8 दिसम्बर महायान परंपरा में बोधि दिवस के रूप में मनाया जाता है. विदेशों में बोधि दिवस बड़े उत्साह से मनाया जाता है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राजकुमार सिद्दार्थ ने ज्ञान की खोज के लिए बोध गया बिहार में एक वट वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया ...............लम्बे ध्यान के बाद उन्हें जीवन के विभिन्न अनसुलझे सवालों के उत्तर मिले ........उस दिन जब सिद्दार्थ “महात्मा बुद्ध“ में परिवर्तित हुए उसे ही “बोधि दिवस” के नाम से जाना जाता है.....महायान संप्रदाय में इसे बोधि दिवस के रूप में मनाये जाने की परंपरा है. जिस वट वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ.........उसे बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है.
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि कलिंग युद्ध के बाद जब सम्राट अशोक बुद्ध धर्म की तरफ आकर्षित हुए तो उन्होंने इस वृक्ष के महत्त्व को जाना. सम्राट अशोक इस वृक्ष के नीचे बैठकर आनंद का अनुभव करते थे .........उनकी रानी तिस्सरक्षिता ने चिढ़ कर इसे कटवा दिया था .........किन्तु इस वृक्ष की एक टहनी सम्राट अशोक के पुत्र-पुत्री संघमित्रा और महेंद्र बुद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लए श्रीलंका ले गए थे............जिसे अनुराधापुर में रोपित किया गया था. कालांतर में यही वृक्ष बोधि- वृक्ष के ही रूप में प्रसिद्द हुआ. .......... अनुराधापुरम का यह बोधिवृक्ष दुनिया के प्राचीनतम वृक्ष के रूप में जाना जाता है. यह वृक्ष आज भी बुद्ध परंपरा में श्रद्धा का महत्त्वपूर्ण केंद्र है.
गया के बोधि वृक्ष की ही एक शाखा श्रावस्ती में भी है.............ऐसा माना जाता है कि बुद्ध के जीवित होने के दौरान ही बोधगया के बोधि वृक्ष से एक शाखा लेकर श्रावस्ती के जेतवन विहार के प्रवेश द्वार पर रोपित किया गया था जो कि “आनंद बोधि वृक्ष” के नाम से जाना जाता है. दरअसल यह वृक्ष “अनाथ पिण्डक” ने रोपित किया था जो बाद में “आनंद बोधि” के नाम से प्रसिद्द हुए. यह वृक्ष जेतवन के प्रवेश द्वार के निकट है. माना जाता है कि महात्मा बुद्ध ने एक रात्रि को इस वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया था. लोग मानते हैं कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान लगाने वाले को पुण्य प्राप्त होता है.
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि कलिंग युद्ध के बाद जब सम्राट अशोक बुद्ध धर्म की तरफ आकर्षित हुए तो उन्होंने इस वृक्ष के महत्त्व को जाना. सम्राट अशोक इस वृक्ष के नीचे बैठकर आनंद का अनुभव करते थे .........उनकी रानी तिस्सरक्षिता ने चिढ़ कर इसे कटवा दिया था .........किन्तु इस वृक्ष की एक टहनी सम्राट अशोक के पुत्र-पुत्री संघमित्रा और महेंद्र बुद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लए श्रीलंका ले गए थे............जिसे अनुराधापुर में रोपित किया गया था. कालांतर में यही वृक्ष बोधि- वृक्ष के ही रूप में प्रसिद्द हुआ. .......... अनुराधापुरम का यह बोधिवृक्ष दुनिया के प्राचीनतम वृक्ष के रूप में जाना जाता है. यह वृक्ष आज भी बुद्ध परंपरा में श्रद्धा का महत्त्वपूर्ण केंद्र है.
गया के बोधि वृक्ष की ही एक शाखा श्रावस्ती में भी है.............ऐसा माना जाता है कि बुद्ध के जीवित होने के दौरान ही बोधगया के बोधि वृक्ष से एक शाखा लेकर श्रावस्ती के जेतवन विहार के प्रवेश द्वार पर रोपित किया गया था जो कि “आनंद बोधि वृक्ष” के नाम से जाना जाता है. दरअसल यह वृक्ष “अनाथ पिण्डक” ने रोपित किया था जो बाद में “आनंद बोधि” के नाम से प्रसिद्द हुए. यह वृक्ष जेतवन के प्रवेश द्वार के निकट है. माना जाता है कि महात्मा बुद्ध ने एक रात्रि को इस वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया था. लोग मानते हैं कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान लगाने वाले को पुण्य प्राप्त होता है.
दो माह पूर्व मैं जब श्रावस्ती दर्शन पर गया था तो जेतवन भ्रमण के दौरान मैं इस वृक्ष के नीचे भी गया था...........वाकई इस विशाल काय पवित्र एवं ऐतिहासिक वृक्ष के नीचे खड़ा होना अपने आप में एक अलग सा अनुभव था. इस वृक्ष की आयु को देखते हुए, इसको सहेजे जाने को दृष्टिगत रखते हुए सरकारी खर्चे से पिलर अदि लगाये गए हैं ताकि इस पवित्र वृक्ष को किसी भी प्राकृतिक आपदा या अन्य किसी नुकसान से बचाया जा सके. इस वृक्ष के नीचे मैंने खड़े होकर तस्वीर भी ली थी पोस्ट कर रहा हूँ. श्रावस्ती पर विस्तार से फिर कभी यात्रा वृत्तांत लिखूंगा.
12 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा आपका यह आलेख.........
बहुत खूब बोधिवृक्ष और उसके नीचे आप क्या गजब का दृश्य है
और ऊपर से इतना मार्मिक वर्णन मजा आगया..............
बोधिमय पोस्ट की बधाई..
यात्रा-वृतांतों का इंतिजार है ..
जिस वृक्ष की टहनी से नव वृक्ष जन्म लेता है , उसकी
प्राचीनता और आत्मसात-प्रवृत्ति निर्विवाद है , यही
बात तो भारतीय संस्कृति से भी साम्य रखती है ..
................. आभार ,,,,,,,,,,,,
आपके ब्लॉग में सबसे खूबसूरत बात आपकी लेखनी है.. बहुत शानदार अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करते हैं आप...
बेहतरीन जानकारी बेहतरीन शब्दों के साथ...सुन्दर..!
गौतम बुद्ध का विश्व को दिया गया योगदान अतुलनीय है. जिस वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया उसे सजीव दिखाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. इस वृक्ष को देखकर चार आर्य सत्यो तथा प्रतीत्य समुत्पाद का स्मरण हो आता है. सचमुच यह विश्व क्षणिक है.
इस चित्र को देख अच्छा लगा धन्यवाद ।
ये अच्छी जानकारी दी आपने. बुद्ध धर्म से जुडी चीजों से अलग तरह का लगाव है कभी मौका मिला तो जरूर जाऊँगा.
After visiting on ur blogs and going through articles, I feel u r seraching pricesly something within ur self which u r relating/ finding in the exisiting world.
Really highly appreciatable because in now a days where most of the pepole are fighting rather than finding for GROSS ELEMENTS only.
reg/vijay/ntpc
अच्छी जानकारी। गया में मेरे चार साल गुजरे हैं तो अक्सर शामें उधर ही उस महान वृक्ष के नीचे गुजरा करती थीं।
कई बार यूं ही अजीब-सी सोचें सर उठाने लगती जब उस पेड़ के नीचे बैठकर ख्यालों में डूब जाता था....
श्रावस्ती यात्रा वृतांत का इंतजार रहेगा।
aapka yah post bhut hi achchha laga. aapne iske itihas ke bare me jankari di, dhanyavad. aap shravasti ke saath katarnia GHAT (Vany Jeev abhyaran) jaroor dekhiyega.
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