“ मेरा एहसास मेरे रू ब रू…….. “ लिखने और पोस्ट करने के बाद बमुश्किल सांस ले ही पायी थी कि 12-15 टिप्पणियां मिल गयीं............! धन्यवाद सभी टिप्पणीकारों को ! राव साहब अपनी टिप्पणी में बहुत ज्यादा नाराज़ से लगे.....! नाराज़ होने की ज़ुरूरत नहीं, भाई.............हर टिप्पणी को पढता हूँ और गौर भी करता हूँ..........साहित्य सृजन में आपके आलोचक ही आपके सबसे बड़े सुधी होते हैं..! राव साहब आपकी बात ठीक है. राजरिशी और अमरेन्द्र की टिप्पणियां बहुत ही सटीक होती हैं......... इस बार भी उनके कमेन्ट बिलकुल ठीक हैं.......! हिमांशु जी ने भी बात सही कही मगर इतनी धीरे और सहजता से कि क्या कहूं....श्याम शखा जी ने तो इसी बहर पर एक शेर लिख दिया बहुत खूब श्याम जी. सफाई देने का मौका मुझे भी मिलना चाहिए -
1. जहाँ तक मतले की बात है मैं राजरिशी साब और अमरेन्द्र जी से पूरी तरह सहमत हूँ लेकिन इसमें गलती मेरी नहीं टाइपिंग की है .........मैंने दुरुस्त कर दिया है........! शायद पोस्ट को टाइप करने के बाद उसे फिर से न देखने की मेरी गन्दी आदत भी इसके लिए जिम्मेदार है....!
2. अमरेन्द्र जी की बात का पूरा आदर करते हुए '' नए प्रयोग और भाषा धर्मिता '' की जगह '' नई भाषा और प्रयोग-धर्मिता '' होना चाहिए से मेरी भी सहमति है.........!
3. अमरेन्द्र जी ने याद दिलाया कि लास्ट लाइन में बात त्रुटि है- ''गुफ्तगू है '' की जगह '' गुफ्तगू हो '' हो तो बेहतर होगा . बात सौ टके की है लेकिन यह भी महज टाइपिंग मिस्टेक है दोस्तों !
इन सारी त्रुटियों को सही करने के बाद संपादित पोस्ट फिर से लिख रहा हूँ......राव, राजरिशी और अमरेन्द्र जी जैसे सुधी टिप्पणीकार-आलोचकों के होते हुए कोई भी त्रुटि करना नामुमकिन है.......आप सभी को गलतियाँ इंगित करने का शुक्रिया .
1. जहाँ तक मतले की बात है मैं राजरिशी साब और अमरेन्द्र जी से पूरी तरह सहमत हूँ लेकिन इसमें गलती मेरी नहीं टाइपिंग की है .........मैंने दुरुस्त कर दिया है........! शायद पोस्ट को टाइप करने के बाद उसे फिर से न देखने की मेरी गन्दी आदत भी इसके लिए जिम्मेदार है....!
2. अमरेन्द्र जी की बात का पूरा आदर करते हुए '' नए प्रयोग और भाषा धर्मिता '' की जगह '' नई भाषा और प्रयोग-धर्मिता '' होना चाहिए से मेरी भी सहमति है.........!
3. अमरेन्द्र जी ने याद दिलाया कि लास्ट लाइन में बात त्रुटि है- ''गुफ्तगू है '' की जगह '' गुफ्तगू हो '' हो तो बेहतर होगा . बात सौ टके की है लेकिन यह भी महज टाइपिंग मिस्टेक है दोस्तों !
इन सारी त्रुटियों को सही करने के बाद संपादित पोस्ट फिर से लिख रहा हूँ......राव, राजरिशी और अमरेन्द्र जी जैसे सुधी टिप्पणीकार-आलोचकों के होते हुए कोई भी त्रुटि करना नामुमकिन है.......आप सभी को गलतियाँ इंगित करने का शुक्रिया .
कोई भी तज़्किरा या गुफ्तगू हो !
तेरा चर्चा ही अब तो कू ब कू हो !!
मयस्सर बस वही होता नहीं है,
दिलों को जिसकी अक्सर जुस्तजू हो !!
ये आँखें मुन्तजिर रहती हैं जिसकी,
उसे भी काश मेरी आरज़ू हो !!
मुखातिब इस तरह तुम हो कि जैसे,
मेरा एहसास मेरे रू ब रू हो !!
तुम्हें हासिल ज़माने भर के गुलशन,
मिरे हिस्से में भी कुछ रंग ओ बू हो !!
नहीं कुछ कहने सुनने की ज़ुरूरत,
निगाह ए यार से जब गुफ्तगू हो !!
23 टिप्पणियां:
भैया !
आपने दुरुस्त कर दिया , अब पढ़ने पर
रौ 'मेंटेन' रहती है ..
........ आभार ...
इस गजल से बड़ी गजल आपके स्वभाव में
वास कर रही है ..
आलोचना करने वाले से ज्यादा बड़ा होता है
आलोचना पर अमल करने वाला ..
आपसे सीख भी रहा हूँ ..
'' एते नर थोरे जग मांहीं '' ( तुलसीदास जी के हवाले से )
पुनः आभार ,,,
आपकी यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.....
हालांकि... ग़ज़ल के बारे में बिलकुल भी नहीं जानता था..... लेकिन अभी कोई २० दिन से ग़ज़ल के बारे में पढ़ता रहा.... आज सोचा है कि मैं भी एक ग़ज़ल लिख कर पोस्ट करूँ...... आज पोस्ट करूँगा तो देख कर बताइयेगा.....
यही तो असली परिचय है ऊँचाई का । सब कुछ सँवरा था साहब, बस कुछ और सँवरने का तकाजा था कि सब कुछ न कुछ कह गये । गज़ल का व्याकरण नहीं समझता का़यदे से, हाँ गजल जरूर समझता हूँ ।
सम्पादित गज़ल की प्रस्तुति के लिये आभार ।
नहीं कुछ कहने सुनने की ज़ुरूरत,
निगाह ए यार से जब गुफ्तगू हो !!
.... umdaa, behatreen !!!!
बहुत खूब बेहतरीन ग़ज़ल हर शेर उम्दा
बहुत -२ बधाई .......................
सादर वन्दे
जो गलतियों से सीखे वह बुद्धिमान,
नहीं तो क्या बिगाड़ लेगा इन्सान
रत्नेश त्रिपाठी
मुखातिब इस तरह तुम हो कि जैसे,
मेरा एहसास मेरे रू ब रू हो ..
शायद इसलिए ही कुछ लोग गुणी जन होते हैं और उनका होना ज़रूरी होता है .. .......... हमारे जैसे आनंद लेते हैं अच्छी ग़ज़ल का ...
ये आँखें मुन्तजिर रहती हैं जिसकी,
उसे भी काश मेरी आरज़ू हो !!
वाह लाजवाब हर एक शेर दिल को छूने वाला। मैं तो अभी गज़ल की ए बी सी सीख रही हूँ आप्से बहुत कुछ सीखना है। मेरे ब्लाग पर मेरा उत्साह बढाया धन्यवाद। आपका स्वागत है लखनऊ से तो वैसे भी मुझे बहुत अच्छे अच्छे लोग मिले हैं एक डा चक्रधर नलिन जी हैं बस उन्हों ने ही मुझे लिखने के लिये प्रेरित किया तो आज यहाँ तक पहुँच पाई वो खुद बाल लेखक हैं। शुभकामनायें
नहीं कुछ कहने सुनने की ज़ुरूरत,
निगाह ए यार से जब गुफ्तगू हो !!
ajab andaaz
bahut khoob
अरे, आपने पूरी नयी पोस्ट लगा दी उस ग़ज़ल को सुधार कर। मुझे लगा था कि वहीं संपादित कर देंगे आप। हाँ, वो बशीर बद्र साब का मतला याद आ गया पूरा:-
तजकिरा कोई हो जिक्र तेरा रहा
अवल्लो आखिरश दरमिया दरमिया
mujhe to utana jnyan nahi ki kaise maintain hota hai bhav aur shabd aur lay bas inhi sab se mil kar ek gazal banati hai mere liye wahi mujhe badhiya lagati hai..
aapne badhiya likha hai meri nazar me bas itana hi aata hai..dhanywaad
वाह भाई, आप भी कम नहीं है. उस्ताद शायर है. अच्छा हुआ, आप से भी मुलाकात हो गई. अच्छी रचनाये कर रहे है आप.
और सब तो ठीक है लेकिन ई कू-ब-कू कौन सी चिड़िया का नाम है..?
भई, उर्दूदां लोग रिसियायें जिन।
इस सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद
नव वर्ष की शुभ कामनाएं
bahut durust pharmaya aapne..
ati sundar lekhni
अधिकतर व्यक्ति से बात करने पर या अधिकतर साहित्य को मैं अधिकतर दो मुख्य श्रेणी में पाता हूँ -
पहला - आदेशात्मक
जिसमे की स्पष्ट निर्देश होता है की ऐसे करो जसी के अपने तीर्थस्थान देते हैं.
दूसरा- उपदेशात्मक
जिसमे यह कहा जाता हैं की मैं ऐसा हूँ तुम भी वैसे ही करो , जैसे की अपने ऋषि, मुनि और dharmachrya करतें हैं.
लेकिन आपके ब्लॉग पर विसिट करने पर ऐसे प्रतीत होता हैं की आपके लेखन में अपने दिल को खोल कर बिना लाग लपट के लिख देने की विशिष्ट प्रतिभा ऊपर के दोनों श्रेणी से अलग करती हैं | जिससे की जिसको जो बात सही लगें उससे वो लाभान्वित हो सके |
आशा और विश्वास हैं की आगे में भी हम लोग आपके इस तरह के लेखन से लाभान्वित होते रहेंगे..................
Vijay Dubey, NTPC-Singrauli
Aapki yeh ghazal bahut hi aachi lagi. Naye saal ki hardik shubhkamnay..
नव वर्ष आपके जीवन मे हर्ष और उल्लास भर दे. नव वर्ष के शुभकामनाएं. तस्वीर सराहने के लिए धन्यवाद. बेटे ने लन्दन के आस पास खिंचा उसमे से ये मुझे भी भाया.
एक अच्छा आलोचक मिलना नसीब की बात है...और जो आलोचनa को सकरात्मक ले वह बहुत आगे बढ़ता है.
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.
आभार.
बहुत ही सुन्दर शब्दों में बेहतरीन प्रस्तुति, शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
गोया हम एडिट वर्ज़न पर आये है .....पर ये शेर लिए जा रहे है ....
कोई भी तज़्किरा या गुफ्तगू हो !
तेरा चर्चा ही अब तो कू ब कू हो !!
मयस्सर बस वही होता नहीं है,
दिलों को जिसकी अक्सर जुस्तजू हो !!
सिंह साहब,
यही नाम मैं जान पाया हूँ...या शायद पवन साहब आपके ब्लॉग पर आकर देखा तो लगा कि बहुत ही बेहतरीन रचनाओं को पढने से वंचित रहा हूँ अब तक.आपके स्वभाव और सृजन दोनों की गहराई प्रभावित करने वाली है.सीखने की अदम्य इच्छा आपको और श्रेष्ठ बनाती है.आपकी रचना के बारे में लिखने का अधिकारी नहीं हो सकता क्योंकि खुद सीख रहा हूँ.पर कठिन बहर पर दिल की गहराई से बात करने का हुनर ईश्वर ने खूब दिया है आपको.
मयस्सर बस वही होता नहीं है,
दिलों को जिसकी अक्सर जुस्तजू हो !!
ये आँखें मुन्तजिर रहती हैं जिसकी,
उसे भी काश मेरी आरज़ू हो !!
इन दोनों शेरों ने कई बार 'वाह' कहने पर मजबूर किया.
आप व्यस्त और जिम्मेदारियों के बीच रहते होंगे फिर भी अपनी रचनात्मकता को नए आयाम दे रहे है.आशा करता हूँ नव वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए लाखों खुशियाँ ले आये.
दुआ करता हूँ आपकी गजलो का दीवान इस वर्ष प्रकाशित हो और उसकी एक प्रति मुझे पढने को मिले!
शुभकामनाओं सहित!
प्रकाश
ग़ज़ल के प्रति आपका लगाव काबिल -ए- तारीफ है...
तीनो बेजोड़ हैं....
कोई भी तज़्किरा या गुफ्तगू हो !
तेरा चर्चा ही अब तो कू ब कू हो !!
मयस्सर बस वही होता नहीं है,
दिलों को जिसकी अक्सर जुस्तजू हो !!
ये आँखें मुन्तजिर रहती हैं जिसकी,
उसे भी काश मेरी आरज़ू हो !!
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