दिसंबर 20, 2009

सरफ़रोशी की तमन्ना............!



शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा !!


काकोरी कांड के नायकों राम प्रसाद बिल्स्मिल और अशफाक उल्लाह खान का यह बलिदान दिवस है.........19 दिसम्बर 1927 को आज ही के दिन इन दोनों क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा हुयी थी. राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर और अशफाक उल्लाह खान को फैजाबाद जिला जेल में फाँसी के फंदे पर चढ़ाया गया था, जबकि एक अन्य क्रान्तिकारी राजिंदर लाहिड़ी को समय से दो दिन पूर्व ही गोंडा जेल में फाँसी की सजा दे दी गयी थी. इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता आन्दोलन में क्रांतिकारियों ने नए अंदाज़ में अपने जज्बे को बयां किया था....... अपूर्व उत्साह था......देश पर मर मिटने की ललक थी........स्वतंत्रता को जल्दी से जल्दी लाने की चाह थी.........अँगरेज़ सरकार को उन्ही के अंदाज़ में सबक सिखाने की जिजीविषा थी........!
अपने सपने को अंजाम तक पहुँचाने के लिए 9 अगस्त 1925 को चन्द्र शेखर आजाद, अशफाक उल्लाह खान, राजिंदर लाहिड़ी, बिस्मिल और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच शाम के समय 8 डाउन ट्रेन शाहजहांपुर -लखनऊ में ले जाये जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया. यही घटना इतिहास में काकोरी कांड के नाम से जानी जाती है. दरअसल ट्रेन को लूटने का आइडिया भी बिस्मिल का ही था. एच.आर.ए.(हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएसन) के सदस्यों ने यह कारनामा करने का वीणा उठाया था........यद्दपि इसी घटना के एक अन्य क्रान्तिकारी चन्द्र शेखर आजाद को पुलिस उनके जीते जी नहीं पकड़ सकी. 26 सितम्बर 1925 को बिस्मिल गिरफ्तार किये गए और उनको गोरखपुर जेल में रखा गया. उल्लेखनीय है कि बिस्मिल का जन्म शाहजहांपुर में 1897 में हुआ था. ऐसा बताया जाता है कि निर्धनता के कारण वे महज़ आठवीं तक ही अपनी पढाई कर सके. बाद में वे देश आजाद करने के मिसन में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएसन से जुड़ गए जहाँ उनकी मुलाकात अन्य क्रांतिकारियों से हुई. काकोरी के ये नायक महज़ किसी जल्दबाजी या उत्तेज़ना के शिकार नहीं थे .......वे नवयुवक होने के बावजूद बहुत ही बौद्धिक और विचारक थे. अगर बात बिस्मिल कि करें तो बिस्मिल के पास न केवल हिंदी बल्कि अंग्रेजी, बंगला और उर्दू भाषा का ज़बरदस्त ज्ञान था. उनका लिखा हुआ तराना “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.....देखना है जोर कितना बाज़ू ए कातिल में है........!” पूरे देश में बच्चे बच्चे की जुबान पर उन दिनों था............!
काकोरी लूट के बाद इन क्रांतिकारियों पर मुकद्दमा चला .......ट्रेन लूट और एक यात्री की मौत के इलज़ाम के दोषी बताकर 4 क्रांतिकारियों को फाँसी कि सजा सुनायी गयी और फाँसी का दिन भी 19 दिसम्बर 1927 मुक़र्रर हुआ............बिस्मिल को गोरखपुर जेल में रखा गया.........! बताते हैं कि जब गोरखपुर जेल में बिस्मिल के माता पिता फाँसी के एक दिन पूर्व उनसे मिलने पहुंचे तो बिस्मिल की आँखों से आंसू छलक पड़े......तो उनकी माँ ने कहा आज़ादी के दीवाने रोया नहीं करते. बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी. यह आत्मकथा गोरखपुर जेल में ही लिखी गयी थी. यह फांसी के केवल तीन दिन पहले समाप्त हुई. 18 दिसम्बर 1927 को जब उनकी माँ उनसे मिलने आयीं तो बिस्मिल ने अपनी जीवनी की हस्तलिखित पांडुलिपि माँ द्वारा लाये गये खाने के बक्से (टिफिन) में छिपाकर रख दी, बाद में श्री भगवती चरण वर्मा जी ने इन पन्नों को पुस्तक रूप में छपवाया। बाद में पता चलते ही ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया और इसकी प्रतियाँ जब्त कर लीं गयीं। सन 1947 में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसे पुन: प्रकाशित कराया।
मेरा इन शहीदों को याद करना स्वाभाविक है किन्तु शहीद बिस्मिल को विशेष रूप से याद करने की एक वज़ह यह भी है कि मैंने काकोरी और गोरखपुर दोनों को करीब से देखा है..........यह दोनों स्थान किसी न किसी रूप में उनसे जुड़े रहे हैं........! काकोरी कांड के उन सभी क्रांतिकारियों को याद करते हुए बरबस ही वो तराना याद आता है......जो क्रांति के दौरान बहुत लोकप्रिय था......! आइये हम सब दोहरातें हैं इस जोशीली ग़ज़ल को नश-नश, रग- रग में जोश का नया ज़ज्बा भर देती है.......! इल्तिजा आप सभी से कि आप सब भी इस सुर में शामिल हो जाईये.......!

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है !
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है !!

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है !!

ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है !!

रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में,
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है !!

अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है !!
(चित्र गूगल इमेज से)

14 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

अच्छी जानकारी , उन शहीदों को नमन करता हूं

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

अच्छी जानकारी , उन शहीदों को नमन करता हूं.......

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

भैया !
आपकी लेखनी जो भी लिखती है , उससे सहज ही
जुड़ाव होने लगता है ..
आज की प्रस्तुति भी ऐसी ही रही ..
ऐसे क्रांतिकारियों पर सोचने के बाद मन आश्वस्त होता है कि
धरती पर जीवन सकारात्मक अर्थ रखता है , नहीं तो आस-पास से
तो निराशा ही मिलती है ..
बिस्मिल जी की आत्माकथा छपने के संबंध में आपने जो बताया , वह
मेरे लिए नया - नया है ..
मैं फैजाबाद का हूँ और मुझे अशफाक की ऐसे ही याद आती है .. विगत १९ को
ज्यादा ही आयी ..
............ आभार ,,,

Mithilesh dubey ने कहा…

बेहद उम्दा जानकारीं प्रदान की है आपने , आभार ।

Abhishek Ojha ने कहा…

आभार इस पोस्ट क लिए. स्कूल की लाइब्रेरी से लाकर एक जीवनी पढ़ी थी. पर याद नहीं किसकी लिखी हुई थी.

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक लेख और उसपर आपकी लेखन शैली शुभान अल्लाह
आपको और उन सभी क्रांतिकारियों को मेरा सलाम

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ..

नमन है भारत के इन वीर सपूतों को ..........

बेनामी ने कहा…


बेहतरीन प्रस्तुति,
लोग सुध ले रहे हैं, अच्छा लग रहा है ।
’ बिस्मिल ’ की आत्मकथा इन्टरनेट पर उपलबध है, यहाँ देखें !

aarya ने कहा…

सादर वन्दे
मुझसे अच्छी पोस्ट लिखी है आपने
मेरे हौसलाअफजाई के लिए धन्यवाद
रत्नेश त्रिपाठी

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Namneeya Post...Sadhuwaad..

Pawan Kumar ने कहा…

5 टिप्पणियाँ:

Tarkeshwar Giri ने कहा…
Very Nice

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है !देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है !!वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है !!ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है !!रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में,लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है !!अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है !!
२० दिसम्बर २००९ ४:३८ AM

Udan Tashtari ने कहा…
काकोरी कांड के क्रांतिकारियों को समर्पित यह आलेख अच्छा लगा.
२० दिसम्बर २००९ ४:४१ AM

दिगम्बर नासवा ने कहा…
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा ...

नमन है वीर शहीदों को जिनके बिना ये आज़ादी अधूरी रहती ..........
२० दिसम्बर २००९ ५:०७ AM

महफूज़ अली ने कहा…
नमन है वीर शहीदों को जिनके बिना ये आज़ादी अधूरी रहती .........
२० दिसम्बर २००९ ५:३२ AM

सत्यम न्यूज़ ने कहा…
|| उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्जे जफा क्या है
हमें यह शोक है.देखें सितम की इन्तहां क्या है
दहर से क्यूँ खफा रहें
चर्ख से क्यूँ गिला करें
सारा जहाँ अदू सही.आओ मुकाबला करें ||
...वाकई मैं शहीदों के बारे मैं पढ़ कर चोंक जाता हूँ.जब देश मैं साधन नहीं थे...एजुकेशन कर किसी दायरे मैं नहीं थी...संचार के साधन आज की तरह विकसित नहीं थे...बावजूद उस दौर के युवाओं का बोद्धिक स्तर हेरत मैं डाल देता है.आज जब इतने साधन हैं एजुकेसन है.सब सुविधाएँ है. तब युवाओं के पास विजन नहीं है.आजकी पीढ़ी को प्रोत्साहित करने के लिए इस तरह के लेखों के बेहद जरुरत है.
२० दिसम्बर २००९ ६:३५ AM

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@ ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है !!

स्याह चुप्पी ही तो अभिशाप हो गई है। स्याही वालों की तो लेखनी भी चुप्पा हो गई है।

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

|| उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्जे जफा क्या है
हमें यह शोक है.देखें सितम की इन्तहां क्या है
दहर से क्यूँ खफा रहें
चर्ख से क्यूँ गिला करें
सारा जहाँ अदू सही.आओ मुकाबला करें ||
...वाकई मैं शहीदों के बारे मैं पढ़ कर चोंक जाता हूँ.जब देश मैं साधन नहीं थे...एजुकेशन हर किसी के दायरे मैं नहीं थी...संचार के साधन आज की तरह विकसित नहीं थे...बावजूद उस दौर के युवाओं का बोद्धिक स्तर हेरत मैं डाल देता है.आज जब इतने साधन हैं एजुकेसन है.सब सुविधाएँ है. तब युवाओं के पास विजन नहीं है.आजकी पीढ़ी को प्रोत्साहित करने के लिए इस तरह के लेखों की बेहद जरुरत है.

गौतम राजऋषि ने कहा…

शुक्र है पवन साब कि आप जैसे कुछ लोग अभी भी हैं जिनके बहाने हम इन शहीदों को याद कर लेते हैं, वर्ना ये "हर बरस मेले" लगने वाली बात तो बस गुनगुनाने के लिये रह गयी है।

एक शक कई दिनों से है इस ग़जल को लेकर। क्या ये ग़ज़ल क्रांतिकारी बिस्मिल द्वारा लिखी गयी है या किसी और शायर द्वारा जो कि बिस्मिल का तखल्लुस इस्तेमाल करते थे। कभी बहुत पहले पढ़ा था कहीं. अब याद नही।