलाकात हो गई । कास शभी सिविल सरवेंट ऐसे ही हों ।

shankarsonane ने कहा…

यह सत्य है कि एक सिविल सेवक होना और उस पर भी एक साहित्यकार होना बहुत बड़ी उपलब्धि रखता है। बहुत अच्छी बात है । बहुत से सिविल सेवक रहकर अच्छे साहित्यकार भी हुए है। पंकज जी उनमें से एक है। उनसे अक्सर मुलाकात होते रहती है किन्तु उनका मेरा अभी तक कोई परिचय नहीं हो सका है । हालांकि मैं उनके ही विभाग में अन्तिम पंक्ति का सिविल सेवक हूं ।
कृष्णशंकर सोनाने
अनुभाग अधिकारी,संस्कृति विभाग
मंत्रालय भोपाल मप्र